

वैश्विक स्तर (Global Level) पर अमिट छाप छोड़ने वाले विश्वनाथन आनंद ने अपनी प्रतिभा और लगन के साथ दुनिया के चुनिंदा लोगों के बीच अपना वर्चस्व कायम किया है। 11 दिसंबर 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुराई (तत्कालीन मद्रास) में जन्मे आनंद को बचपन से ही शतरंज में रुचि थी। विश्वनाथन आनंद बेहद तेज दिमाग के बच्चे थे। मां सुशीला ने बेटे की प्रतिभा को पहचान लिया था। ऐसे में उन्हें शतरंज से परिचित कराया। महज 6 साल की उम्र में ही विश्वनाथन आनंद खुद से बड़े बच्चों को इस खेल में मात देने लगे थे।
विश्वनाथन आनंद (Viswanathan Anand) के पिता को इस बीच फिलीपींस में जॉब का ऑफर मिला। माता-पिता के साथ महज 8 साल के विश्वनाथन आनंद मनीला पहुंच गए, जहां उन्होंने इस खेल के गुर सीखे। ये वो दौर था, जब इस खेल में रूस और यूरोप के खिलाड़ियों का दबदबा था।
महज 14 साल की उम्र में ही विश्वनाथन आनंद सब-जूनियर शतरंज चैंपियनशिप (Chess Championship) अपने नाम कर चुके थे। 15 साल की उम्र में उन्होंने सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय मास्टर बनने का गौरव हासिल कर लिया था। यही वजह रही कि उन्हें 'लाइटनिंग किड' का उपनाम मिला।
साल 1985 में विश्वनाथन आनंद को 'अर्जुन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। साल 1988 में विश्वनाथन आनंद देश के पहले ग्रैंडमास्टर बन गए। यह पूरे देश के लिए गौरव की बात थी। विश्वनाथन आनंद की इस उपलब्धि ने देश के लाखों युवाओं को शतरंज से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। इसी साल उन्हें 'पद्मश्री अवॉर्ड' से भी सम्मानित किया गया।
साल 1995 में विश्वनाथन आनंद ने गैरी कास्पारोव के खिलाफ अपना पहला विश्व शतरंज चैंपियनशिप मैच खेला। न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की 107वीं मंजिल में खेले गए इस मैच में भले ही आनंद जीत दर्ज नहीं कर सके, लेकिन विश्व में अपनी पहचान बना ली थी। साल 1997, 1998, 2003, 2004 और 2008 में आनंद ने शतरंज ऑस्कर जीते।
साल 2000 में आनंद ने तेहरान में आयोजित फिडे विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीती। इसके बाद 2007, 2008, 2010 और 2012 में आनंद ने इस खेल में अपनी बादशाहत कायम रखी और वह 21 महीनों तक वर्ल्ड नंबर-1 रहे।
विश्वनाथन आनंद ने अपनी कड़ी मेहनत, विनम्रता, निरंतरता और समर्पण के साथ मिसाल पेश की है। उन्होंने प्रज्ञानंद और गुकेश जैसी नई पीढ़ी को प्रेरित किया है, जिन्होंने आनंद के बाद इस खेल में देश का नाम रोशन किया।
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