शिक्षा मॉडल : दिल्ली सरकार की राजनीति ?

शिक्षा को खत्म कर रहा है दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल। क्या यह हैं दिल्ली सरकार की राजनीति का हिस्सा ?
शिक्षा पर भी चल रही हैं दिल्ली सरकार की राजनीति
शिक्षा पर भी चल रही हैं दिल्ली सरकार की राजनीतिWikimedia
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दिल्ली सरकार आए दिन कोई ना कोई मॉडल निकालती रहती है चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या परिवहन के क्षेत्र में। ऐसे ही एक मॉडल के बारे में तथ्य सामने आए हैं कि राजनीति करने के लिए दिल्ली सरकार ने शिक्षा मॉडल के नाम पर शिक्षक और बच्चों पर एक अजीब तरह का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि यदि दिल्ली सरकार को शिक्षा के नाम पर राजनीति करनी ही थी ,तो उन्हें शिक्षा से संबंधित विषय पर ही ध्यान लगाना चाहिए था । शिक्षकों को बेहतर सुविधाएं देनी चाहिए थी, उन्हें सम्मान देना चाहिए था और उनकी सुरक्षा में बढ़ोतरी करनी चाहिए थी।

दिल्ली की सत्ता में बैठे आम आदमी पार्टी सरकार अपने जिस शिक्षा मॉडल का गुणगान कर रही है उस शिक्षा मॉडल के तहत दिल्ली के विद्यालयों में शिक्षक असुरक्षित है व छात्र हिंसक गतिविधियां अपना रहे हैं । क्या यही था दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल जिसने शिक्षा के आधारभूत तत्वों को ही खतरे में डाल दिया है। ऐसे में यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल दिल्ली सरकार की राजनीति का हिस्सा है।

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आइए अगस्त के आखिरी हफ्ते में घटी एक घटना को जानते हैं । मामला यह है कि सर्वोदय बाल विद्यालय नंदनगरी के कंप्यूटर अध्यापक सनोज कुमार ने बच्चे की शिकायत की , जिस पर गुस्साए बच्चे ने स्कूल में घुसकर अध्यापक की पिटाई कर दी।

ऐसा ही दूसरा मामला सर्वोदय बाल विद्यालय कृष्णा नगर का है जहां बाहरी तत्व ने एक अध्यापक का गिरेबान पकड़ लिया। सुल्तानपुरी रोड, नांगलोई स्थित सरकारी स्कूल में 2016 में एक शिक्षक की हत्या कर दी गई थी। ऐसी ही कुछ खबरें मदनपुर खादर और मोलडबंद के सरकारी विद्यालय से भी आई है। ऐसे में यह सवाल तो बनता ही है कि आखिर यह कौन सा शिक्षा मॉडल है ? जिसमें शिक्षक असुरक्षित है और बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर सरकार और अभिभावक शिक्षा के प्रति संवेदनहीन होते जा रहे हैं ।ऐसे में शिक्षक बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए नए प्रयोग कैसे करेगा?

आंकड़ों का खेल

दूसरी बात यह हैं कि दिल्ली सरकार ने शिक्षा मॉडल के नाम पर शिक्षक और बच्चों पर एक अजीब तरह का दबाव बनाना शुरू कर दिया है।यदि दिल्ली सरकार को शिक्षा के नाम पर राजनीति करनी ही थी ,तो उन्हें शिक्षा से संबंधित विषय पर ही ध्यान लगाना चाहिए था । शिक्षकों को बेहतर सुविधाएं देनी चाहिए थी, उन्हें सम्मान देना चाहिए था और उनकी सुरक्षा में बढ़ोतरी करनी चाहिए थी।

दिल्ली सरकार के विद्यालय खुद-ब-खुद आपको दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल की असलियत बता देंगे । विद्यालय के साथ राजनीतिक तालमेल के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य और प्रमुखों का शैक्षिक रिकॉर्ड कैसा है और शिक्षकों के साथ उनका व्यवहार कैसा है?

