क्यों एक ही शहर के विभिन्न जगहों के तापमान में है इतना अंतर? हुआ 79 साल पुराना रिकॉर्ड ध्वस्त

दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित मौसम केंद्र में बुधवार को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। यह राजधानी में अब तक का अधिकतम तापमान बताया जा रहा है। जबकि मंगलवार को इसी स्थान का तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
Delhi is Experiencing Scorching Temperature : दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित मौसम केंद्र में बुधवार को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। (Wikimedia Commons)
Delhi is Experiencing Scorching Temperature : दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित मौसम केंद्र में बुधवार को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। (Wikimedia Commons)
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Delhi is Experiencing Scorching Temperature : दिल्ली में पड़ रही भीषण गर्मी ने 79 साल पुराना रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिया। दिल्ली में गर्मी का पारा 52 डिग्री सेल्सियस पार हो गया है, दिल्ली के मुंगेशपुर स्थित मौसम केंद्र में बुधवार को अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। यह राजधानी में अब तक का अधिकतम तापमान बताया जा रहा है। जबकि मंगलवार को इसी स्थान का तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। इसके अलावा दिल्ली में अन्य स्थानों पर अधिकतम तापमान मुंगेशपुर की तुलना में कम से कम 6 या 7 डिग्री सेल्सियस कम दर्ज किया गया। ऐसे में मन में सवाल उठता है कि एक ही शहर में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तापमान क्यों होता है?

क्या है वजह

किसी विशेष क्षेत्र का तापमान काफी हद तक मौसम से नियंत्रित होता है लेकिन खासकर दिल्ली जैसी बड़ी शहर में कई कारक भी भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में फुटपाथ, इमारतों, सड़कों और पार्किंग स्थलों की सघनता शामिल है। साधारणतः कठोर और सूखी सतहें कम छाया और नमी प्रदान करती हैं, जिससे तापमान बढ़ता है। बुनियादी ढांचे के निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री का भी विशेष प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, वे स्थान जहां अधिकांश फुटपाथ और इमारतें कंक्रीट से बनी होती हैं, वहां का तापमान अधिक होता है।

 बहुत संकरी सड़कें और ऊंची इमारतें प्राकृतिक हवा के प्रवाह में बाधा डालती हैं (Wikimedia Commons)
बहुत संकरी सड़कें और ऊंची इमारतें प्राकृतिक हवा के प्रवाह में बाधा डालती हैं (Wikimedia Commons)

ऊंची इमारतें भी है एक कारण

आपको बता दें इमारतों की बनावट और दूरी भी एक कारक है यदि कोई स्थान इमारतों, और संरचनाओं से घनी आबादी वाला है तो वहां बड़े थर्मल द्रव्यमान बन जाते हैं क्योंकि वे आसानी से गर्मी जारी करने में विफल होते हैं। बहुत संकरी सड़कें और ऊंची इमारतें प्राकृतिक हवा के प्रवाह में बाधा डालती हैं जो आम तौर पर तापमान को नीचे लाती हैं लेकिन शॉपिंग मॉल और आवासीय क्षेत्रों में एयर कंडीशनर के ज्यादा उपयोग के कारण वहां अधिक तापमान होता है। एसी भारी मात्रा में गर्मी बाहर छोड़ते हैं। ये कारक किसी स्थान पर ‘अरबन हीट आईलैंड’ के बनने का कारण बन सकते हैं।

पेड़ - पौधे की कमी

किसी स्थान के ‘अरबन हीट आईलैंड बनने की संभावना तब अधिक होती है जब वहां पेड़, वनस्पति और वॉटर बॉडीज नहीं होते हैं। घने पेड़ टेंपरेचर में कमी लाते हैं, क्योंकि वे छाया प्रदान करते हैं, और पौधों से वाष्पोत्सर्जन और वॉटर बॉडीज से वाष्पीकरण की प्रक्रियाएं ठंडक पैदा करती हैं। दिल्ली में इसका प्रमाण बड़े पार्क और शहरी जंगलों के आस पास के एरिया में होने वाला कूलिंग इफेक्ट है यानी जहां पेड़ ज्यादा हैं और बड़े पार्क विकसित किए गए हैं वहां पर तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है

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