कल्चुरी काल का यह मंदिर जहां भक्तों की लगती है भीड़

कल्चुरी काल में यहां 9 मंदिर और 9 हाट थे इसलिए इसका नाम नोहटा पड़ा लेकिन यहां अब एक ही मंदिर शेष है
Nohleshwar Shiv Temple - तकरीबन सीएडी 950-960 से 10वीं शताब्दी के बीच चंदेलों द्वारा निर्मित भगवान शिव के तीर्थ के लिए यह स्थान जाना जाता था। (Wikimedia Commons)
Nohleshwar Shiv Temple - तकरीबन सीएडी 950-960 से 10वीं शताब्दी के बीच चंदेलों द्वारा निर्मित भगवान शिव के तीर्थ के लिए यह स्थान जाना जाता था। (Wikimedia Commons)
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Nohleshwar Shiv Temple - मध्य प्रदेश का इतिहास समृद्धशाली है। हर शहर का अपना गौरवमयी इतिहास है। इसी तरह का इतिहास दमोह रोड पर स्थित नोहटा का भी है। कल्चुरी काल में यहां 9 मंदिर और 9 हाट थे इसलिए इसका नाम नोहटा पड़ा लेकिन यहां अब एक ही मंदिर शेष है तकरीबन सीएडी 950-960 से 10वीं शताब्दी के बीच चंदेलों द्वारा निर्मित भगवान शिव के तीर्थ के लिए यह स्थान जाना जाता था। नोहटा जबलपुर से 81 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक अन्य दृश्य निर्माण के लिए कल्चुरि राजा अवनि वर्मा का समर्थन करता है, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा इस मंदिर को कलचुरी राजवंश के दौरान का बताया गया है।

श्रद्धालुओं के लिए गर्भ गृह में जाना शिवलिंग का स्पर्श करना वर्जित है। (Wikimedia  Commons)
श्रद्धालुओं के लिए गर्भ गृह में जाना शिवलिंग का स्पर्श करना वर्जित है। (Wikimedia Commons)

शिवलिंग का स्पर्श है वर्जित

श्रद्धालुओं के लिए गर्भ गृह में जाना शिवलिंग का स्पर्श करना वर्जित है। इसके बावजूद भी आस्था और शिल्प कला से समृद्ध इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग के दर्शनों के लिए सावन सोमवार को भक्तों की भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां और भी कई मूर्तियां है।

मंदिर के सजावट में मातृका मूर्तियों का ज्यादा उपयोग किया है। (Wikimedia Commons)
मंदिर के सजावट में मातृका मूर्तियों का ज्यादा उपयोग किया है। (Wikimedia Commons)

कौन - कौन सी मूर्तियां है?

इसका बारीक नक्काशियों वाला मूर्ति शिल्प अनुपम है। दायीं ओर नर्मदा और बायीं ओर यमुना की मूर्तियां हैं। चबूतरे के निचले भाग पर सामने दोनों ओर चारों तरफ लक्ष्मी के आठ रूपों की मूर्तियां हैं। गजलक्ष्मी की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है। मंदिर के सजावट में मातृका मूर्तियों का ज्यादा उपयोग किया है। मुख्य द्वार के शीर्ष भाग में नवग्रह की मूर्तियां हैं । नोहलेश्वर मंदिर में सरस्वती, विष्णु, अग्नि, कंकाली देवी, उमा-महेश्वर, शिव-पार्वती, लक्ष्मी नारायण के भी दर्शन होते हैं ।यह कल्चुरि काल की स्थापत्य कला के सर्वश्रेष्ठ मंदिरों में से एक है, जिसे मध्यप्रदेश राज्य द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है। यह कल्चुरी काल का सबसे श्रेष्ठ मंदिर है।

भगवान शिव के अलावा यहां अष्टभुजाओ वाली माता लक्ष्मी की प्राचीन प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान है। (Wikimedia Commons)
भगवान शिव के अलावा यहां अष्टभुजाओ वाली माता लक्ष्मी की प्राचीन प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान है। (Wikimedia Commons)

माता लक्ष्मी की भी है कृपा

भगवान शिव के अलावा यहां अष्टभुजाओ वाली माता लक्ष्मी की प्राचीन प्रतिमा इस मंदिर में विराजमान है। मां कूष्मांडा की आठ भुजायें होने के कारण इन्हें अष्टभुजा वाली भी कहा जाता है। मातारानी के अष्टभुजाओ में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा नजर आता है, तो आठवें हाथ में जप की माला है, इस जप की माला में सभी सिद्धियों और निधियों का संग्रह है।

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