Ram Setu:- हिंदू धर्म में राम सेतु का एक अलग ही महत्व है रामसेतु के निर्माण को लेकर हमेशा से कई मान्यताएं जुड़ी रहती हैं कुछ लोग मानते हैं कि इस वानर सीने तैयार किया था तो वहीं कुछ लोग मानते हैं कि इस कोलकाता के एक व्यापारी द्वारा बनवाया गया था। इनके अलावा वैज्ञानिक ने भी अपने विचार रखें और उनके अनुसार रामसेतु चूना पत्थर से बना एक प्राकृतिक पुल है। भारत के तमिलनाडु में मौजूद यह ब्रिज आज भी एक धार्मिक महत्व रखता है यहां से एरियल व्यू बेहद ही शानदार लगता है। यह पल भारत के पंबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ता है। चलिए आज आपको रामसेतु से जुड़े कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।
तमिलनाडु के रामेश्वरम में मौजूद रामसेतु का नाम तो आपने सुना ही होगा लेकिन, इसके कई और नाम है जैसे एडम ब्रिज नाल सेतु सेतु बंद इत्यादि चुकी इस ब्रिज को भगवान राम और उनकी वानर सी द्वारा बनाया गया था इस वजह से ज्यादातर लोग रामसेतु के नाम से ही इसे जानते हैं इसे नाल सेतु भी कहा जाता है क्योंकि इस नाल द्वारा डिजायन किया गया था एडम ब्रिज नाम प्राचीन इस्लामी ग्रंथो द्वारा दिया गया था।
साल 1480 में समुद्र एक बड़े चक्रवात आने के बाद पुल पानी के अंदर डूब गया था और आज भी रामसेतु हल्का टूटा हुआ ही है वैसे आज रामसेतु पानी के अंदर है लेकिन फिर भी यहां-जहानों को आने-जाने की अनुमति नहीं है। असल में कुछ पॉइंट और गहराई के स्तर के साथ पानी काफी उठाला हुआ है और यह पल पूरी तरह से डूबा हुआ भी नहीं है इस वजह से भारत के जहाज को श्रीलंका पहुंचने के लिए दूसरा रास्ता अपनाना पड़ता है क्योंकि यदि यहां से जहाज पर किया जाएगा तो उसके डूबने या किसी बड़ी घटना के होने की संभावना हमेशा बने रहते हैं।
वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण है कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया है कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों या यंत्रों के द्वारा समुद्र तट पर ले आए थे कुछ वानर सो योजना लंबा सूत पड़े हुए थे अर्थात् पुल का निर्माण सूत से हो रहा था। वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने रघुवंश के 13 स्वर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है।
यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफान आदि की छोटे खाकर टूट गया था। वाल्मीकि के अनुसार 3 दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ निकाला जहां यह आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा पुस्तक श्रीमद्वालमकीय रामायण में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम नाल सेतु रखा इसका कारण था की लंका तक पहुंचाने के लिए निर्मित फूल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नाल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।