गोनू झा : मिथिला के लोकनायक, जिनकी कहानियाँ आज भी दिलों में बसती हैं

मिथिला (Mithila) के गोनू झा (Gonu jha) की कहानियाँ सिर्फ़ हंसी-मजाक (Humor) नहीं, बल्कि चतुराई, लोकनीति और जीवन-दर्शन का खजाना हैं। उनकी हाजिरजवाबी ने उन्हें लोकनायक बना दिया, जिनकी कहानियाँ आज भी गांव-गांव में बच्चों से लेकर बड़ों तक सुनाई जाती हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि गोनू झा केवल चतुराई में माहिर थे, पर कई विद्वान लिखते हैं कि वो खुद भी बड़े विद्वान और "महामहोपाध्याय" थे।
कुछ लोग मानते हैं कि गोनू झा केवल चतुराई में माहिर थे, पर कई विद्वान लिखते हैं कि वो खुद भी बड़े विद्वान और "महामहोपाध्याय" थे।(AI)
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भारत की धरती लोककथाओं और किस्सों का खजाना रही है। हर राज्य, हर समाज में ऐसे पात्र मिलते हैं जो अपनी बुद्धि, हाजिरजवाबी और चतुराई से लोगों के दिलों में बस जाते हैं। अकबर के दरबार में बीरबल, विजयनगर में तेनालीराम और मिथिला की धरती पर गोनू झा। ये ऐसे नाम हैं जिनकी कहानियाँ आज भी गांव-गांव में सुनाई जाती हैं। गोनू झा को अक्सर "मिथिला के बीरबल" कहा जाता है, क्योंकि उनकी चतुराई और मजाकिया (Humor) अंदाज़ लोगों को खूब भाता था।

दरबार की एक अनोखी घटना

मिथिला (Mithila) दरबार में एक बार बड़ी अजीब घटना हुई। राजा को अपने पिता की समाधि से एक चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था कि "स्वर्ग में सब कुछ ठीक है, बस एक अच्छे पंडित की ज़रूरत है। पुआल का ढेर लगाकर उसमें आग लगाओ और अपने प्यारे पंडित को बैठा दो, वह धुएं के साथ स्वर्ग पहुँच जाएगा।"

राजा ने यह बात दरबार में सुनाई तो उनके प्रिय पंडित ने हामी भर दी। उन्होंने कहा, "बस तीन महीने का समय दीजिए ताकि मैं अपने परिवार का इंतज़ाम कर लूँ।" समय पूरा हुआ और पंडित को पुआल पर बैठा दिया गया। आग लगी और सबको लगा कि कहानी खत्म हो गई। लेकिन तीन महीने बाद वही पंडित दरबार में लौट आए और राजा को एक और चिट्ठी दिखलाई।

उसमें यह लिखा था कि "पुत्र, पंडितजी ने पूजा-पाठ सही से सिखा दिया है, अब उनकी ज़रूरत नहीं है। लेकिन स्वर्ग में एक दिक्कत है यहाँ कोई हज्जाम नहीं है। मेरी दाढ़ी-बाल बढ़ गए हैं, अब आप अपने हज्जाम को भेज दो।" यह पढ़कर दरबार में खलबली मच गई। असल में, वह पहली चिट्ठी हज्जाम ने ही लिखी थी ताकि पंडित से छुटकारा मिले। सच सामने आते ही हज्जाम ने माफी माँगी। बाद में पता चला कि पंडित ने तीन महीने में पुआल के नीचे एक सुरंग खुदवा ली थी और उसी से बच निकले थे। यह कहानी मिथिला के मशहूर गोनू झा से जुड़ी हुई मानी जाती है।

गोनू झा (Gonu jha) की कहानियाँ लगभग 800 साल पुरानी मानी जाती हैं।
गोनू झा (Gonu jha) की कहानियाँ लगभग 800 साल पुरानी मानी जाती हैं।(AI)

गोनू झा कौन थे ?

