हथुआ राज : विद्रोह, वैभव और थावे वाली मां की आस्था से जुड़ा बिहार का गौरवशाली इतिहास

बिहार का हथुआ राज (Hathua Raj) सिर्फ़ वैभव और ऐश्वर्य की कहानी नहीं, बल्कि विद्रोह (Rebellion), आस्था (Faith) और राजनीति का संगम है। फतेह शाही (Fateh Shahi) की अंग्रेज़ों से टक्कर, थावे वाली मां की कृपा और कृष्ण प्रताप शाही (Krishna Pratap Shahi) का आधुनिक वैभव, ये सब मिलकर हथुआ को बिहार की स्मृतियों में अमर बनाते हैं।
बिहार का हथुआ राज अपनी प्राचीनता और वैभव के लिए मशहूर रहा है। इसका इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना माना जाता है।
बिहार का हथुआ राज अपनी प्राचीनता और वैभव के लिए मशहूर रहा है। इसका इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना माना जाता है।(AI)
Published on
4 min read

बिहार का हथुआ राज (Hathua Raj) अपनी प्राचीनता और वैभव के लिए मशहूर रहा है। इसका इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना माना जाता है। इसकी नींव राजा बीरसेन भूमिहार ने रखी थी। यह वंश आगे चलकर बाघोचिया राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हथुआ राज की ज़मींदारी 561 वर्ग मील में फैली थी और इसमें बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँव शामिल थे। समय के साथ हथुआ नरेशों का राजनीतिक प्रभाव बढ़ता गया। मुग़ल शासकों से उनके संबंध घनिष्ठ रहे। अकबर के समय में राजा कल्याण मल को "महाराजा" की उपाधि दी गई। इस तरह यह राजवंश धीरे-धीरे सामंती शक्ति से क्षेत्रीय राजनीति का अहम हिस्सा बन गया।

मुग़लों से संबंध और बढ़ता प्रभाव

हथुआ राज (Hathua Raj) का संबंध मुग़लों से भी जुड़ा रहा है । 1539 में जब हुमायूं चौसा की लड़ाई हारकर भाग रहे थे, तब हथुआ के राजा जय मल ने उनकी मदद की। आभार स्वरूप हुमायूं ने उन्हें चार परगने भेंट की। इसी के आधार पर बाद के जितने भी शासक थे सभी को शाही मान्यता मिली। अकबर ने राजा कल्याण मल को सम्मानित किया। ताकि इससे हथुआ राज को वैधता और ताकत दोनों मिल सके। दरअसल, हथुआ नरेश समय की परिस्थितियों को भांपकर सत्ता से रिश्ते बनाने में माहिर थे।

महाराजा फतेह शाही (1767–1785) हथुआ राज के सबसे चर्चित नरेश रहे हैं। उन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया और लगभग 20 वर्षों तक उन्हें परेशान करते रहे। फतेह शाही के सिर पर 20,000 रुपये का इनाम रखा गया। वारेन हेस्टिंग्स को उनके डर से चुनार के किले में पनाह लेनी पड़ी। उस दौर की एक कहावत मशहूर हुई जिसको ऐसे कहते हैं - घोड़ा पर हौदा, हाथी पर जीन, भागा चुनार को वारेन हिस्टीन। फतेह शाही ने अंग्रेज़ों से लगान न देने का ऐलान किया। उन्होंने जंगलों को अपना गढ़ बनाया और गुरिल्ला युद्ध छेड़ा।

लोककथाओं के अनुसार, युद्ध से पहले फतेह शाही (Fateh Shahi) को सपने में थावे वाली मां का आशीर्वाद मिला। देवी ने आदेश दिया कि वो काबुल नरेश से युद्ध करें। मां के आशीर्वाद से उनको शक्ति मिला और उनके वरदान से फतेह शाही विजयी हुए। युद्ध के बाद जंगल में विश्राम करते समय उन्हें फिर स्वप्न में देवी का आदेश मिला। आदेश यही था कि खुदाई में देवी की प्रतिमा जिस जगह पर निकली है, वहीं थावे मंदिर की स्थापना की जाए फिर वहीं थावे देवी मंदिर की स्थापना हुई। आज भी यह मंदिर आस्था (Faith) का बड़ा केंद्र है।

महाराजा फतेह शाही (1767–1785) हथुआ राज के सबसे चर्चित नरेश रहे हैं।
महाराजा फतेह शाही (1767–1785) हथुआ राज के सबसे चर्चित नरेश रहे हैं। (AI)

