“कितना चंदा जेब में आया” और इलेक्टोरल बांड्स की कहानी

Bharatiya Liberal Party(BLP): इस गाने की दो पंक्तियाँ कुछ ऐसे हैं: “पारदर्शिता पानी जैसी, ये ना हो तो ऐसी तैसी”। इस पंक्ति द्वारा हमारे देश की राजनीतिक स्थिति को दर्शाया गया है।
Bharatiya Liberal Party(BLP): इस पंक्ति द्वारा हमारे देश  की राजनीतिक स्थिति को दर्शाया गया है।  (NewsGram)
Bharatiya Liberal Party(BLP): इस पंक्ति द्वारा हमारे देश की राजनीतिक स्थिति को दर्शाया गया है। (NewsGram)

Bharatiya Liberal Party(BLP): ट्रांसपरेंसी:पारदर्शिता वेब सीरीज ये एक ऐसी वेब सीरीज जिसमे हमारे देश में हो रहे राजनीति की सच्चाई को दर्शाता हैं। 2020 में ट्रांसपरेंसी:पारदर्शिता वेब सीरीज रिलीज किया गया था, जिसका एक गीत बॉलीवुड के मशहूर सिंगर उदित नारायण जी ने गाया है। इस गीत का नाम है “कितना चंदा जेब में आया”। उदित नारायण जी बालीवुड में लम्बे समय से  अपने मधुर संगीत के ज़रिये लोगों का  मनोरंजन करते आ रहे हैं। लेकिन पॉलिटिकल थीम पर गाया हुआ यह उनका एक मात्र  गीत हैं । इस गाने की दो पंक्तियाँ कुछ ऐसे हैं: “पारदर्शिता पानी जैसी, ये ना हो तो ऐसी तैसी”। इस पंक्ति द्वारा हमारे देश  की राजनीतिक स्थिति को दर्शाया गया है। 2019 में जब उदित नारायण जी ने यह गाना गाया होगा उस वक्त उन्होंने भी नहीं सोचा होगा की यह गीत भारतीय राजनीति पर इतना प्रासंगिक बन जायेगा। 

2018 में सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी ने अनैतिकता की एक नई मिसाल कायम करते हुए इलक्ट्रोरल बांड्स जैसी  कुप्रथा को शुरू किया जिसके ज़रिये राजनीतिक पार्टियां बिना जनता को अवगत कराए कहीं से भी चंदा प्राप्त कर सकती हैं।  यह राजनीति में काला धन लाने का एक दरवाजा था। 

जनता के 6 सालों के  लंबे  इंतज़ार के बाद आखिरकार 16 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए इलेक्ट्रोरल बांड्स को असंवेधनिक धोषित कर दिया। भारतीय लिबरल पार्टी के अध्यक्ष डॉ. मुनीश रायज़ादा ने कहा कि नैतिकता का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि भारत के प्रधानमंत्री ने इस पर टिप्पणी तक नहीं की। डॉ. रायज़ादा ने यह भी कहा कि इस्तीफा देने की बात तो बहुत दूर की है उन्होंने देश से इलेक्ट्रोरल बांड्स जैसी अपारदर्शी व्यवस्था को लाने के लिए माफी तक नहीं मांगी। 

देश की सरकारें इतनी भ्रष्ट हैं यह अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सुप्रीम कोट ने कहा की 6 मार्च तक चुनावी बांड्स का सारा डेटा दिजीये लेकिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने नहीं दिया और उन्होंने जून तक का समय मांगा। उसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च तक का समय दिया तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने  आधा डेटा ही जनता से सांझा किया।  यह बात अब तक नहीं पता चला की किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया।

इन घटनाओ से यह पता चलता है कि हमारी राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार के दलदल मे अंदर तक डूबी हुई हैं। भारतीय लिबरल पार्टी और डॉ. मुनीश रायज़ादा का मानना है कि सरकार को पारदर्शिता से काम करना चाहिए। उनका कहना है, अगर पारदर्शिता नहीं है तो सही मायने में लोकतंत्र नहीं है। 

(यह लेख भारतीय लिबरल पार्टी के अध्यक्ष, डॉ मुनीश रायज़ादा, के ऑफिस से प्रकाशित हुआ है)

ट्रांसपरेंसी:पारदर्शीता वेब सीरीज़ को देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

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