जब देवी भी होती हैं रजस्वला! जानिए कामाख्या मंदिर का चौंकाने वाला रहस्य

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई ऐसा मंदिर भी हो सकता है जहां देवी को एक सामान्य स्त्री की तरह मासिक धर्म आता है? जी हां, ये कोई कल्पना नहीं बल्कि भारत के असम राज्य में स्थित कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) की सच्चाई है।
कामाख्या देवी मंदिर  (Kamakhya Devi Temple) की तस्वीर
असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya Devi Temple)[X]
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हम जब देवी की पूजा करते हैं, तो उन्हें शक्ति, ममता और पवित्रता का प्रतीक मानते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई ऐसा मंदिर भी हो सकता है जहां देवी को एक सामान्य स्त्री की तरह मासिक धर्म आता है? जी हां, ये कोई कल्पना नहीं बल्कि भारत के असम राज्य (Assam State) में स्थित कामाख्या मंदिर की सच्चाई है। यहां हर साल एक ऐसा अनोखा उत्सव मनाया जाता है जिसमें देवी के 'रजस्वला' होने का जश्न (Celebration of the Goddess' Menstruation) मनाया जाता है।

माँ कामाख्या की तस्वीर
हम जब देवी की पूजा करते हैं, तो उन्हें शक्ति, ममता और पवित्रता का प्रतीक मानते हैं। [X]

माना जाता है कि इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रहस्यमय ढंग से लाल हो जाता है और मंदिर में देवी की मूर्ति के बजाय योनि की पूजा (The Vagina Is Worshipped) होती है। यह परंपरा न सिर्फ देवी को मानवीय रूप देती है बल्कि मासिक धर्म (Periods) जैसे विषय को शक्ति और श्रद्धा से जोड़ती है, वो भी उस देश में, जहां आज भी कई जगहों पर पीरियड्स को पाप या अशुद्धि समझा जाता है। आखिर क्या है इस मंदिर का रहस्य? क्यों देवी के मासिक धर्म (Periods) को यहां आस्था से जोड़ा जाता है? और क्यों प्रसाद में दी जाती है 'रक्त रंजित' लाल कपड़े की एक चुटकी?

कामाख्या मंदिर कहां है और क्यों है यह इतना खास?

असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya Devi Temple), जो भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह कोई साधारण मंदिर नहीं है, बल्कि यह देवी सती के योनि अंग की पूजा (The Vagina Is Worshipped) का स्थल है। मान्यता है कि जब भगवान शिव देवी सती के मृत शरीर को लेकर आकाश में विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनका शरीर 51 टुकड़ों में विभाजित किया था। उन टुकड़ों में से योनि अंग यहां कामरूप में गिरा, और तभी से यह स्थान अत्यंत शक्तिशाली और पूजनीय माना जाता है।

कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है,
कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक योनि आकृति (yoni-shaped stone) की पूजा होती है, [X]

कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक योनि आकृति (yoni-shaped stone) की पूजा होती है, जो एक गुफा के भीतर जलस्रोत से सदा गीली रहती है। इस मंदिर में मासिक धर्म को नारी की सृजनात्मक शक्ति के प्रतीक रूप में पूजा जाता है, और यही इसे पूरे भारत में अलग बनाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में मंदिर की शक्ति बढ़ जाती हैं और यहां आने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर साल जून महीने में यहां चार दिन तक "अम्बुबाची मेला" ("Ambubachi Mela") मनाया जाता है, जिसे देवी के मासिक धर्म की अवधि माना जाता है। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और देवी को विश्राम दिया जाता है। चौथे दिन मंदिर फिर से खुलता है और भक्तों को रजस्वला देवी का प्रसाद दिया जाता है, जिसमें एक लाल रंग का कपड़ा शामिल होता है, जिसे देवी के मासिक रक्त से रंजित माना जाता है।

भक्तों को रजस्वला देवी का प्रसाद दिया जाता है, जिसमें एक लाल रंग का कपड़ा शामिल होता है,
भक्तों को रजस्वला देवी का प्रसाद दिया जाता है, जिसमें एक लाल रंग का कपड़ा शामिल होता है, [X]

तीन दिन का लगता है मेला

कामाख्या देवी मंदिर में हर साल देवी के पीरियड्स के दौरान तीन दिनों तक मेला लगता है जिसे अंबुबाची मेला कहा जाता है। यह मेला हर साल 22 जून को शुरु होता है और 26 जून तक चलता है। इस दौरान 22 जून को देवी कामाख्या एकांत में चली जाती है और उनके दर्शन नहीं किए जा सकते। फिर तीन दिन के बाद पीरियड्स खत्म होने पर उन्हें स्नान व श्रृंगार कराया जाता है। इसके बाद 26 जून को उनके दर्शन किए जाते हैं।

कामाख्या देवी मंदिर में हर साल देवी के पीरियड्स के दौरान तीन दिनों तक मेला लगता है
कामाख्या देवी मंदिर में हर साल देवी के पीरियड्स के दौरान तीन दिनों तक मेला लगता है [X]

क्यों लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र मंदिर?