राजवंश में फूट और अंग्रेज़ों का खेल

फतेह शाही (Fateh Shahi) के छोटे भाई बसंत शाही अंग्रेज़ों के करीब थे। जब विद्रोह (Rebellion) का दौर चल रहा था, तब दोनों भाइयों में अविश्वास बढ़ गया। फतेह शाही ने उन्हें गद्दार मानकर उनका सिर कटवा दिया। यहीं से दोनों भाई के परिवार में दुश्मनी शुरू हो गई और इसके बाद परिवार दो हिस्सों में बंट गया। पहला फतेह शाही की शाखा, जिन्होंने विद्रोह का रास्ता अपनाया। और दूसरा है बसंत शाही की शाखा, जिन्हें अंग्रेज़ों ने हथुआ राज का वारिस मान लिया। इस बंटवारे से अंग्रेज़ों को बहुत फायदा हुआ। फतेह शाही को धीरे-धीरे अलग-थलग कर दिया गया और अंततः उन्होंने गोरखपुर में संन्यास ले लिया।

फतेह शाही के छोटे भाई बसंत शाही अंग्रेज़ों के करीब थे। जब विद्रोह का दौर चल रहा था, तब दोनों भाइयों में अविश्वास बढ़ गया।
फतेह शाही के छोटे भाई बसंत शाही अंग्रेज़ों के करीब थे। जब विद्रोह का दौर चल रहा था, तब दोनों भाइयों में अविश्वास बढ़ गया। (AI)

चैत सिंह की बगावत और हथुआ का संघर्ष

1781 में बनारस के राजा चैत सिंह ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया। उस समय फतेह शाही (Fateh Shahi) ने भी गोरखपुर और बारागांव पर हमला किया। लेकिन अंग्रेज़ों और बसंत शाही (Krishna Pratap Shahi) के समर्थकों ने उन्हें हरा दिया। इस हार के बाद हथुआ राज पूरी तरह बसंत शाही की शाखा के हाथों में चला गया। उसके बाद बसंत शाही के बेटे छत्रधारी शाही गद्दी पर आए और फिर उन्होंने हथुआ को राजधानी बनाया और भव्य किला-महल का भी निर्माण कराया। 1857 की क्रांति के समय उन्होंने अंग्रेज़ों का साथ के कर बागियों को भी हरा दिया। इसके बदले में उन्हें अंग्रेज़ों से सम्मान मिला और विशेष अधिकार भी मिला। आपको बता दें छत्रधारी शाही संस्कृत के बहुत ही प्रेमी थे। उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया और अपने दरबार को विद्वानों का केंद्र बनाया।

1781 में बनारस के राजा चैत सिंह ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया। उस समय फतेह शाही ने भी गोरखपुर और बारागांव पर हमला किया।
1781 में बनारस के राजा चैत सिंह ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया। उस समय फतेह शाही ने भी गोरखपुर और बारागांव पर हमला किया।(AI)

कृष्ण प्रताप शाही, आधुनिक शासक

महाराजा कृष्ण प्रताप शाही (1874–1896)19वीं सदी के बाद में हथुआ राज के शिखर पर थे। उनको अंग्रेज़ों से कई प्रकार की उपाधियां और सम्मान मिले थे। महाराजा कृष्ण प्रताप शाही (Krishna Pratap Shahi) आधुनिक सोच के शासक माने गए, और आपको बता दें उनके समय में हथुआ राज की ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा काफी अधिक बढ़ गई थी।

हथुआ राज (Hathua Raj) की छवि बिहार की जनता के बीच हमेशा के लिए गहरी हो गई। इसकी झलक हमें आज भी लोकगीतों, कहावतों और किस्सों में मिलती है। यहां तक कि लालू प्रसाद यादव ने अपनी मां को मुख्यमंत्री पद का महत्व समझाते हुए कहा था कि "ई हथुआ महाराज से भी बड़ा होला।" इसका मतलब होता है की यह हथुआ महाराज से भी बड़ा होता है।

हथुआ राज की छवि बिहार की जनता के बीच हमेशा के लिए गहरी हो गई। इसकी झलक हमें आज भी लोकगीतों, कहावतों और किस्सों में मिलती है।
हथुआ राज की छवि बिहार की जनता के बीच हमेशा के लिए गहरी हो गई। इसकी झलक हमें आज भी लोकगीतों, कहावतों और किस्सों में मिलती है।(AI)

निष्कर्ष

हथुआ राज (Hathua Raj) की कहानी केवल किसी राजवंश की गाथा नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक स्मृतियों का हिस्सा है। इसमें इस कहानी में विद्रोह और वीरता है, आस्था और चमत्कार है, राजनीति और सत्ता का खेल है।

फतेह शाही जैसे नरेशों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह (Rebellion) कर इतिहास रचा, जबकि छत्रधारी शाही और कृष्ण प्रताप शाही ने अंग्रेज़ों के साथ चलकर आधुनिक दौर की राह पकड़ी।

आज थावे मंदिर और हथुआ किला इस इतिहास के जीवित प्रतीक हैं, जो हमें याद दिलाते हैं कि बिहार की धरती पर संघर्ष, साहस और आस्था हमेशा साथ-साथ चलते रहे हैं। [Rh/PS]

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com