![2005 से पहले का बिहार राजनीतिक अस्थिरता, जंगलराज और विकासहीनता का प्रतीक बन चुका था। [SORA AI]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-19%2Fz1nlmf8q%2Fassetstask01k0h98atafy8tb6jast3ex7kp1752926925img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
2005 से पहले का बिहार (Bihar) राजनीतिक अस्थिरता, जंगलराज और विकासहीनता का प्रतीक बन चुका था। लालू प्रसाद यादव और फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी के शासनकाल में कानून व्यवस्था और आधारभूत संरचनाओं की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी थी। जनता बदलाव चाहती थी। इसी माहौल में एक उम्मीद की किरण बने नीतीश कुमार (Nitish Kumar)। 2000 में पहली बार वे केवल 7 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2005 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने जनता दल यूनाइटेड (JDU) और बीजेपी (BJP) के गठबंधन के साथ सरकार बनाई।
उन्होंने बिहार (Bihar) को कानून व्यवस्था, शिक्षा और सड़कों के मामले में बदलने की दिशा में तेजी से काम शुरू किया। लेकिन ठीक 5 साल बाद का चुनाव यानी 2010 का चुनाव कुछ अलग था। यह सिर्फ सरकार बचाने का नहीं, बल्कि अपनी लोकप्रियता का इम्तिहान था,और यहीं से शुरू होती है वह कहानी जिसने नीतीश कुमार की किस्मत को राजनीति के शिखर तक पहुंचा दिया।
एक ऐतिहासिक जनादेश जिसने सभी को चौंका दिया
2010 का बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक था। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में NDA (JDU-BJP गठबंधन) ने बहुमत से भी कहीं अधिक सीटें हासिल कर सबको चौंका दिया था। कुल 243 विधानसभा सीटों में से NDA को 206 सीटें मिलीं, जिसमें JDU को 115 और BJP को 91 सीटें मिलीं। वहीं, लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की RJD को महज 22 सीटें और कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें ही मिल पाईं। यह एक तरफा जनादेश था जो साफ़ तौर पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नीतियों और कामकाज पर जनता के भरोसे को दर्शाता था।
चुनाव आयोग के अनुसार, उस वर्ष मतदान प्रतिशत 52.65% रहा, जो उस समय तक के रिकॉर्ड में सबसे अधिक था। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की छवि एक विकास पुरुष की बन चुकी थी, और ‘सुशासन बाबू’ के नाम से उन्हें जनता जानने लगी थी। 2010 का यह चुनाव न केवल NDA के लिए जीत थी, बल्कि बिहार की राजनीति में एक क्रांतिकारी मोड़ भी था जिसने जातिवाद से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता दी।
जब फैसला देख नीतीश भी रह गए थे हैरान
2010 के चुनावी नतीजों ने जहां पूरा बिहार चौंक गया था, वहीं खुद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी स्तब्ध थे। उन्होंने चुनाव के पहले ही साफ़ कहा था कि वे अपने काम का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रख रहे हैं और फैसला अब जनता का है। लेकिन जब नतीजे आए और उन्होंने 200 से अधिक सीटें जीतीं, तो उन्होंने मीडिया से कहा, “इतना बड़ा जनादेश, उम्मीद से परे है।” दरअसल, अधिकतर चुनावी विश्लेषकों ने यह भविष्यवाणी की थी कि NDA 140-150 सीटों के आस-पास रह सकता है, और कुछ जगहों पर त्रिशंकु विधानसभा की बात भी हो रही थी।
विरोधी पार्टियों ने जातिगत समीकरणों का सहारा लिया, लेकिन जनता ने ‘विकास’ को वोट दिया। यही कारण था कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लिए यह जीत न केवल भावनात्मक रूप से विशेष थी, बल्कि यह उनके उस भरोसे की जीत थी जो उन्होंने नारे के रूप में दिया था, “काम बोलेगा।” यह जीत उस बिहार (Bihar) की थी जो बदलाव चाहता था, और उस नेता की जो बिना शोरगुल के चुपचाप बदलाव की नींव रख रहा था।
2010 के बाद नीतीश कुमार का बदलता राजनीतिक सफर
2010 की शानदार जीत के बाद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का राजनीतिक ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ता गया। हालांकि आगे के वर्षों में उनके और बीजेपी के बीच मतभेद उभरे, जिससे उन्होंने 2013 में गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और 2015 में फिर से सत्ता में लौटे। लेकिन यह साथ भी ज्यादा दिन नहीं चला। 2017 में उन्होंने अचानक महागठबंधन छोड़ कर एक बार फिर बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और मुख्यमंत्री बने रहे। यही वजह है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को आज भी एक "पलटी मार" नेता कहा जाता है, लेकिन उनके समर्थक इसे राजनीतिक चतुराई कहते हैं।
2020 में एक बार फिर NDA के साथ उन्होंने सत्ता हासिल की, हालांकि JDU को कम सीटें मिलीं। आज तक, यानी 2025 तक, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) 8 बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे भारत के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाले नेताओं में गिने जाते हैं। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बिहार की राजनीति में न केवल खुद को बनाए रखा, बल्कि कई बार अपनी रणनीति से राजनीति को ही बदल दिया।
एक साधारण लड़का, जो बना बिहार का मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार (Bihar) के नालंदा जिले के बख्तियारपुर में हुआ था। उनके पिता कविराज राम लखन सिंह भी स्वतंत्रता सेनानी थे। नीतीश ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पटना इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT Patna) से की और बिहार राज्य विद्युत बोर्ड में काम भी किया। लेकिन राजनीति ने उन्हें जल्दी ही अपनी ओर खींच लिया। 1974 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए संपूर्ण क्रांति आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। 1985 में वे पहली बार बिहार (Bihar) विधानसभा के सदस्य बने।
इसके बाद वे केंद्र सरकार में रेल मंत्री, कृषि मंत्री जैसे कई पदों पर रहे। उनकी साफ-सुथरी छवि और योजनाबद्ध सोच ने उन्हें जनता का भरोसा दिलाया। 2000 में पहली बार वे बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत के अभाव में 7 दिन बाद इस्तीफा दे दिया। 2005 में उन्होंने NDA के साथ पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की कहानी बताती है कि कैसे एक साधारण परिवार से आया व्यक्ति, ईमानदारी, मेहनत और दृढ़ निश्चय के साथ किसी राज्य की तक़दीर बदल सकता है।
Also Read: प्रेम का रिश्ता बना मौत का फंदा , कुछ ऐसी थी मधुमिता शुक्ला हत्याकांड केस की कहानी
बिहार (Bihar) का 2010 का चुनाव नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के राजनीतिक जीवन का सबसे सुनहरा अध्याय रहा है। यह उस बिहार की कहानी है, जो वर्षों से बदलाव का इंतजार कर रहा था और एक नेता की ईमानदारी पर विश्वास कर बैठा। यह चुनाव केवल सीटों का आंकड़ा नहीं था, बल्कि यह जनता की उस भावना का प्रतीक था जो बदलाव को स्वीकारने के लिए तैयार थी। नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति में एक केंद्रीय चेहरा हैं और उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो साधारण जीवन से असाधारण मुकाम हासिल करना चाहता है। [Rh/SP]