Vasant Panchami: बारात का न्यौता देने देवघर पहुंचते हैं भगवान शिव के श्रद्धालु

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए हिमालय की तराई में स्थित नेपाल से लेकर बिहार के मिथिलांचल इलाके के लोग भगवान शंकर को अपना दामाद मानते हैं।
बारात का न्यौता देने देवघर पहुंचते हैं भगवान शिव के श्रद्धालु (IANS)

बारात का न्यौता देने देवघर पहुंचते हैं भगवान शिव के श्रद्धालु (IANS)

Vasant Panchami

न्यूजग्राम हिंदी: 26 जनवरी को वसंत पंचमी (Vasant Panchami) पर जब पूरे देश में हर जगह देवी सरस्वती (Devi Saraswati) की पूजा-अर्चना होगी, तब झारखंड (Jharkhand) के देवघर (Devghar) में बाबा बैद्यनाथ का तिलक-अभिषेक करने के बाद लाखों लोग अबीर-गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाएंगे। वस्तुत: देवघर में प्रत्येक वसंत पंचमी पर श्रद्धा और उत्सव का अनुपम दृश्य उपस्थित होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए हिमालय की तराई में स्थित नेपाल से लेकर बिहार के मिथिलांचल इलाके के लोग भगवान शंकर को अपना दामाद मानते हैं। शिवरात्रि पर शिव विवाह के उत्सव के पहले इन इलाकों के लाखों लोग वसंत पंचमी के दिन देवघर स्थित भगवान शंकर (Lord Shiva) के अति प्राचीन ज्योर्तिलिंग पर जलार्पण करने और उनके तिलक का उत्सव मनाने पहुंचते हैं। इस बार भी भगवान की ससुराल वाले इलाकों से लगभग डेढ़ लाख श्रद्धालु बुधवार तक देवघर पहुंच चुके हैं। वसंत पंचमी यानी गुरुवार तक यह संख्या दो लाख के ऊपर पहुंचने का अनुमान है।

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देवघर पहुंचे श्रद्धालुओं में मिथिलांचल के तिरहुत, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधुबनी, सहरसा, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मधेपुरा, मुंगेर, कोसी, नेपाल के तराई क्षेत्रों के लोग हैं। इनकी परंपराएं कई मायनों में अनूठी हैं। चूंकि ये लोग खुद को भगवान शंकर की ससुराल का निवासी मानते हैं, इसलिए देवघर पहुंचकर किसी होटल या विश्रामगृह के बजाय खुले मैदान या सड़कों के किनारे ही रुकते हैं। ऐसा इसलिए कि मिथिलांचल में यह धारणा प्रचलित है कि दामाद के घर पर प्रवास नहीं करना चाहिए। श्रद्धालुओं में ज्यादातर लोग बिहार के सुल्तानगंज स्थित गंगा से कांवर में जल उठाकर 108 किलोमीटर की लंबी यात्रा पैदल तय करते हुए यहां पहुंचे हैं। ये लोग वैवाहिक गीत नचारी गाकर भोलेनाथ को रिझा रहे हैं। गुरुवार को जलार्पण के साथ वे बाबा को अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी अर्पित करेंगे। इसके बाद यहां जमकर अबीर-गुलाल उड़ेगा। बिहार के मिथिलांचल में इसी दिन से होली की शुरूआत मानी जाती है।

<div class="paragraphs"><p>देवी सरस्वती (Devi Saraswati) की पूजा-अर्चना </p></div>

देवी सरस्वती (Devi Saraswati) की पूजा-अर्चना

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देवघर के स्थानीय पत्रकार सुनील झा बताते हैं कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर से तीन प्राचीन मेले प्रमुख रूप से जुड़े हैं और लंबे समय से आयोजित होते चले आ रहे हैं। यह तीन मेले हैं भादो मेला, शिवरात्रि मेला और वसंत पंचमी का मेला। श्रद्धालु इस दिन बाबा को तिलक चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बारात लेकर आने का न्यौता देते हैं। यही परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।

आईएएनएस/PT

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