न्यूज़ग्राम हिंदी: कहते हैं कि देवों के देव महादेव को पाने के लिए माता पार्वती ने घोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव(Shiva) ने फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती से विवाह किया था। महाशिवरात्रि(Mahashivratri) के विशेष पर्व पर जानिए उस स्थान के बारे में जहां हुआ था शिव पार्वती का विवाह।
उत्तराखंड(Uttrakhand) के रुद्रप्रयाग जिले के गांव त्रियुगी नारायण में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर(Triyugi Narayan Mandir) में हुआ था शिव-पार्वती का विवाह। कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए गौरीकुंड में घोर तपस्या की थी। गुप्तकाशी में उन्होंने शिव जी के सामने विवाह प्रस्ताव रखा, इस प्रस्ताव को मानने के बाद माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमावत ने त्रियुगी नारायण में जोर शोर से विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं।
इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के अनेक साक्ष्य मिलते हैं। यहां अग्नि की ज्योति आपको निरंतर जलते हुए मिलेगी। ऐसा कहा जाता है कि इसी अग्नि के सामने शिव और पार्वती ने साथ फेरे लिए थे और त्रेतायुग से लेकर आज तक यह ज्योति जलती चली आ रही है। ऐसा कहा गया है कि इस विवाह में सभी देवी देवता सम्मिलित हुए थे। भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई के रूप में सभी रस्में पूरी की थी और विवाह कार्यक्रम से पहले उन्होंने जिस कुंड में स्नान किया था वह आज विष्णु कुंड के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मा जी इस विवाह में पुरोहित के रूप में शामिल हुए थे और उन्होंने ब्रह्म कुण्ड में स्नान किया था। इसके साथ ही यहां स्थित सरस्वती कुंड है जिसमें विवाह में आए सभी देवी देवताओं ने स्नान किया था।
ऐसा कहा जाता है कि इस विवाह में भगवान शिव को गाय भी भेंट स्वरूप में मिली थी जिसे पास के खुटी में बांधा गया था। उसके साक्ष्य आज भी मिलते हैं। त्रियुगी नारायण मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां विवाह करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। पुराणों में यह भी कथा है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि को इंद्रसेन पाने के लिए सौ यज्ञ करने से रोका था।
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आप सोनप्रयाग के सड़क मार्ग का रास्ता अपना सकते हैं। यहां आपको भगवान विष्णु, भगवान बद्रीनाथ नारायण, माता सीता भगवान राम और कुबेर के दर्शन होंगे।
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