![सहवाग ने साबित किया कि असली बल्लेबाज़ वही होता है जो आंकड़ों से नहीं, आत्मविश्वास से खेलता है। [Wikimedia commons]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-11%2Fda3q8ych%2FVirenderSehwagthecaptainofMCCgetsreadytofaceadeliveryduringthe2014EnglishcountyseasonlaunchagainstDurhamattheSheikhZayedCricketStadiumAbuDhabiUAE.JPG.jpg?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
क्रिकेट (Cricket) के मैदान पर जब वीरेंद्र सहवाग (Sehwag) बल्लेबाज़ी के लिए उतरते थे, तो ऐसा लगता था की मानो गेंदबाज़ों की शामत आ गई हो। उनके शॉट्स में वो निडरता थी जो किसी तूफ़ान की आहट सी लगती थी। सहवाग का अंदाज़ न तो किसी तकनीक में बंधा था, और ही आंकड़ों की गिनती में। उन्हें फर्क नहीं पड़ता था कि वो 99 पर हैं या 199 पर या फिर 295 पर, उनके लिए अगली गेंद बस एक मौका था उसे बाउंड्री पार भेजने का।
295 पर छक्का मारने वाला इकलौता खिलाड़ी
सहवाग (Sehwag) की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने कभी अपने निजी रिकॉर्ड के लिए नहीं खेला । जब दूसरे खिलाड़ी 90s में पहुँचते हैं, तो सावधानी बढ़ जाती है, स्ट्राइक रोटेट करने की कोशिश होती है। लेकिन सहवाग के लिए ‘सेफ्टी’ शब्द शायद उनकी डिक्शनरी में ही नहीं था। जब वह 295 रन पर थे, तब भी उन्होंने छक्का मारकर तिहरा शतक पूरा किया। ऐसा साहस और आत्मविश्वास (Confidence) भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) में आज के समय में दुर्लभ हो गया है।
एक टीवी शो के दौरान, पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने सहवाग (Sehwag) से पूछा कि वो हर बार छक्का लगाकर ही अपना शतक या दोहरा शतक क्यों पूरा करते थे ? तो फिर सहवाग का जवाब चौंकाने वाला था, लेकिन उनका जवाब गहरी सोच वाला भी था। उन्होंने कहा, अगर मैं सिंगल लेता तो मुझे 6 गेंदें खेलनी पड़तीं, यानी 6 बार आउट होने का खतरा होता। लेकिन छक्का मारने का मतलब है एक ही गेंद पर छक्का मारने मौका। तो मैंने वही रास्ता चुना, एक मौका, एक वार। ये बात उनके माइंडसेट को यह दर्शाती है, की हमेशा जोखिम उठाने को तैयार होना चाहिए, लेकिन सोच-समझ कर।
जब सचिन ने दी थी ‘बैट से मारने’ की धमकी
सहवाग (Sehwag) ने एक मजेदार किस्सा कपिल शर्मा के शो पर साझा किया। 2004 में मुल्तान टेस्ट में जब वह 309 रन बना रहे थे, तब उन्होंने बताया कि उन्होंने 100 रन के बाद कुछ छक्के मारे थे। तब उनके साथ क्रीज़ पर सचिन तेंदुलकर थे। सचिन ने उन्हें चेतावनी दी, की "अब तू छक्का नहीं मारेगा। अगर मारा तो बैट से मारूंगा। तू फिर आउट हो जाएगा।" सचिन जानते थे कि सहवाग कितने आवेगी हैं। लेकिन सहवाग ने 295 तक इंतज़ार किया, और फिर सकलैन मुश्ताक की गेंद पर छक्का मार दिया। उस पारी में सहवाग भारत के पहले ट्रिपल सेंचुरियन बने।
सहवाग, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी उस दौर के रोल मॉडल थे, जिनकी बल्लेबाजी में आत्मविश्वास और स्थिति को पढ़ने की कला थी। अब अधिकतर युवा खिलाड़ी टी-20 फ्रैंचाइज़ी संस्कृति से प्रभावित हैं जहाँ एक सुरक्षित स्कोर भी काफ़ी होता है।
सहवाग का आत्मविश्वास
सहवाग (Sehwag)का अंदाज़ "See the ball, hit the ball" था। उनकी सोच में ज्यादा विश्लेषण नहीं था, बस खेल को दिल से खेलने की चाह थी। अगर सोच लिया है कि गेंदबाज़ को लॉन्ग ऑन पर भेजना है, तो वो वहीं मारते थे। उनका आत्मविश्वास (Confidence) उनकी आँखों में झलकता था, 94 पर भी वही अंदाज़, और 294 पर भी उनका वही अंदाज़ था।
वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) की ये साहसी बल्लेबाज़ी आज भी क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में बसी है। उनकी 309 रन की पारी, या 219 रन की वनडे इनिंग, या फिर 195 रन पर छक्का लगाकर आउट हो जाना, हर पारी में एक कलाकार की झलक दिखती थी। उनकी बैटिंग दर्शकों को रोमांचित करती थी। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने न केवल टीम को तेज़ शुरुआत दी, बल्कि दर्शकों को यह भरोसा भी दिया कि वह कुछ अलग देखने जा रहे हैं।
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हर युग के अपने खिलाड़ी होते हैं। लेकिन सहवाग जैसे खिलाड़ियों से आज की पीढ़ी यह ज़रूर सीख सकती है कि कभी-कभी अपने दिल की सुनो। डर को परे रखो, और खेल को एन्जॉय करो। रन तभी बनते हैं जब खिलाड़ी निडर होकर खेलता है।
निष्कर्ष
295 रन पर छक्का मारना क्रिकेट (Cricket) इतिहास की सबसे यादगार घटनाओं में से एक है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक सोच है, निडरता की सोच, आत्मविश्वास (Confidence) की सोच, और खेल को जीने की सोच। वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) की एक विरासत हैं, जो सिखाते हैं कि क्रिकेट (Cricket) केवल रन बनाने का खेल नहीं, बल्कि दिल जीतने का भी खेल है। [Rh/PS]