कब मनाई जाएगी संकष्टी चतुर्थी, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

जीवन की कठिनाईओं और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते है
Sankashti Chaturthi - पुराणों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है।  (Wikimedia Commons)
Sankashti Chaturthi - पुराणों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। (Wikimedia Commons)

Sankashti Chaturthi - मांगलिक काम और पूजा-पाठ में नकारात्मक शक्तियों की रुकावटों से बचने के लिए विघ्नेश्वर गणेश जी की पूजा की जाती है।भगवान गणेश को समर्पित इस त्योहार में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाईओं और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते है।संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। मान्यता है संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति को उसके संकटों से छुटकारा मिल जाता है।

संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं-कहीं सकट चौथ के नाम से जाना जाता है पुराणों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। पंचांग के अनुसार पौष माह की अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत 30 दिसंबर 2023 रखा जाएगा।इस तिथि पर लोग सूर्योदय से लेकर चन्द्रमा के उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं। ये व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है।

उदया तिथि के चलते अखुरथ संकष्टी चतुर्थी 30 दिसंबर के दिन मनाई जाएगी। (Wikimedia Commons)
उदया तिथि के चलते अखुरथ संकष्टी चतुर्थी 30 दिसंबर के दिन मनाई जाएगी। (Wikimedia Commons)

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 30 दिसंबर, शनिवार सुबह 9 बजकर 43 मिनट से हो रही है और इसका समापन अगले दिन 31 दिसंबर, रविवार की सुबह 11 बजकर 55 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में उदया तिथि के चलते अखुरथ संकष्टी चतुर्थी 30 दिसंबर के दिन ही मनाई जाएगी।

 शाम में चांद के निकलने से पहले आप गणेश जी की पूजा कर लें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें।  (Wikimedia Commons)
शाम में चांद के निकलने से पहले आप गणेश जी की पूजा कर लें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें। (Wikimedia Commons)

पूजा - विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएं तथा स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहन लें।

फिर स्नान के बाद गणेश भगवान की विधि विधान पूजा करें। आप गणपति भगवान की मूर्ति को फूलों से सजा लें। फिर पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, कलश में पानी, धुप, चन्दन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें।इसके बाद भगवान गणेश को रोली लगाएं। साथ में फूल और जल अर्पित करें फिर भगवान को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं। धूप-दीप जला कर भगवान गणेश के मंत्र का जाप करें।अगर व्रत रखा है तो अन्न का सेवन बिल्कुल भी न करें। शाम में चांद के निकलने से पहले आप गणेश जी की पूजा कर लें और संकष्टी व्रत कथा पढ़ें। रात में चांद देखने के बाद ही व्रत का पारण करें।

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