Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ छठा ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग?

भगवान शिव के हुंकार मात्र से ही भीम राक्षस वहीं जलकर भस्म हो गया।
Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ छठा ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग?
Shravan Month 2022: कैसे स्थापित हुआ छठा ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग?भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Wikimedia Commons)
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सावन के महीने में हम पढ़ रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंगों के पावन महिमा के बारे में। इसी कड़ी में आज हम पढ़ेंगे छठें ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर के बारे में। यह पुण्यदायी ज्योतिर्लिंग पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर सह्याद्री की पहाड़ी पर स्थित है। शिवपुराण के अनुसार प्राचीनकाल में एक महाप्रतापी राक्षस हुआ, जिसका नाम भीम था। यह महाबली राक्षस, रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था, जो अपनी माँ के साथ कामरूप प्रदेश में रहता था। कहते हैं कि उसने अपने पिता को कभी नहीं देखा था, क्योंकि उसके होश संभालने से पहले ही कुंभकर्ण भगवान राम द्वारा मोक्ष को प्राप्त हो गया था।

भीम जब थोड़ा बड़ा हुआ तो अपनी माँ द्वारा उसे सब कुछ ज्ञात हुआ। इसके बाद वह संतप्त और क्रुद्ध रहने लगा और भगवान श्री हरी को अपना दुश्मन समझते हुए उनके वध के बारे में दिन-रात सोचने लगा।

उसने अपने इस इच्छा की पूर्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की, जिससे ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे लोक विजेता होने का वर दे दिया। वर प्राप्त करके वो उसका दुरुपयोग करते हुए प्राणियों को सताना शुरू कर दिया। उसने इसी क्रम में देवलोक पर भी आक्रमण कर दिया और इन्द्र समेत सभी देवताओं को देवलोक से निकाल दिया।

सम्पूर्ण देवलोक को अपने अधिकार में लेते हुए उसने भगवान श्रीहरी को भी युद्ध में परास्त कर दिया। इसके पश्चात उसने कामरूप के राजा सूदक्षिण, जोकि परम शिवभक्त थे, पर भी आक्रमण कर दिया और उन्हें उनके मंत्रियों के साथ बंदी बना लिया। यह करते हुए उसने पूरे लोक पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। उसके अत्याचार का आतंक इतना बढ़ गया कि वेदों, पुराणों, शास्त्रों और स्मृतियों का हर जगह से लोप होने लगा। यज्ञ, दान, तप, स्वाध्याय आदि के धार्मिक कार्यों पर उसने सर्वथा प्रतिबंधित कर दिया।

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इस आतंक से ऋषि-मुनि और देवगण घबराकर भगवान शिव के पास त्राहिमाम करते हुए पहुंचे। उनकी व्यथा सुनकर भगवान शिव ने आश्वासन दिया कि वो शीघ्र ही उस अत्याचारी राक्षस का संहार करेंगे। उन्होंने कहा कि उस राक्षस ने उनके प्रिय भक्त को परेशान किया है, अतः वह शीघ्र ही उस अताताई का वध करेंगे।

सभी लोग वहाँ से आश्वासत होकर वापिस आ गए। इधर राक्षस के बंदीगृह में राजा सुदक्षिण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का निरंतर ध्यान कर रहा था। यह देखकर राक्षस क्रोध से भर उठा और उसने अपने तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार कर दिया। लेकिन इसके पहले कि तलवार शिवलिंग को छूता कि तभी उसमें से भगवान शिव प्रकट हो गए और हुंकार भी। उनके हुंकार मात्र से ही वो राक्षस वहीं जलकर भस्म हो गया।

वहाँ इस घटना के समय सभी ऋषि, देवता आदि उपस्थित होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगे। सभी देवी-देवताओं ने उनसे प्रार्थना की कि महादेव वहीं सदा के लिए सबके कल्याण के लिए वहाँ निवास करें। देवताओं ने कहा कि यह क्षेत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है, पर यदि महादेव वहाँ निवास करते हैं तो यह स्थान परम पवित्र और पुण्य से युक्त बन जाएगा। भगवान शिव ने सबकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने लगे। इस पुण्यमयी ज्योतिर्लिंग का नाम तभी से भीमेश्वर पड़ गया।

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