
स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह दरगाह नवाबी दौर की निशानी है। इलाके के बुजुर्ग नुरून अली बताते हैं कि वे पिछले 50 वर्षों से इस दरगाह को देख रहे हैं और उनकी जानकारी के अनुसार, रामपुर के नवाब भी यहां इबादत करने आया करते थे। वे घंटों तक यहां बैठकर मन की शांति और आध्यात्मिक बल प्राप्त किया करते थे।
यह दरगाह विशेष रूप से उन महिलाओं के बीच बहुत प्रसिद्ध है, जिनकी गोद अब तक सूनी है। ऐसी महिलाएं यहां आकर संतान सुख की मन्नत मांगती हैं। मान्यता है कि जो महिला सच्चे दिल से दुआ मांगती है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती है। संतान प्राप्ति के बाद महिलाएं दोबारा दरगाह पर आकर चादर चढ़ाती हैं और धन्यवाद करती हैं।
हर गुरुवार को और विशेष अवसरों पर यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। खासकर साल में एक बार आयोजित होने वाले उत्सव के समय यहां मेला जैसा माहौल बन जाता है। इस मौके पर न सिर्फ मुस्लिम समाज के लोग, बल्कि हिंदू और सिख समुदाय के श्रद्धालु भी यहां आकर चादर चढ़ाते हैं और मनोकामनाएं मांगते हैं। यह दरगाह सभी धर्मों के लोगों को जोड़ने वाली एक मिसाल बन चुकी है।
रामपुर की इस दरगाह ने समय की मार झेली है, लेकिन आस्था की डोर आज भी उतनी ही मजबूत है। जहां कोठी का ढांचा खंडहर हो चुका है, वहीं यह दरगाह आज भी चमत्कारी स्थल मानी जाती है और दूर-दराज से आने वाले लोगों को उम्मीद की किरण देती है।