D Voters : भारत में होने वाले आम चुनाव को दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया माना जाता है। इन आम चुनाव में क़रीब एक अरब लोग वोट देने के योग्य हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि असम में एक ऐसी कैटेगरी के लोग हैं, जो वोट नहीं डाल सकते। उन्हें डी-वोटर्स या संदिग्ध मतदाता (डाउटफुल वोटर्स) कहा जाता है। असम सरकार के अनुसार, इस समय ऐसे वोटरों की संख्या क़रीब एक लाख बताया जा रहा है। इन लोगों के नागरिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस, सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट जैसे नागरिकता से जुड़े मुद्दों के बीच डी-वोटर भी एक बड़ा मुद्दा है।
हमारा असम राज्य बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करता है। ऐसे में राज्य ने कई बार माइग्रेशन झेला है। बहुत सारे लोग युद्ध और उत्पीड़न से बचकर यहां आएं। साल 1979 में असम के कई संगठनों ने 6 साल लंबा प्रदर्शन शुरू किया। इन संगठनों की मांग थी कि जो लोग बिना उचित दस्तावेज़ों के भारत आए हैं, उनकी पहचान की जाए और उन्हें निर्वासित किया जाए। इसके बाद तय किया गया कि जो लोग 24 मार्च, 1971 यानी बांग्लादेश की आज़ादी के लिए हुए युद्ध से पहले भारत आए हैं उन्हें भारतीय नागरिक के तौर पर मान्यता दी जाएगी। इस तारीख के बाद आने वाले लोग विदेशी होंगे।
साल 1997 में भारतीय चुनाव आयोग ने विदेशी नागरिकों की पहचान के लिए एक अभियान चलाया। उसमें ऐसे लोगों की पहचान कि गई जिनकी नागरिकता संदिग्ध थी, उनके मामलों की शुरुआती जांच के बाद फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेज दिया गया। ये ट्रिब्यूनल्स, अर्ध-न्यायिक निकाय होते हैं, जिनका गठन ये तय करने के लिए किया जाता है कि भारतीय नागरिक कौन हैं। ऐसे संदिग्ध वोटरों के मामले की सुनवाई होती रहती है और उनके नाम के आगे 'डी' लगा दिया जाता है, उन्हें वोटिंग से रोक दिया जाता है।
चुनाव आयोग के मुताबिक़, साल 1997 में 3.13 लाख लोगों की पहचान डी- वोटर्स के तौर पर की गई थी। फरवरी 2024 में असम सरकार की तरफ़ से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, मतदाता सूची में क़रीब 97,000 डी-वोटर्स हैं।डी-वोटर्स से जुड़ी पूरी प्रक्रिया अव्यवस्थित है। ज़्यादातर लोगों के पास अपने केस से जुड़े दस्तावेज ही नहीं थे। कुछ को ये भी नहीं पता था कि उनके मामलों का वकील कौन है। कानून के जानकार बताते हैं कि कई मामलों में डी-वोटर्स की मार्किंग मनमाने तरीके से की गई और कई मामलों में डी-वोटर्स के परिवार वालों को भारतीय नागरिक मान लिया गया है लेकिन उन्हें संदिग्ध ही माना गया है। ऐसे में कभी-कभी उन्हें राशन और आधार कार्ड हासिल करने में दिक्कत आती है।