दसवीं में अच्छे परिणाम के लिए लगातार शिक्षकों पर मौखिक रूप से दबाव डाला जाता है कि बच्चे फेल नहीं होने चाहिए। अर्थात अध्यापक बच्चे को फेल नहीं कर सकते और आंतरिक मूल्यांकन में अधिक अंक देने होंगे के लिए बहुत बड़ी जद्दोजहद चलती रहती है।

पिछले कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि बोर्ड परीक्षाओं में अव्वल नंबर पर आने के लिए बच्चे परीक्षा को दबाव के तौर पर लेने लगे हैं। इस परेशानी और दबाव के लिए गहराई और गंभीरता से काम किया जाना आवश्यक है । लेकिन दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल के तहत जो काउंसलर और एनजीओ आए उन्होंने बच्चों को मजबूत बनाने के बजाय उनकी शिक्षा को ढीला करना शुरू कर दिया है। यूपी सरकार में कपिल सिब्बल के प्रभारी मंत्री रहते हुए इस तरह की कोशिशें सबसे ज्यादा हुई।

यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि क्षेत्र में क्रांति लाने की बात करने वाली दिल्ली सरकार इसी मिशन को लेकर आगे बढ़ रही है।

आपमें से कुछ को अवश्य याद होगा कि आज से 14 वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम आता था कि "क्या आप पांचवी पास से तेज है?"अगर आप गौर करेंगे तो जानेंगे कि आज के बच्चे पांचवीं के बच्चे 14 साल पुराने पांचवीं के बच्चे के मुकाबले बहुत पीछे हैं ,क्योंकि आज की सरकार और तंत्र बच्चों को सिखाने के बजाय उनके अंको और पास होने को महत्व देती हैं।

जनता मांगे श्वेतपत्र

दसवीं के बोर्ड परिणाम अच्छा बनाने के लिए सरकार ने इतना सख्त रवैया अपना लिया है कि यदि कोई बच्चा आठवीं के बाद टीसी लेता है तो नौवीं कक्षा में दूसरे स्कूल में दाखिला कराने के लिए उसके साथ उसके पूरे परिवार को नाकों चने चबाने पड़ते हैं। पढ़ाई में कमजोर बच्चे को नौवीं कक्षा में पहले ही अलग कर दिया जाता है उस पर जोर न देकर उसे मौजूदा विद्यालयी प्रणाली से ही अलग कर दिया जाता है । यानी कि जिन बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए उन्हें धीरे-धीरे पूरी व्यवस्था से ही बाहर निकाल दिया जाता है। और जो बच्चे अपने बूते पर पास होकर अच्छे अंक हासिल करने का दम रखते हैं उनकी सफलता का श्रेय दिल्ली सरकार ले लेती है ।

सरकार को श्वेत पत्र देना चाहिए कि नौवीं के दाखिले की स्थिति क्या है ?आठवीं से दसवीं तक जाने के बीच कितने बच्चों की शिक्षा छूटी ? कितने बच्चों का प्रदर्शन कैसा रहा ? और कमजोर बच्चों के प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए सरकार क्या कर रही है ?

यह वही सरकार है जो एक ओर शिक्षा का ढोल बजा रही है और दूसरी और शराबखोरी को भी बढ़ा रही है। प्रचार पर पैसा पानी की तरह बहा रही है इस सरकार से यूं तो सुधारवादी मॉडल की उम्मीद की जा रही थी। पर जिस तरह इस सरकार की लगातार पोल खुल रही है उसे देखकर सारी उम्मीदें पानी में बहती नजर आ रही है । देखा जाए तो यह एक ऐसी सरकार है जिसे स्वयं नैतिकता की जरूरत हैं।नैतिकता होगी तभी जाकर यह सरकार समाज में बदलाव ला पाएगी। गाल बजाने से कमाल हो जाते तो सर्कस के जादूगर और जोकर क्या बुरे थे?

(PT)

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