न्यूजग्राम हिंदी: एक आदिवासी भील की पुत्री शबरी (Shabri) का जन्म फाल्गुन माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की दूज को हुआ था। उनका हृदय बहुत ही कोमल था।
आज पूरा देश इनकी जयंती को मना रहा है इसी उपलक्ष में आज हम आपको इनकी कहानियां बताएंगे।
एक बार की बात है शबरी जल लेने के लिए तालाब पर गई। जहां एक ऋषि पहले से ही तपस्या कर रहे थे। ऋषि शबरी को देखते ही उसे अछूत कहते हैं और उस पर एक पत्थर फेंक कर मारते हैं। पत्थर के लगने से शबरी घायल हो जाती है और उनके शरीर से रक्त बहने लगता है उनके शरीर से बहती रक्त की एक बूंद तालाब में गिर जाती है जिससे पूरे तालाब का जल रक्त में परिवर्तित हो जाता है। इसके बाद तालाब के अपवित्र होने का सारा दोष शबरी पर लगाते हुए ऋषि मुनि उसे भला-बुरा कहते हैं। उस वक्त शबरी वहां से चली गई और ऋषि फिर से अपनी तपस्या करने लगे लेकिन उनके कई प्रयास करने के बाद भी तालाब के रक्त को पुनः जल में परिवर्तित करने में सफल नहीं हुए। यहां तक कि उन्होंने सभी बड़ी नदी जैसे गंगा, यमुना का पानी भी उस तालाब में मिलाया लेकिन सभी प्रयास विफल रहे।
इसके बाद जब भगवान श्रीराम (Lord Rama) सीता (Sita) का हरण हो जाने के पश्चात उन्हें खोजते हुए उस गांव में पहुंचे तो वहां के लोगों ने उनसे आग्रह किया कि हे प्रभु! आप अपने चरणों से इस तालाब को स्पर्श कर दें ताकि इसका रक्त पुनः जल में परिवर्तित हो जाएं। लेकिन श्रीराम के स्पर्श करने से भी वह रक्त जल में परिवर्तित नहीं हो सका और ऋषि मुनि ने भी श्री राम से कई तरह के उपाय करवाएं लेकिन इस सब का कुछ असर नहीं हुआ। अंततः श्रीराम को जब इस तालाब के इतिहास के बारे में पता चलता हैं तो उनका हृदय बहुत दुःखी होता है और वह कहते है कि ऋषिवर तालाब शबरी के कारण नहीं अपितु आपके कठोर शब्दों के कारण रक्त में परिवर्तित हुआ है क्योंकि यह तालाब नहीं मेरा हृदय है। यह कहते हुए वह शबरी से मिलने की इच्छा व्यक्त करते हैं जब शबरी को बुलाया गया तो वह राम का नाम सुनते ही हे प्रभु! मेरे प्रभु कहते हुए दौड़ी चली आई। जब वह दौड़ रही थी तो उनके चरणों की धूल तालाब में जा गिरी जिससे तालाब पुनः जल में परिवर्तित हो गया l। इस पर श्री राम मुनिवर को समझाते हैं कि हे मुनिवर! मैंने तो आपके कहे अनुसार सभी प्रयास किए लेकिन यह रक्त मेरी भक्त शबरी के पांव की धूल से ही पुनः जल में परिवर्तित हो सका है।
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