
भारत सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर को मृत्यु के बाद भारत रत्न देने का ऐलान किया है। यह सम्मान न केवल उनके राजनीतिक योगदान का प्रतीक है बल्कि उनकी अद्भुत सादगी (Simplicity) और ईमानदारी (Honesty) की भी पहचान है। कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) का पूरा जीवन इस बात का उदाहरण रहा कि राजनीति में रहते हुए भी व्यक्ति कितना सरल, सच्चा और लोकहित के लिए समर्पित हो सकता है। उन्होंने कभी सत्ता या पद को अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं किया। आइए जानते हैं उनके जीवन के कुछ ऐसे किस्से जो उनकी सादगी, ईमानदारी (Honesty) और जनसेवा (Public Service) की मिसाल बन चुके हैं
फटा कुर्ता और दान में मिला पैसा
साल 1977 की बात है, उस समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर एक भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ था। देशभर के बड़े-बड़े नेता उस समारोह में आये थे। आपको बता दें वहां पर बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भी पहुंचे थे, और उनका पहनावा सबका ध्यान खींच रहा था क्योंकि वो फटा हुआ कुर्ता, पुरानी धोती और टूटी हुई चप्पल पहने हुए थे। जिसे देखकर लोग हैरान थे लोगों का मानना था कि एक मुख्यमंत्री इस हालत में कैसे हो सकता है !पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने हंसते हुए मंच पर कहा कि "चलो, हम सब मिलकर कर्पूरी ठाकुर के कुर्ता फंड में कुछ योगदान दें।" नेताओं ने मजाक में पैसे इकट्ठे किए और ठाकुर जी को दे दिए ताकि वो नया कुर्ता खरीद सकें।
लेकिन जब वह रकम कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) को दी गई, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए वह पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करवा दिया क्योंकि उनका मानना था कि जनता का पैसा जनता की भलाई के काम आना चाहिए। उन्होंने सबके सामने यह कहा, कि "यह पैसा जनता की भलाई के लिए है, मेरे कपड़ों के लिए नहीं।" इस घटना ने उनकी निर्लोभता और जनसेवा की भावना को अमर कर दिया। आज भी वो जनसेवक के नाम से जाने जाते हैं।
बेटे की बीमारी पर भी सरकारी मदद ठुकराई
एक बार कि बात है कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे को गंभीर दिल की बीमारी थी, और इलाज के लिए उन्हें दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि ऑपरेशन बेहद जरूरी है और खर्च बहुत अधिक आएगा। उस समय की प्रधानमंत्री थी इंदिरा गांधी जब उनको यह बात पता चली, तो वो खुद अस्पताल पहुंचीं और उन्होंने कहा कि "सरकारी खर्च पर आपके बेटे का इलाज अमेरिका में करवाया जाएगा।" लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने साफ शब्दों में मना कर दिया।
उन्होंने कहा, कि "सरकारी पैसे से अपने परिवार का इलाज करवाना मेरे सिद्धांतों के खिलाफ है।" क्योकि उनका मानना है कि सरकारी पैसे पर पुरे देशवासियों का अधिकार होता है, वो कहते हैं की मुख्यमंत्री पद पर होने के नाते सरकारी पैसे से अपने परिवार का इलाज करवाना मेरे सिद्धांतों के खिलाफ है। उनकी इस सादगी (Simplicity) की खबर जब जयप्रकाश नारायण को मिली, तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर कुछ पैसा इकट्ठा किया और बेटे के इलाज का इंतज़ाम करवाया उसके बाद उनके बेटे का इलाज सफल हुआ। इस घटना ने साबित किया कि कर्पूरी ठाकुर के लिए ईमानदारी, रिश्तों से भी ऊपर थी।
कभी अपना घर नहीं बनवाया
कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) दो बार मुख्यमंत्री बने, पर अपना घर कभी नहीं बनवाया। इसका असली वजह था उनका सिद्धांत, उनका सिद्धांत है सबसे पहले जनता कि सेवा (Public Service) उसके बाद अपने लिए कुछ भी करना उनका कहना था "जब तक बिहार के हर गरीब का घर नहीं बन जाता, मैं अपना घर नहीं बनाऊँगा।" कहा जाता है कि एक बार चौधरी चरण सिंह, जो उस समय प्रधानमंत्री थे, उनसे मिलने उनके गांव पहुंचे। जब वो दरवाजे से अंदर जा रहे थे तो सिर ऊपर से टकरा गया, उसके बाद उन्होंने हंसते हुए कहा, कि "कम से कम दरवाजा तो ऊंचा करवा लीजिए।" इस पर ठाकुर ने जवाब दिया,और कहा कि “जब मेरे राज्य के लोगों के घर छोटे हैं, तो मेरा दरवाजा बड़ा कैसे हो सकता है ?" उनकी यह बात सुनकर चौधरी चरण सिंह और उनके साथ जो भी लोग आए थे सब लोग भावुक हो गए। कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता जिनकी सादगी और ईमानदारी (Honesty) की चर्चाएं हमेशा होती है, यह वही नेता थे जो गरीबों के घर की ऊंचाई को अपना मानक मानते थे।
लालू यादव से मांगी जीप, जवाब मिला, "जीप में तेल नहीं है"
कर्पूरी ठाकुर हमेशा जनता के बीच पैदल या रिक्शे से जाते आते थे। एक बार की बात है, जब वो विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, उन्हें भूख लगी थी और वो घर जाना चाहते थे।उसके बाद उन्होंने अपने साथी विधायक लालू प्रसाद यादव को एक पर्ची भेजी, जिसमे बड़े ही भावुक शब्दों में लिखा था "थोड़ी देर के लिए अपनी जीप दे दो, घर जाना है।" यह पर्ची जब लालू यादव को मिला तो उन्होंने उसी पर्ची पर लिखा की "जीप में तेल नहीं है, आप कार क्यों नहीं ले लेते ?" इस पर कर्पूरी ठाकुर ने हंसते हुए जबाब दिया और कहा कि "मेरी तनख्वाह में तो तेल भी मुश्किल से आता है, कार कहां से लाऊं !" उसके बाद वो फिर रिक्शे से ही घर गए। उनका यह जवाब उनके सीधेपन और सादगीभरे स्वभाव का प्रतीक बन गया।
फटा कोट पहनकर विदेश यात्रा
जब कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे, तो उन्हें विदेश यात्रा का मौका मिला था। लेकिन विदेश जाने उनके पास पहनने के लिए कोट नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने एक दोस्त से कोट उधार लिया। लेकिन वह कोट पुराना और थोड़ा फटा हुआ था, लेकिन ठाकुर जी ने बिना हिचकिचाए वही कोट पहन लिया। उसके बाद वो फटे कोट में ही विदेश चले गए। वहां पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ गए कुछ लोगों ने उनको फटे कोट पहने देखा और किसी ने उन्हें नया कोट गिफ्ट कर दिया। लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने लौटकर भी वही पुराना कोट संभाल कर रखा क्योंकि उनके लिए कपड़े नहीं, विचार मायने रखते थे।
कर्पूरी ठाकुर की सादगी (Simplicity) आज भी मिसाल है
कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) ने न केवल राजनीति को जनसेवा (Public Service) का माध्यम बनाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि ईमानदारी (Honesty) से भरी सादगी ही सच्चा नेतृत्व है। उन्होंने गरीबों, मजदूरों और पिछड़ों के हक में कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जिनमें आरक्षण की नीति लागू करना और शराबबंदी जैसे कड़े कदम शामिल थे। उन्होंने कभी कुर्सी को प्राथमिकता नहीं दी, लेकिन उन्होंने हमेशा जनता को प्राथमिकता दी। कर्पूरी ठाकुर ने दिखाया कि नेता वह नहीं होता जो सत्ता का आनंद ले, बल्कि नेता वह होता है जो जनता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दे।
निष्कर्ष
फटा कुर्ता, टूटी चप्पल, सादा जीवन और ऊंचे आदर्श, यही थे जननायक कर्पूरी ठाकुर। जिनकी सादगी (Simplicity) की कहानियों से हमें यह सिख मिलती है कि सच्चा नेता वही है जो अपने लिए नहीं, समाज के लिए जीता है। कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता हमें सिखाते हैं की 'ईमानदारी ही सबसे बड़ी विरासत है।" [Rh/PS]
और पढ़ें