Shravan Month 2022: सावन के शुभ महीने में हम पूरी कर रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंगों की शृंखला। आज इसी शृंखला में हम पढ़ेंगे नौवें ज्योतिर्लिंग श्रीवैद्यनाथ-ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirlinga) के बारे में। इस ज्योतिर्लिंग से संबंधित एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा है राक्षसराज रावण की। कहा जाता है कि एक बार रावण ने हिमालय पर भगवान् शिव की घोर तपस्या की। उसने एक-एक करके अपना शीश काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू किया। इस तरह उसने जब अर्पण करने के लिए अपना दसवां सिर काटने के लिए आगे बढ़ा तभी भगवान शिव अतिप्रसन्न और संतुष्ट होकर उसके समक्ष प्रकट हो गए। भगवान शिव ने उसका हाथ पकड़कर उसे ऐसा करने से रोक दिया। भगवान शिव ने उससे वर मांगने के लिए कहा।
रावण ने वर के रूप में भगवान शिव के आत्मलिंग रूपी ज्योतिर्लिंग को अपनी राजधानी लंका में ले जाने की अनुमति मांगी। भगवान ने यह वर दे दिया, पर इसके साथ एक शर्त भी रख दी। शर्त थी कि यदि रास्ते में इस शिवलिंग को कहीं रख दिया तो यह वहीं अचल हो जाएगा, शिवलिंग को फिरसे इसे पुनः उठाया नहीं जा सकेगा। रावण ने शर्त स्वीकार करते हुए उसे शिवलिंग को उठाकर लंका कि तरफ आगे बढ़ा। लते-चलते एक जगह मार्ग में उसे लघुशंका महसूस हुई। एक चरवाहे के हाथ में शिवलिंग देते हुए वो लघुशंका की निवृत्ति के लिए चल पड़ा। इधर इस चरवाहे से उस शिवलिंग का भार सहा नहीं गया और उसने शिवलिंग को वहीं भूमि पर रख दिया।
जब रावण लौटकर आया तो उसने बहुत प्रयत्न करके उस शिवलिंग को उठाना चाहा पर वह शिवलिंग हिला तक नहीं। अंततः वह थककर उस पवित्र शिवलिंग पर अपने अँगूठे का निशान बना दिया और लंका लौट आया। आज भी उस शिवलिंग के ऊपर अँगूठे के आकार का ग़ड्डा है।इसके बाद सभी देवी-देवताओं के साथ ब्रह्मा, विष्णु वहाँ पधारे और शिवलिंग का पूजन-अर्चन करके वापस अपने धाम को चले गए। उस शिवलिंग के प्रतिष्ठा के बाद से उस ज्योतिर्लिंग को 'श्रीवैद्यनाथ' ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा।
अनंत पुण्यों को प्रदान करने वाला यह ज्योतिर्लिंग बिहार प्रांत के सन्थाल परगने में स्थित है। यह रोग-मुक्ति देने वाला शिवलिंग सभी पापों को नष्ट कर देता है। सावन मास में श्रद्धालु यहाँ काँवड़ लेकर आते हैं और गंगाजल से इस ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते हैं। ऐसा करने से भक्त पर भगवान शंकर की कृपा सदा बनी रहती है और अंत में उसे शिवधाम की प्राप्ति होती है।