
1 . कर्म ही धर्म है – फल की चिंता मत करो
श्रीकृष्ण (Shri Krishna) कहते हैं –
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन"
(तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं।)
महाभारत में अर्जुन (Arjun) युद्धभूमि में मोह में बंधकर अपने धर्म से पीछे हटना चाहता था। तब कृष्ण ने उसे स्मरण कराया कि मनुष्य का धर्म है अपना कर्म करना, न कि उसके परिणाम की चिंता में समय व्यर्थ करना।
आज के जीवन में –
अगर हम नौकरी में, रिश्तों में या पढ़ाई में केवल परिणाम पर ध्यान देंगे, तो असफलता का डर हमें घेर लेगा। लेकिन जब हम पूरी निष्ठा से दिल लगाकर काम करेंगे, तो मन शांत रहेगा, और परिणाम अपने आप आएंगे।
उदाहरण: एक किसान खेत में बीज बोने के बाद यह चिंता नहीं करता कि पौधा कब फल देगा। उसका कार्य है समय पर पानी, खाद और देखभाल करना।
2 . धर्म-अधर्म का निर्णय विवेक से करो
श्रीकृष्ण (Shri Krishna) कहते हैं
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत… तदा आत्मानं सृजाम्यहम्"
(जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मैं स्वयं अवतरित होता हूँ।)
धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और करुणा का पालन है। महाभारत में, कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि अधर्म के विरुद्ध खड़ा होना भी एक कर्म है।
आज के जीवन में –
अगर हम कार्यस्थल पर या समाज में अन्याय देखें और चुप रहें, तो यह भी अधर्म को बढ़ावा देना है।
उदाहरण: अगर स्कूल में किसी सहपाठी के साथ बुलींग हो रही है, तो मौन रहना उसे सही ठहराना है।
3. मन का संयम – सुख-दुःख समान भाव से
श्रीकृष्ण (Shri Krishna) कहते हैं –
"समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते"
(जो सुख-दुःख में समान भाव रखता है, वही अमृतत्व को प्राप्त होता है।)
महाभारत की युद्धभूमि में कृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि सुख और दुःख, लाभ और हानि — ये सब जीवन के उतार-चढ़ाव हैं, और इनसे विचलित न होना ही मानसिक शांति का आधार है।
आज के जीवन में –
हम तब मानसिक तनाव से मुक्त हो सकते हैं, जब हम सफलता में अहंकार और असफलता में हीनभावना छोड़ दें।
उदाहरण: परीक्षा में अच्छे अंक आएं तो घमंड न करें, और कम आएं तो हतोत्साहित न हों, बल्कि अगले प्रयास की तैयारी करें।
4. आसक्ति छोड़ो – यही मुक्ति है
श्रीकृष्ण (Shri Krishna) कहते हैं –
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय"
(हे धनंजय, योग में स्थित होकर कर्म करो और आसक्ति त्यागो।)
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जब हम कर्म में लगन रखते हैं, लेकिन उसके परिणाम से बंध जाते हैं, तो दुख अनिवार्य है।
आज के जीवन में –
रिश्तों, नौकरी या धन में अत्यधिक आसक्ति हमें भय और चिंता में डाल देती है। प्रेम करो, जिम्मेदारी निभाओ, लेकिन *ममता और मोह से बंधो नहीं।
उदाहरण: माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करें, लेकिन अपनी अधूरी महत्वाकांक्षा उन पर न थोपें।
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5. कठिन समय में साहस मत खोना
श्रीकृष्ण कहते हैं –
"उत्तिष्ठ! कौरव सैन्यं समेति"
(उठो! कौरवों की सेना सामने खड़ी है।)
कृष्ण ने अर्जुन को यह याद दिलाया कि कठिन समय से भागना समाधान नहीं।
आज के जीवन में –
अगर हम मानसिक स्वास्थ्य की बात करें, तो कठिन परिस्थिति से निपटने के लिए स्वीकार्यता और धैर्य सबसे बड़ा हथियार है।
उदाहरण: किसी व्यवसाय में नुकसान हो जाए तो उसे सीख मानकर आगे बढ़ना, बजाय हार मानने के।
6. सत्य के मार्ग पर अडिग रहो
श्रीकृष्ण कहते हैं –
"सत्यं वद, धर्मं चर"
(सत्य बोलो, धर्म का पालन करो।)
महाभारत में, कृष्ण ने बार-बार दिखाया कि छल, भले ही कभी-कभी रणनीति में प्रयोग हुआ हो, लेकिन उद्देश्य सदैव धर्म की स्थापना था।
आज के जीवन में–
सत्य पर टिके रहना कठिन है, लेकिन अंत में यही स्थायी शांति और सम्मान देता है।
उदाहरण: व्यापार में ईमानदारी से काम करना, भले ही शुरुआत में लाभ कम हो, लेकिन लंबे समय में यह विश्वास बनाता है।
7. प्रेम और करुणा – जीवन का मूल
कृष्ण की बांसुरी की धुन ने केवल वृंदावन की गोपियों को ही नहीं, बल्कि हर हृदय को प्रेम और करुणा से भर दिया।
आज के जीवन में –
प्रेम और करुणा सिर्फ रोमांटिक भावनाएं नहीं, बल्कि यह दूसरों के दुख-सुख में साथ खड़े होने की क्षमता है।
उदाहरण: किसी मित्र के कठिन समय में केवल सलाह न देना, बल्कि उसका हाथ पकड़कर उसके साथ खड़ा रहना।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी का संदेश केवल माखन-चोरी और बांसुरी की धुन में नहीं, बल्कि उस योगेश्वर के उपदेशों में है, जिसने धर्म, कर्म और प्रेम का अद्वितीय संतुलन दिखाया।
आज के समय में जब मनुष्य तनाव, मोह और द्वंद्व में उलझा है, श्रीकृष्ण के ये उपदेश हमारे लिए मानसिक स्वास्थ्य, आत्मबल और जीवन-संतुलन के मार्गदर्शक हैं। [Rh/BA]