अन्नकूट उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ मनाया गया बड़े ही धूमधाम से यह त्योहार

पौराणिक कथा के अनुसार देवराज इंद्र के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा करने के लिए 7 दिन साथ रात एक गोवर्धन पर्वत को बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर श्रीकृष्ण ने धारण किया था श्री कृष्ण ने इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा भी की थी और तब से गोवर्धन पूजा का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया।
अन्नकूट उत्सव:- गोवर्धन पूजा पूरे भारत में ही बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है [Wikimedia Commons]
अन्नकूट उत्सव:- गोवर्धन पूजा पूरे भारत में ही बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है [Wikimedia Commons]

गोवर्धन पूजा पूरे भारत में ही बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन भारत का एक ऐसा शहर है जहां इस पूजा की रौनक ही अलग होती है। भारत का वह शहर है मथुरा जहां गोवर्धन पूजा के दिन हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आकर कृष्ण भक्ति में लीन हो जाते हैं। देश के कुछ हिस्सों में गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है इस दिन भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत और गौ माता की पूजा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पर्वत की मान्यता विदेश तक फैली हुई है। और हर साल लाखों विदेशी श्रद्धालु परिक्रमा के लिए मथुरा आते हैं। तो चलिए मथुरा में गोवर्धन पूजा की रौनक कैसी थी?

मथुरा में क्या था माहौल

गोवर्धन पूजा का उत्सव बज के प्रमुख उत्सवों में से एक है। इस दिन बज के हर घर में और मंदिरों में सभी गोबर से अपने-अपने घरों में भगवान कृष्ण की गोवर्धन पर्वत बनाते हैं और साथ ही उसकी पूजा भी करते हैं। इसी के साथ भगवान को इस दिन कड़ी चावल खीर जैसे विशेष व्यंजनों का भोग भी लगाया जाता है जिसे अन्नकूट कहा जाता है।

भगवान को इस दिन कड़ी चावल खीर जैसे विशेष व्यंजनों का भोग भी लगाया जाता है जिसे अन्नकूट कहा जाता है।[Wikimedia Commons]
भगवान को इस दिन कड़ी चावल खीर जैसे विशेष व्यंजनों का भोग भी लगाया जाता है जिसे अन्नकूट कहा जाता है।[Wikimedia Commons]

वृंदावन के राधा दामोदर मंदिर में भी गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया जिसमें भगवान को छप्पन भोग लगाए गए। सती मंदिर में रखी विशेष गोवर्धन शीला के भी दर्शन भक्तों ने किया। पौराणिक कथा के अनुसार देवराज इंद्र के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा करने के लिए 7 दिन साथ रात एक गोवर्धन पर्वत को बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर श्रीकृष्ण ने धारण किया था श्री कृष्ण ने इंद्र के घमंड को चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा भी की थी और तब से गोवर्धन पूजा का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया।

गोवर्धन शिला का महत्त्व

मंदिर सेवायत दामोदर चंद्र गोस्वामी ने बताया कि इस गोवर्धन शीला को स्वयं भगवान कृष्ण ने मंदिर के गोस्वामी और ब्रज के छह प्रमुख को स्वामियों में से एक श्री सनातन गोस्वामी को दी थी।

 जो भी भक्त इस मंदिर और शीला की चार बार परिक्रमा करता है उसे गोवर्धन की साथ कोर्स की परिक्रमा का फल भी मिलता है।[Wikimedia Commons]
जो भी भक्त इस मंदिर और शीला की चार बार परिक्रमा करता है उसे गोवर्धन की साथ कोर्स की परिक्रमा का फल भी मिलता है।[Wikimedia Commons]

शीला एक अलौकिक शीला है जिस पर भगवान कृष्ण के चरण चिन्ह गौ माता के चरण चिन्ह भगवान की बांसुरी और लकुटी के चिन्ह अंकित है। साथ जो भी भक्त इस मंदिर और शीला की चार बार परिक्रमा करता है उसे गोवर्धन की साथ कोर्स की परिक्रमा का फल भी मिलता है।

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