Parivartani Ekadashi 2022: परिवर्तनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से मिलता है दिव्य फल

परिवर्तनी एकादशी के दिन व्रत और पूजन से वाजपेय यज्ञ के बराबार दिव्य फल प्राप्त होता है।
Parivartani Ekadashi 2022: परिवर्तनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से मिलता है दिव्य फल
Parivartani Ekadashi 2022: परिवर्तनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से मिलता है दिव्य फल(Wikimedia Commons)
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Parivartani Ekadashi 2022: हिन्दू धर्म में मान्यता है कि एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। वहीं भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। परिवर्तनी एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। इस साल 6 सितंबर को परिवर्तनी एकादशी व्रत पड़ रहा है। मान्यता है कि परिवर्तनी एकादशी के दिन व्रत और पूजन से वाजपेय यज्ञ के बराबार दिव्य फल प्राप्त होता है। परिवर्तनी एकादशी को डोल ग्यारस भी कहते हैं। इतना ही नहीं, कुछ जगहों पर इसे जलझूलनी एकादशी और पदमा एकादशी के रुप में भी मनाया जाता है।

आइए जानते हैं परिवर्तनी एकादशी कथा के बारे में -

परिवर्तनी एकादशी कथा का महत्व

माना जाता है की परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। कृष्ण ने कहा था कि इस कथा को पढ़ने से मनुष्य आपने पापो से मुक्ति पा लेता है।

कथा के अनुसार, त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था। वह भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। बलि दिन रात भगवान विष्णु की पूजा किया करता था। इंद्र से द्वेष के कारण बलि ने इंद्रलोक पर आक्रमण कर इंद्रलोक सहित सभी देवताओं को जीत लिया था। सभी देवी-देवता बलि के अत्याचार से परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और इस दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए आग्रह किया।

भगवान विष्णु ने देवताओं को मुक्त कराने के लिए वामन रूप धारण कर राजा बलि के पास पहुंच गए। और बलि से तीन पग धरती दान में मांग ली। और कहा, 'हे राजन्! मेरे लिए तीन पग धरती तीनों लोको के बराबर हैं और तुम्हे ये अवश्य देनी होगी।' बलि ने वामन अवतारी की इस मांग को छोटी समझकर तीन पग धरती देने का वचन दे दिया। तभी भगवान विष्णु ने विकराल रूप धारण कर एक पग में धरती, दुसरे में स्वर्ग को नाप लिया, तीसरे पग के लिए कोई जगह नहीं बची। तब राजा बलि ने अपना सिर नीचे रख दिया और कहा, 'तीसरा पग यहां रख दीजिए।' बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बलि के सिर पर पैर रख दिया और उसे पाताल लोक पहुंचा दिया।

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यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी शैया पर करवट बदलते हैं। इसलिए इस दिन को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं।

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