कामाख्या मंदिर से जुड़ी एक सबसे रहस्यमयी और चमत्कारी बात ये मानी जाती है कि हर साल जून महीने में ब्रह्मपुत्र नदी का पानी कुछ दिनों के लिए लाल हो जाता है। दरअसल, असम के तंत्र परंपरा और लोकमान्यताओं के अनुसार, कामाख्या देवी हर वर्ष इसी समय ‘रजस्वला’ यानी मासिक धर्म से गुजरती हैं। माना जाता है कि इस दौरान मंदिर के गर्भगृह में मौजूद प्राकृतिक ‘योनि-कुण्ड’ से एक विशेष प्रकार का लाल तरल बाहर निकलता है, जो जलधारा के ज़रिए ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाता है।

‘योनि-कुण्ड’ की तस्वीर
‘योनि-कुण्ड’ से एक विशेष प्रकार का लाल तरल बाहर निकलता है, जो जलधारा के ज़रिए ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाता है। [Sora Ai]

तीन दिनों तक मंदिर के द्वार बंद रहते हैं, और न तो पूजा होती है, न ही कोई धार्मिक अनुष्ठान। इसे देवी के विश्राम के दिन माना जाता है। चौथे दिन जब मंदिर के कपाट खुलते हैं, तब भक्तों को ‘रजस्वला वस्त्र’ (लाल रंग का कपड़ा जो गर्भगृह में रखा गया होता है) प्रसाद स्वरूप मिलता है।

कामाख्या मंदिर: तंत्र-मंत्र साधना का भी रहस्यमयी केंद्र

असम के नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर सिर्फ एक देवी मंदिर नहीं, बल्कि भारत के प्रमुख तांत्रिक केंद्रों में से एक माना जाता है। यह मंदिर दशमहाविद्याओं की उपासना का स्थल है, जहां विशेष रूप से तांत्रिक साधक और साध्वियाँ साधना करने आते हैं। खासकर अंबुबाची मेले के दौरान हजारों तांत्रिक देशभर से यहां जुटते हैं। मान्यता है कि कामाख्या देवी स्वयं तंत्र विद्या की अधिष्ठात्री हैं।

कामाख्या मंदिर सिर्फ एक देवी मंदिर नहीं, बल्कि भारत के प्रमुख तांत्रिक केंद्रों में से एक माना जाता है।
असम के नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर सिर्फ एक देवी मंदिर नहीं, बल्कि भारत के प्रमुख तांत्रिक केंद्रों में से एक माना जाता है। [X]

यहां पूजा की परंपरा वैदिक नहीं, बल्कि तांत्रिक विधि से होती है। मंदिर का गर्भगृह, जहाँ देवी की 'योनि' स्थित है, वह तांत्रिक शक्ति का सबसे शक्तिशाली स्थान माना जाता है। साधक यहां तांत्रिक अनुष्ठानों द्वारा शक्ति की कृपा प्राप्त करने और सिद्धियाँ पाने की कोशिश करते हैं। यहां काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी जैसी महाविद्याएं एक साथ विराजमान हैं, जो इसे अद्वितीय बनाती हैं। इसलिए कामाख्या को केवल श्रद्धा का नहीं, बल्कि गूढ़ और रहस्यमयी तांत्रिक विद्या का जीवंत केंद्र भी माना जाता है।

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कामाख्या मंदिर इस विचार को मजबूती देता है कि मासिक धर्म कोई अपवित्र या शर्म की बात नहीं, बल्कि सृजन और शक्ति का प्रतीक है। यही कारण है कि यहां देवी के ‘रजस्वला’ होने को पूजनीय माना जाता है। भक्तों का मानना है कि जब देवी खुद रजस्वला हो सकती हैं, तो महिलाओं के इस जैविक चक्र को लेकर समाज में जो वर्जनाएं हैं, उन्हें तोड़ना चाहिए। यही संदेश अंबुबाची मेला भी देता है। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि यह लाल रंग मंदिर के गर्भगृह में डाले गए लाल चंदन या लाल वस्त्रों के रंग से पानी में मिलकर आता है। लेकिन स्थानीय लोग इसे देवी के चमत्कार और आस्था का प्रमाण मानते हैं। [Rh/SP]

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