Shravan Month 2022: हम श्रावण मास में पढ़ रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में। इसी कड़ी में हम आज पढ़ेंगे तीसरे ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) के बारे में। महाभारत, शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में महाकाल ज्योतिर्लिंग की महिमा को विस्तारपूर्वक बताया गया है। पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन प्राचीनकाल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, जिसे अवन्तिकापुरी भी कहते थे। इसी पावन नगर में यह महाज्योतिर्लिंग महाकाल स्थापित हैं, और इसी पुण्य क्षेत्र को आज मध्यप्रदेश के उज्जैन (Ujjain) नगर के नाम से लोग जानते हैं।
पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में उज्जयिनी में एक महान शिव भक्त राजा हुए, जिनका नाम चंद्रसेन था। एक दिन एक पाँच वर्ष का गोप-बालक, जिसका नाम श्रीकर था, अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था। जब उसने राजा का शिवपूजन देखा तो वो विस्मयपूर्ण होकर स्वयं भी उन्हीं सामग्रियों से शिवपूजन करने के लिए लालायित हो उठा।
कथा में आगे बताया गया है कि, जब श्रीकर को वह सामग्री नहीं प्राप्त हुई तो वो रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर अपने घर लाया और उसको ही शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन आदि से परम श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा। वह पूजा में इतना तल्लीन होकर बैठ गया कि, जब उसकी माँ भोजन के लिए उसे बुलाने आईं तब भी वो उठा नहीं। इस पर माँ क्रोधित होकर उस पत्थर को उठाकर दूर फेंक दिया। इस घटना पर बच्चा जोर जोर से भगवान शिव को पुकारता हुआ रोने लगा और रोते-रोते बेहोश हो गया।
भगवान शिव उस नन्हें भक्त कि भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हो उठे। जब बालक को होश आया और उसने आँखें खोलीं तो उसने पाया कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य और अतिविशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है। मंदिर के अंदर एक अत्यंत प्रकाशपूर्ण, भास्वर, तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है। यह देखकर वो बच्चा आनंद से विभोर हो उठा और भगवान शिव की स्तुति करने लगा।
इस बात का समाचार मिलते ही माँ दौड़ती हुई उसी स्थान पर पहुंचीं, जहां उनका बच्चा था, और उसे गले लगा लिया। इस घटना की चर्चा तेजी से चारों तरफ फैल गई, लोगों कि भीड़ इकट्ठा होने लगी, और जब यह बात राजा चंद्रसेन को पता चली तो वो भी पीछे से आया और बच्चे की भक्ति और सिद्धि की सराहना करने लगा। कहते हैं तभी वहाँ हनुमानजी प्रकट हुए और कहने लगे, 'मनुष्यों! भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम हैं। इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है, जो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर पाते।'
आगे उन्होंने कहा कि इस गोप-बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा नंदगोप का जन्म होगा, जिसके यहाँ द्वापरयुग में भगवान् विष्णु कृष्णावतार लेकर उनके वहां तरह-तरह की लीलाएं करेंगे। ये सारी बातें कहकर हनुमानजी अंतर्धान हो गए। उस स्थान पर नियमों का पालन करते हुए भगवान शिव कि आराधना करते हुए राजा चंद्रसेन और श्रीकर गोप शिवधाम को प्राप्त हो गए।
इसके अतिरिक्त एक और कथा भी प्रचलित है कि, प्राचीनकाल में अवन्तिकापुरी में एक वेदपाठी और तपोनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे। एक बार दूषण नामक एक अत्याचारी असुर ने इन परम तेजस्वी ब्राह्मण के तपस्या में विघ्न डालने की कोशीश की। वह असुर ब्रह्माजी के वरदान के प्रभाव से अत्यंत शक्तिशाली हो चुका था और उसके अत्याचार से चारों ओर त्राहि-त्राहि मचा हुआ था।
उसके अत्याचार से ब्राह्मण को दुःखी देखकर कल्याणकारी भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए। उनकी एक हुंकार ने उस दानव को जलाकर राख कर दिया। कहा जाता है कि वो वहाँ हुंकार के साथ प्रकट हुए थे, अतः उनका नाम महाकाल पड़ गया। और वो वहाँ ज्योति स्वरूप में महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी विराजमान हैं।