
कैसे हुआ ये चमत्कार?
कंपनी ने बताया कि वैज्ञानिकों ने हज़ारों साल पुरानी डायर वुल्फ़ की हड्डियों से डीएनए निकाला, फिर उसे आधुनिक ग्रे वुल्फ़ (grey wolf) के जीन से मिलाकर संशोधित भ्रूण तैयार किया गया।
इन भ्रूणों को पालतू कुतियों की कोख में प्रत्यारोपित किया गया, और कुछ ही समय में ऑपरेशन के ज़रिए दो स्वस्थ पिल्लों का जन्म हुआ।
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पिल्ले पूरी तरह डायर वुल्फ़ नहीं, बल्कि मिश्रित प्रजाति हैं, जो डायर वुल्फ़ के कुछ गुणों को लिए हुए हैं।
क्या इनका जंगल में इस्तेमाल होगा?
नहीं। कोलोसल कंपनी ने स्पष्ट किया कि इन पिल्लों को प्रकृति में छोड़ने या इनसे आगे प्रजनन करने की कोई योजना नहीं है। यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है जिसका उद्देश्य यह समझना है कि विलुप्त प्रजातियों को तकनीक की मदद से फिर से लाया जा सकता है या नहीं।
विलुप्ति पर फिर चर्चा शुरू
वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती पर मौजूद 99% प्रजातियाँ पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। और अब, मानवजनित गतिविधियों के कारण पृथ्वी "छठी महाविलुप्ति" की कगार पर है।
ऐसे में यह प्रयोग एक आशा की किरण बन सकता है, लेकिन कई विशेषज्ञों ने इस पर नैतिक चिंता भी जताई है।
नैतिक सवाल खड़े
क्या प्रजातियों को "फिर से बनाना" इंसानों के बस की बात है?
क्या इससे संरक्षण के वास्तविक प्रयासों पर असर पड़ेगा?
क्या प्रयोगशाला में बना जीव मानसिक या जैविक रूप से सामान्य जीवन जी पाएगा?
विशेषज्ञों की राय
डॉ. एमा सॉन्डर्स (वन्यजीव जीवविज्ञानी) का कहना है, “ये तकनीक अद्भुत है, लेकिन इसका उपयोग बहुत सोच-समझ कर करना होगा। संरक्षण तकनीकें बेशक ज़रूरी हैं, लेकिन इससे प्रकृति के संतुलन के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।”
निष्कर्ष:
डायर वुल्फ़ जैसे पिल्लों का जन्म तकनीकी रूप से एक बड़ी सफलता है, लेकिन यह जवाब से ज्यादा सवाल खड़े करता है। अब देखना यह होगा कि यह प्रयोग भविष्य में प्राकृतिक संरक्षण की दिशा में क्या योगदान दे पाता है।