पशुपतिनाथ: शिव की नगरी का रहस्यमय इतिहास

नेपाल (Nepal) के काठमांडू (Kathmandu) में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) शिवभक्तों के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है। पंचमुखी शिवलिंग (Shiva Linga), पौराणिक कथाएं और दिव्य वातावरण इसे विश्व धरोहर बनाते हैं। माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है।
पशुपतिनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति, पौराणिक इतिहास और आत्मा की शांति का संगम है। [Wikimedia commons]
पशुपतिनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति, पौराणिक इतिहास और आत्मा की शांति का संगम है। [Wikimedia commons]
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नेपाल (Nepal) की राजधानी काठमांडू में बहने वाली बागमती नदी के किनारे स्थित पशुपतिनाथ मंदिर न केवल नेपाल (Nepal) का, बल्कि संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक शिव मंदिर है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है और यह मंदिर शिवभक्तों के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु भारत और दुनिया के विभिन्न कोनों से दर्शन के लिए पहुंचते हैं। पशुपतिनाथ (Pashupatinath ) का अर्थ होता है -'पशु' का अर्थ है सभी जीव-जंतु, 'पति' का अर्थ होता है स्वामी और 'नाथ' का मतलब है भगवान या मालिक। इस प्रकार 'पशुपतिनाथ' (Pashupatinath ) का अर्थ हुआ - जीवों का स्वामी। यह नाम भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो समस्त सृष्टि के प्राणियों के संरक्षक और नियंत्रक हैं। शास्त्रों में शिव को "पशुपति" इसलिए कहा गया है क्योंकि वे मोह और बंधन से मुक्त करने वाले परमात्मा हैं

मंदिर का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर वेदों की रचना से भी पहले अस्तित्व में आ चुका था। हालांकि ऐतिहासिक रूप से इसका स्पष्ट निर्माणकाल ज्ञात नहीं है, लेकिन माना जाता है कि तीसरी शताब्दी में सोमदेव वंश के शासक ने इसका प्रारंभिक निर्माण कराया था।

11वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण हुआ और फिर 17वीं शताब्दी में राजा भूपलेंद्र मल्ला ने इसे वर्तमान भव्य स्वरूप प्रदान किया। कई युद्धों, प्राकृतिक आपदाओं और दीमकों के प्रकोप के कारण यह मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ, लेकिन हर बार इसे श्रद्धा से दोबारा संजोया गया।2015 के भीषण भूकंप में जब पूरे नेपाल में भारी तबाही हुई, तब भी यह मंदिर सुरक्षित रहा। इसका गर्भगृह और शिवलिंग मजबूत और सुरक्षित रहें। लोगों ने इसे चमत्कार और ईश्वरीय संरक्षण का प्रतीक माना है।

पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) पगोडा शैली में निर्मित है, जो नेपाल की पारंपरिक वास्तुकला का प्रतीक है। यह मंदिर लगभग 264 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें 500 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर और स्मारक मौजूद हैं। मंदिर की दो मंजिला छत तांबे की बनी है जिस पर सोने की परत चढ़ाई गई है। मंदिर का मुख्य शिखर 23.7 मीटर ऊंचा है और शिखर के शीर्ष पर 'गजुर' नामक सुनहरा कलश स्थापित है। मंदिर चारों ओर से चांदी के दरवाजों से घिरा है और इसके मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति स्थापित है। चार मुख चार दिशाओं की ओर तथा एक मुख ऊपर की ओर है। पूर्व मुख: तत्पुरुष, पश्चिम मुख: सद्ज्योत, उत्तर मुख: वामदेव या अर्धनारीश्वर, दक्षिण मुख: अघोरा, ऊपर मुख: ईशान की ओर है। मंदिर के ठीक सामने पीतल से बनी नंदी की विशाल प्रतिमा है जो सदैव अपने प्रभु की ओर निहारती रहती है।

यह मंदिर एक जीवित उदाहरण है कि कैसे श्रद्धा, आस्था और समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए भी कोई स्थल अपनी दिव्यता बनाए रख सकता है। Wikimedia commons
यह मंदिर एक जीवित उदाहरण है कि कैसे श्रद्धा, आस्था और समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए भी कोई स्थल अपनी दिव्यता बनाए रख सकता है। Wikimedia commons

पूजन परंपरा और पुजारी

1747 से नेपाल (Nepal) के राजाओं ने भारत के दक्षिण भारत से भट्ट ब्राह्मणों को मंदिर में पूजा करने के लिए आमंत्रित किया था। लंबे समय तक यह परंपरा चली और दक्षिण भारतीय पुजारी ही यहां प्रधान पुरोहित के रूप में पूजन करते रहे। हालांकि हाल के वर्षों में नेपाल (Nepal) सरकार द्वारा स्थानीय नेपाली पुजारियों को भी पूजा का अधिकार दिया गया है।

मंदिर हर दिन सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। दोपहर और शाम के समय थोड़ी देर के लिए पट बंद कर दिए जाते हैं। सबसे उत्तम दर्शन का समय सुबह-सुबह और देर शाम का माना जाता है। मंदिर परिसर को देखने और शांतिपूर्वक घूमने के लिए लगभग 90 से 120 मिनट का समय पर्याप्त होता है।

कहा जाता है कि भगवान शिव एक बार हिरण रूप में यहां ध्यान में लीन हो गए थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और वाराणसी लौटने का आग्रह किया, तो शिव ने नदी के पार छलांग लगाई और उनका सींग चार टुकड़ों में टूट गया। उसी स्थान पर वे चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए। एक बार चरवाहे ने देखा कि उसकी गाय प्रतिदिन एक विशेष स्थान पर अपने आप दूध बहाती है। खुदाई करने पर वहां शिवलिंग प्रकट हुआ। माना जाता है कि जब शिवजी पांडवों से छिपकर भैंसे के रूप में भूमिगत हो गए, तब उनकी पूंछ केदारनाथ में और मुख पशुपतिनाथ में प्रकट हुआ। इसीलिए इसे केदारनाथ का आधा भाग भी कहा जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) के संबंध में यह विश्वास है कि जो व्यक्ति सच्चे भाव से इसके दर्शन करता है, उसे फिर कभी पशु योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता। लेकिन दर्शन का क्रम महत्वपूर्ण है, पहले शिवलिंग, फिर नंदी। यदि क्रम उल्टा हुआ तो विपरीत फल मिल सकता है।

निष्कर्ष

पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति, पौराणिक इतिहास और आत्मा की शांति का संगम है। यह मंदिर एक जीवित उदाहरण है कि कैसे श्रद्धा, आस्था और समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए भी कोई स्थल अपनी दिव्यता बनाए रख सकता है। यदि आप कभी नेपाल (Nepal) जाएं, तो इस पवित्र धाम के दर्शन अवश्य करें, यह एक आध्यात्मिक अनुभव होगा, जिसे आप जीवनभर नहीं भूल पाएंगे। Rh/PS

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