गोनू झा (Gonu jha) की कहानियाँ लगभग 800 साल पुरानी मानी जाती हैं। यानी 1200 ईस्वी के आसपास जब मिथिला पर कर्णाट वंश का शासन था। उनका असली नाम गणेश झा था, लेकिन प्यार से लोग उन्हें "गोनू" बुलाने लगे और यही नाम लोककथाओं में अमर हो गया। मिथिला (Mithila) के पंजी-ग्रंथ, जिनमें ब्राह्मण परिवारों की वंशावलियाँ दर्ज होती थीं, उनमें भी गोनू झा का नाम मिलता है। उनके पिता का नाम वंशधर था। गोनू झा तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। खास बात यह है कि इन ग्रंथों में गोनू झा के नाम के साथ "महाधूर्तराज" भी लिखा मिलता है, जिसका अर्थ है, "धूर्तों का राजा" यानी सबसे बड़ा चतुर व्यक्ति।

कुछ लोग मानते हैं कि गोनू झा केवल चतुराई में माहिर थे, पर कई विद्वान लिखते हैं कि वो खुद भी बड़े विद्वान और "महामहोपाध्याय" थे। यानी शास्त्र और दर्शन में भी पारंगत। यही कारण है कि उनकी कहानियाँ केवल मजाक या हंसी तक सीमित नहीं रहीं' बल्कि उनमें जीवन-दर्शन और लोकनीति भी झलकती है।

मिथिला में  बहुत पुरानी एक कहावत प्रचलित है, वो कहावत यह है  "गोनू झा मरे, सर को पड़े"।
मिथिला में बहुत पुरानी एक कहावत प्रचलित है, वो कहावत यह है "गोनू झा मरे, सर को पड़े"। (AI)

गोनू झा की लोकप्रियता

गोनू झा (Gonu jha) का नाम इसलिए मशहूर हुआ क्योंकि वो हर मुश्किल परिस्थिति में अपनी सूझबूझ से समाधान निकाल लेते थे। मिथिला में बहुत पुरानी एक कहावत प्रचलित है, वो कहावत यह है "गोनू झा मरे, सर को पड़े"। इसका मतलब यह है कि उनकी मौत भी एक अनोखे किस्से से जुड़ी थी। उनकी कहानियों में मजाक, बुद्धिमानी और व्यंग्य का अद्भुत मेल मिलता है। कई किस्से आज भी बच्चों और बड़ों को सुनाए जाते हैं, जैसे गोनू झा की परी, गोनू झा की दावत, गोनू झा का रजिस्टर और सबसे मशहूर किस्सा गोनू झा की बिल्ली।

गोनू झा और बिल्ली का किस्सा

एक बार राजा ने दरबारियों की परीक्षा लेने के लिए सबको एक-एक भैंस और एक-एक बिल्ली दी थी। शर्त यह थी कि सालभर बाद जिसकी बिल्ली सबसे मोटी होगी, उसे इनाम मिलेगा।सालभर बाद सबने अपनी बिल्लियाँ राजा के सामने पेश की तो सभी वह पर मौजूद सभी बिल्लियाँ मोटी-ताज़ी थीं, लेकिन गोनू झा की बिल्ली दुबली-पतली थी! राजा ने हैरान होकर पूछा, "गोनू, तुम्हारी बिल्ली इतनी कमजोर क्यों है ?"

फिर गोनू झा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, और कहा की "महाराज, मेरी बिल्ली तो दूध पीती ही नहीं।" राजा को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने दूध का कटोरा मंगवाया उसके बाद जो वो बहुत ही चौका दिया सबको कटोरा देखते ही बिल्ली भाग गई। लेकिन जब उसे भात की थाली दी गई, तो उसने सारा भात सब चट कर दिया।

राजा ने पूछा, "ये कैसे हुआ?" तब गोनू झा ने बताया कि शुरू में जब बिल्ली मेरे पास आई तो वो दूध पी जाती थी, लेकिन बाद में मैंने उसे रोज़ खौलता हुआ दूध पिने के लिए दिया करता था। फिर जीभ जलने पर वह भाग जाती थीं । धीरे-धीरे उसने दूध से तौबा कर ली और अब दूध का कटोरा देखते ही डरकर भागती है। राजा उनकी चतुराई देखकर बहुत खुश हुए और उन्हें दान विभाग का प्रमुख बना दिया।

