रॉबर्ट सोलोमन – ईसाई धर्मांतरण से आर.एस.एस. प्रचारक बनने तक की कहानी

रोबोट सोलोमन ईसाई से हिंदू बनने तक का सफर।(Pexels)
रोबोट सोलोमन ईसाई से हिंदू बनने तक का सफर।(Pexels)

जिस धर्म का रॉबर्ट सोलोमन प्रचार किया करते थे और लोगों का धर्म परिवर्तन करवाते थे, 1986 में उसी ईसाई धर्म को त्याग कर उन्होंने हिंदू धर्म अपनाया।सनातन धर्म को अपनाने के साथ ही उन्होंने अपना नाम सुलेमान से डॉ. सुमन कुमार में परिवर्तित किया। 1986 में रॉबर्ट सोलोमन अशोक वार्ष्णेय के संपर्क में आए; राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के वरिष्ठ पदाधिकारी और आरोग्य भारती के तत्कालीन राष्ट्रीय संगठन सचिव, हिंदू जागरण मंच के ठाकुर राम गोविंद सिंह और स्वतंत्र रंजन। उसी वर्ष रॉबर्ट सोलोमन आर.एस.एस. में शामिल हो गए।

इंडोनेशिया में रहने वाले रॉबर्ट सोलोमन ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा का अध्ययन किय। साथ ही साथ वह पादरी के रूप में चर्च में युक्त भी हुए।लगभग 1982 के आस पास की बात है जब उन्हें मिशन देकर तमिलनाडु और देश के अन्य हिस्सों में भेजा गया ताकि वह "भारत के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करें"। उनसे आर.एस.एस का पैटर्न अध्ययन करने के लिए भी कहा गया। उन्हें अंधेरे में रखकर, उनसे सत्य छुपा गया। उन्हें बताया गया कि किस तरह आर.एस.एस के संगठन में ( ईसाइयों की) पवित्र पुस्तक को जलाते हैं। बल्कि उनको आर.एस.एस. की जासूसी तक करने के निर्देश मिले थे। जब उन्होंने चर्च को अपनी रिपोर्ट देने के लिए आर.एस.एस को नजदीकी से देखा तो इसने उनके बुद्धि और धारणा को खोल दिया। "वह आर.एस.एस से काफी प्रेरित हुए और उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया"। पुराने समय के आर.एस.एस कार्यकर्ता राजकुमार ने कहा।

राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता।(Wikimedia Commons)

उन्होंने आर.एस.एस. की शाखा की यात्रा उत्तर प्रदेश के उरई गांव से शुरू की और वह जल्द ही नियमित आगंतुक बन गए। गोरखपुर में आयोजित सम्मेलन के दौरान उन्हें आर.एस.एस. के तरफ से जिम्मेदारी भी दी गई तथा उन्हें हिंदू जागरण मंच के लिए काम करने के लिए कहा गया था। एक बार झारखंड में, उन्होंने चर्च के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों को धर्मांतरण पर चर्च की स्थिति पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया था। हमेशा की तरह चर्च बहस से भाग गया। 2004 में जब उन्हें झारखंड भेजा गया, जहां उनकी लड़ाई वास्तविक रूप में चर्च से शुरू हुई, क्योंकि चर्च का जड़े इतनी मजबूत थी कि चर्च ने आदिवासी समाज में बहुत गहरी पैठ बना ली थी जिससे कि एक बार में सदियों पुराने धर्मांतरण की साजिश को तोड़ना नामुमकिन सा लगने लगा था।

उन्होंने आदिवासियों को विश्वास दिलाया कि उनका धर्म परिवर्तन मिशनरियों की साजिश है और उन्हें अपना धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। सनातन और सरना को एक करने की रणनीति काफी हद तक सफल रही क्योंकि धर्म परिवर्तन करने वाले 8000 आदिवासी अपने धर्म में लौट आए थे। आज वे हिंदू जागरण मंच के उत्तर पूर्व क्षेत्र (झारखंड-बिहार) के संगठन मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे हैं और 3 साल आर एस एस में प्रशिक्षण भी ले चुके हैं।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com