Shravan Month 2022: श्रावण मास में हम द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बारे में पढ़ रहे हैं। इसी शृंखला में हम पढ़ रहे हैं 11वें ज्योतिर्लिंग श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shree Rameshwaram Jyotirlinga) के बारे में। भगवान श्रीरामचन्द्रजी द्वारा स्थापित श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में स्कंदपुराण में विस्तार में महिमा वर्णन किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के स्थापना के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए पल निर्माण करने जा रहे थे, तब उन्होंने समुद्र के तट पर बालू का शिवलिंग निर्मित करके उसकी पूजा-अर्चना की थी।
एक मान्यता यह भी है कि इस स्थान पर भगवान श्री राम जल पी रहे थे कि तभी आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना ही जल पी रहे हो? इस बात को सुनकर भगवान श्री रामचंद्रजी ने उसी स्थान पर बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की और भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर मांगा था। भगवान शिव ने उन्हें वर देते हुए लोक-कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ निवास करने के सबके प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। तभी से भगवान शंकर यहाँ रामेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित होकर लोगों को दर्शन देकर उनका कल्याण कर रहे हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम रावण का वध करके लौट रहे थे तब उन्होंने समुद्र के पार गन्धमादन पर्वत पर पहला पड़ाव डाला था। यहाँ बहुत से ऋषि-मुनि वहाँ उनके दर्शनार्थ आए। उन सबका आवभगत करते हुए भगवान राम ने पूछा कि उनके ऊपर पुलस्य के वंशज रावण के वध करने का जो ब्रह्महत्या का पाप लगा है, उससे कैसे निवृत्ति हो सकती है। तब सभी ऋषियों-मुनियों ने एक स्वर में कहा कि यहाँ शिवलिंग की स्थापना कीजिए। इससे ही ब्रह्महत्या से मुक्ति मिलेगी।
कहा जाता है कि उन्होंने यह बात स्वीकार करते हुए हनुमानजी को आदेश दिया कि वो कैलाश पर्वत जाकर वहाँ से शिवलिंग ले आएं। आज्ञा लेकर हनुमान जी तत्काल कैलाश पर्वत पर पहुँच गए पर वहाँ शंकर भगवान को न पाकर वहीं बैठकर तपस्या करने लगे। कुछ देर बाद भगवान शंकर प्रसन्न होकर प्रकट हुए। हनुमान जी ने उनके दर्शन करके शिवलिंग लेकर लौटे। लेकिन इधर मुहूर्त बीत जाने के डर से सीताजी द्वारा लिंग की स्थापना हो चुकी थी।
यह सब देखकर हनुमानजी अत्यंत दुःखी हो उठे और भगवान राम से उन्होंने अपनी व्यथा कह सुनाई। इसपर भगवान राम ने उनसे कहा कि यदि हनुमानजी चाहें तो इस लिंग को यहां से उखाड़कर हटा दें। यह सुनकर हनुमानजी अत्यंत प्रसन्न हो उठे और शिवलिंग को सब प्रकार से उखाड़ने लगे। पर वह लिंग टस से मस नहीं हुआ। उल्टा हनुमान जी धक्का खाकर एक कोस दूर मूर्च्छित होकर जा गिरे। माता सीट अपने प्यारे पुत्र हनुमान जी को खून में लथपथ देखकर उनके शरीर पर हाथ फेरते हुए विलाप करने लगीं।
मूर्च्छा जाने पर हनुमानजी ने भगवान् श्रीराम के परब्रह्म स्वरूप का दर्शन किया। भगवान ने उन्हें शंकरजी की महिमा सुनाई और फिर हनुमानजी द्वारा लाए गए लिंग की स्थापना भी वहीं पास में ही कर दी गई।