न्यूज़ग्राम हिंदी: ट्रेकर्स के लिए एक जाना माना नाम है हरिश्चंद्रगड किला जो महाराष्ट्र के अहमदनगर के मालशेज़ घाट में 1,422 मीटर की दूरी पर स्थित, अपने नायाब प्राकृतिक सौंदर्य के लिए लोकप्रिय है। मेसोलिथिक अवशेष को प्रमाणित करता हुआ यह किला जिसका उल्लेख मत्स्यपुराण, अग्निपुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है।
पुणे और थाने की नगर सीमा मालशेज़ घाट के बाई ओर स्थित पर्वत अपने पौराणिक इतिहास के लिए भी जाना जाता है। यहां कोंकण आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इस घाट की नक्काशी यहां के आसपास की संस्कृति की अद्भुत तस्वीर दिखाती है। किले से सूर्यास्त का नज़ारा आंखों को आराम पहुंचाने वाला है।
आइए जानते हैं इस किले का प्राचीन इतिहास। यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि किले का निर्माण छठी शताब्दी में कलचुरी के राजवंश द्वारा किया गया और 11वीं शताब्दी में किले की गुफाओं की नक्काशी की गई। हरिश्चंद्रगड का यह किला बहुत ही प्राचीन है, मेसोलिथिक काल के अवशेष भी यहां मिलते हैं।इसके साथ ही भगवन विष्णु की मूर्तियां भी यहां देखने को मिलती हैं।
14वीं शताब्दी में ऋषि चांगदेव यहां ध्यान किया करते थे, गुफाओं का निर्माण उस सदी की संस्कृति का प्रमाण है। नागेश्वर (खिरेश्वर गाँव में), हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर में और केदारेश्वर की गुफा की बनावट इस बात का प्रमाण है कि किला मध्ययुगीन काल का है और मुगलों के कब्ज़ा करने तक यहां के जनजाति महादेव की पूजा करते हैं। आज भी महादेव इनके कुलदेवता हैं।
हरिश्चंद्र किले और इसके आसपास की खूबसूरती आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। यहां की वनस्पति में विविधता बेहद अनोखी है। हालांकि वन्यजीवों की बात करें तो इनकी संख्या कम है। इसका कारण है यहां के शिकारी फिर भी लोमड़ी, तरस, रानडुक्कर, भैंस, बिबटे, खरगोश, भीकर, रणमंजारे आदि पाए जाते हैं।
यहां पहुंचने के लिए आप मुंबई से बस कर सकते हैं। शिवाजीनगर बस स्टैंड(पुणे) से खिरेश्वर गांव के लिए आपको बस आसानी से मिल जाएगी। इसके साथ ही आप निजी टैक्सी कर के भी यहां आ सकते हैं। ट्रैकिंग का शौक़ रखने वाले लोगों के लिए यह एक अच्छा स्थान है, शहर से दूर यह शांत इलाका और विविध वनस्पति आपकी आंखों को आराम देगी।
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