क्यों तुलसी का पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाया जाता? जानिए पूरी कहानी

क्यों तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, इसका कारण सिर्फ़ परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरी कथा और जीवन का बड़ा सबक भी है। इस कहानी से हमें इच्छाओं, मोह और विरक्ति यानी डिटैचमेंट के बारे में समझ मिलती है।
तुलसी का पत्ता गणेश जी
तुलसी का पत्ता गणेश जीSora AI
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हर साल गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) पर लाखों भक्त गणेश जी (Ganesha) को मोदक, दूर्वा घास और लाल फूल चढ़ाते हैं। लेकिन एक चीज़ कभी नहीं चढ़ाई जाती, तुलसी (Tulsi) पत्ता। यही सवाल सबके मन में आता है: आख़िर क्यों तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते? इसका कारण है एक पुरानी कथा, जिसमें तुलसी और गणेश जी का संबंध जुड़ा है।

तुलसी और गणेश जी की कहानी

कहानी है कि एक बार तुलसी देवी ने ध्यान में बैठे गणेश जी को देखा। उन्हें देखकर तुलसी ने विवाह का प्रस्ताव रखा। लेकिन गणेश जी ने मना कर दिया क्योंकि वे ब्रह्मचर्य और विरक्ति का मार्ग चुन चुके थे।

गणेश जी (Ganesh) की इस बात से तुलसी नाराज़ हो गईं और उन्होंने उन्हें श्राप दिया कि कभी न कभी उनका विवाह ज़रूर होगा। जवाब में गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया कि वह पौधा बन जाएँगी। लेकिन साथ ही आशीर्वाद भी दिया कि वह हमेशा भगवान विष्णु (Vishnu) को प्रिय रहेंगी और हर घर में पूजी जाएँगी।

इसी कारण से तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, बल्कि वह केवल भगवान विष्णु और उनके अवतारों (जैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण) को ही अर्पित होती है।

तुलसी गणेश जी के लिए नहीं, विष्णु जी के लिए बनी

इस कहानी से हमें समझ आता है कि तुलसी और गणेश जी की ऊर्जा एक-दूसरे से मेल नहीं खाती। तुलसी भक्ति (Devotion) और समर्पण की प्रतीक हैं, जबकि गणेश जी ज्ञान (Knowledge), बुद्धि (Wisdom) और विरक्ति यानी डिटैचमेंट (detachment) के प्रतीक हैं।

इसलिए तुलसी गणेश जी की नहीं, बल्कि विष्णु जी की बनीं। ठीक वैसे ही जैसे हमारी ज़िंदगी में कई बार हम किसी चीज़ या इंसान को पाने की ख्वाहिश करते हैं, लेकिन वह पूरी नहीं होती। उस समय लगता है कि किस्मत ने हमें धोखा दिया, लेकिन वास्तविकता में कहीं बेहतर चीज़े हमारे लिए लिखी होती है। यही कारण है कि क्यों तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, क्योंकि वह विष्णु जी के लिए बनी थीं।

तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, क्योंकि वह विष्णु जी के लिए बनी थीं।
तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, क्योंकि वह विष्णु जी के लिए बनी थीं।Sora AI

इच्छा, मोह और विरक्ति का सबक

यह कथा हमें गहरी सीख देती है। हमारी ज़िंदगी इच्छाओं से भरी होती है। हम सोचते हैं कि अगर यही मिल जाए तो सब सही हो जाएगा। लेकिन हर इच्छा पूरी नहीं होती। कई बार न मिलना ही आशीर्वाद होता है। गणेश जी का “ना” और उनका डिटैचमेंट (detachment) हमें सिखाता है कि मोह में बंधना दुख देता है।

असली शांति तब आती है जब हम मेहनत करें लेकिन परिणाम को भगवान पर छोड़ दें। इसीलिए तुलसी का गणेश जी से अलग होना यह बताता है कि जब चीज़ें हमारी उम्मीद के मुताबिक़ नहीं होतीं, तब भी कुछ बेहतर लिखा होता है। मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा।

आज की ज़िंदगी के लिए सबक

आज लोग हर चीज़ से बहुत ज़्यादा जुड़ जाते हैं, रिश्तों से, पैसों से, काम से, सपनों से। जब चीज़ें टूटती हैं या पूरी नहीं होतीं, तो दर्द होता है। यही मोह है।

लेकिन अगर हम गणेश जी की तरह मोह त्यागदे और चीज़ो को भगवान भरोसे छोड़दे, तो मन की शांति बनी रहती है। डिटैचमेंट (Detachment) का मतलब प्यार या कोशिश छोड़ना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि सब कुछ हमारे बस में नहीं है। जैसे तुलसी ने गणेश जी को चाहा, पर उनकी मंज़िल विष्णु जी बने। उसी तरह हमारी मंज़िल भी कई बार अलग होती है, और वही हमारे लिए सबसे अच्छा होता है।

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त्योहार और परंपरा

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) पर यह परंपरा साफ़ दिखती है। भक्त गणेश जी (Ganesha Ji) को दूर्वा, मोदक और फूल चढ़ाते हैं, लेकिन क्यों तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते, इस नियम का पालन हमेशा करते हैं। वहीं कुछ हफ़्तों बाद तुलसी विवाह में, वही तुलसी देवी बड़े धूमधाम से भगवान विष्णु को अर्पित होती हैं।

 मेहनत करो, चाहत रखो, लेकिन परिणाम को भगवान पर छोड़ दो।
मेहनत करो, चाहत रखो, लेकिन परिणाम को भगवान पर छोड़ दो।Sora AI

निष्कर्ष

तो अब हमें पता है कि क्यों तुलसी पत्ता गणेश जी को नहीं चढ़ाते। यह सिर्फ़ एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का गहरा संदेश है।हर इच्छा पूरी नहीं होती, हर मोह अच्छा नहीं होता। कई बार जो चीज़ हमें नहीं मिलती, उसी मै हमारी भलाई होती है। गणेश जी और तुलसी की कथा हमें यही सिखाती है, मेहनत करो, चाहत रखो, लेकिन परिणाम को भगवान पर छोड़ दो।यही असली गणेश ज्ञान है और यही कारण है कि गणेश चतुर्थी पर भी तुलसी पत्ता उन्हें नहीं चढ़ाया जाता। (Rh/BA)

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