गोनू झा (Gonu jha) केवल चतुर किस्सों तक सीमित नहीं थे। वो कवि और दार्शनिक भी थे। संस्कृत में उनका लिखा एक श्लोक मिलता है जिसमें जीवन की नश्वरता का बखान है। उसका भाव है ऐसा कि - चेहरे की हंसी खो जाती है, मीठी बातें फीकी हो जाती हैं, शरीर थक जाता है और कोई नहीं जानता कब मौत का बुलावा आ जाए। यही जीवन की सच्चाई है। इससे पता चलता है कि वो जीवन के गहरे पहलुओं को भी समझते थे और उसे सरल भाषा में लोगों तक पहुँचाते थे।

फिर गोनू झा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, और कहा की  "महाराज, मेरी बिल्ली तो दूध पीती ही नहीं।" राजा को विश्वास नहीं हुआ।
फिर गोनू झा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, और कहा की "महाराज, मेरी बिल्ली तो दूध पीती ही नहीं।" राजा को विश्वास नहीं हुआ। (AI)

गोनू झा की मृत्यु

गोनू झा (Gonu jha) की मृत्यु भी एक किस्से से जुड़ी हुई बताई जाती है। कहते हैं कि वो माँ दुर्गा के बड़े भक्त थे। एक बार मजाक में उन्होंने देवी से पूछा, "माँ, आपके दस हाथ हैं, तो जब आपको सर्दी-जुकाम होता होगा तो आप नाक कैसे पोंछती होंगी ?"

देवी मुस्कुराईं और बोलीं, "गोनू, तुम तो भगवान को भी नहीं छोड़ते हो ! जाओ, मै तुमको आशीर्वाद देती हुँ तुम अपनी बुद्धि से हमेशा जीतते रहोगे, लेकिन जिस दिन किसी से हारोगे, उसी दिन से तुम्हारी मौत हो जाएगी।"

एक बार कि बात है की एक दिन गाँव के ही खुशीलाल नाम के व्यक्ति के साथ वो ज़िद में हार गए थे। शर्त थी कि कौन ज्यादा देर तक शौच पर बैठा रहेगा। गोनू झा हार गए और उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। यह किस्सा कितना सच है, कहना मुश्किल है, लेकिन लोककथाओं में उनकी हार और मृत्यु को इसी रूप में याद किया जाता है।

गोनू झा की विरासत

आज भी मिथिलांचल में जब कोई बहुत चतुराई दिखाता है तो लोग कह देते हैं की "बड़ा गोनू झा बन रहा है !" उनकी कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि लोकजीवन और संस्कृति का हिस्सा हैं। दरभंगा जिले के उनके जन्मस्थान भरौड़ा में उनकी भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। स्कूलों और कॉलेजों में उनके किस्सों पर नाटक खेले जाते हैं। बिहार सरकार ने "गोनू झा हास्य (Humor) और व्यंग्य पुरस्कार" भी शुरू किया है। सोशल मीडिया और यूट्यूब पर #GonuJha के नाम से उनकी कहानियाँ नए अंदाज़ में सुनाई जा रही हैं।

गोनू झा (Gonu jha) की मृत्यु भी एक किस्से से जुड़ी हुई बताई जाती है।
गोनू झा (Gonu jha) की मृत्यु भी एक किस्से से जुड़ी हुई बताई जाती है। (AI)

निष्कर्ष

गोनू झा केवल मिथिला (Mithila) के विदूषक नहीं थे, बल्कि लोकनायक भी थे। उनकी कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी बुद्धिमानी और हास्य से रास्ता निकाला जा सकता है। जैसे बीरबल और तेनालीराम पूरे भारत में मशहूर हुए, वैसे ही गोनू झा मिथिला की आत्मा बन गए।

आज भी जब कोई मुश्किल हालात में हिम्मत और चतुराई दिखाता है, तो लोग गर्व से कहते हैं "यह तो सच्चा गोनू झा है।" [Rh/PS]

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