कश्मीर की गलियों से लेकर प्रधानमंत्री के कंधों तक, कैसे बना कानी शॉल एक ग्लोबल ब्रांड?

एक ऐसा शॉल जिसका इतिहास मुगलों के जमाने जितना पुराना है और इसे बनाने में कभी कभी महीनों और कभी कभी सालों लग जाते हैं। एक ऐसी शॉल जो अकबर को भी काफी प्रिय थी। आईने अकबरी में इस शॉल का जिक्र मिलता है।
एक ऐसा शॉल जिसका इतिहास मुगलों के जमाने जितना पुराना है [Pixabay]
एक ऐसा शॉल जिसका इतिहास मुगलों के जमाने जितना पुराना है [Pixabay]
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एक ऐसा शॉल जिसका इतिहास मुगलों के जमाने जितना पुराना है और इसे बनाने में कभी कभी महीनों और कभी कभी सालों लग जाते हैं। एक ऐसी शॉल जो अकबर को भी काफी प्रिय थी। आईने अकबरी में इस शॉल का जिक्र मिलता है। आज यह शॉल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी काफी खास महत्व रखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी कश्मीर जाते हैं उन्हें हमेशा इन शॉल का इस्तेमाल करते देखा जाता है। तो आईए जानते हैं कि आखिर कश्मीर में बनने वाली इस शॉल की क्या कहानी है और यह इतना खास क्यों है?

इतिहास के पन्नों में कहीं गुम थी यह शॉल

हम बात कर रहे हैं कश्मीर में बनने वाली कानी शॉल के बारे में। एक लकड़ी की डंडी जिसे कानी कहा जाता है उसी से बनती है खास प्रकार की शॉल जिसे कानी शॉल कहते हैं। कानी बुनाईयों के शिल्प में छोटी सैयां का उपयोग किया जाता है जिसे कनीस कहते हैं। शॉल के ऊपर जादू पैटर्न बनाने के लिए कनीस के चारों तरफ़ रंगीन धागे घूमये जाते हैं। पहली बार पारसी और तुर्की बुनकर इस कला को कश्मीर लाए थे और तब से यह कश्मीर की शान बन गई।

पहली बार पारसी और तुर्की बुनकर इस कला को कश्मीर लाए थे और तब से यह कश्मीर की शान बन गई। [Pixabay]
पहली बार पारसी और तुर्की बुनकर इस कला को कश्मीर लाए थे और तब से यह कश्मीर की शान बन गई। [Pixabay]

अकबर की किताब आईने अकबरी में कानी शॉल के बारे में जिक्र मिलता है, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे यह शॉल कहीं गुम हो गई थी, और केवल इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गई थी। कश्मीर के कानिहामा में रहने वाले गुलाम अहमद ने कश्मीर की इस कला को फिर एक बार जीवित करने का संकल्प लिया और आज इनके 600 कारीगर मिलाकर लगभग ढाई सौ अलग-अलग डिजाइन और कला को इस शॉल में पिरोते हैं। इस शॉल को बनाना सिर्फ काम नहीं बल्कि एक कला है आपको बता दे की एक दिन में मजदूर केवल एक से दो सेंटीमीटर ही डिजाइन को पूरा कर पता है।


सबसे महंगी है यह कानी शॉल



देखने में बेहद ही खूबसूरत और मात्र 150–180 ग्राम का कानी शॉल आज पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कश्मीर को आज उसकी खूबसूरत वादियां और कानी शॉल के जरिए ही एक अच्छी पहचान मिली है। यह शॉल भले ही हल्का होता है लेकिन इतनी गर्माहट और इंसुलेशन देता है कि स्वेटर की जरूरत ही नहीं पड़ती। कढ़ाई में मोर, पुष्प, पारंपरिक फलोरी और महाराजा-शाही पैटर्न शामिल होते हैं। अत्यंत बारीक सिल्क धागे इसे बेहद कलात्मक बनाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि कश्मीर की एक कानी शॉल की कीमत 13000 से शुरू लेकर एक लाख (1 Lakh )तक जाती है। कानी शॉल के डिजाइंस और इससे प्राप्त GI Tag इसकी कीमत को और भी अधिक बढ़ा देता है।

देखने में बेहद ही खूबसूरत और मात्र 150–180 ग्राम का कानी शॉल आज पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। [Pixabay]
देखने में बेहद ही खूबसूरत और मात्र 150–180 ग्राम का कानी शॉल आज पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। [Pixabay]

जब राजघरानों की शान थी कानी शॉल

मुगलोत्तर भारत में कानी शॉल राजघरानों के लिए एक मानक बन गया था। आज यह फैशन, शाही पोशाक और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक बन चुका है। मुगलों के समय में भारत आई इस कला ने आज विश्व भर में फैशन का एक नया नजरिया ही दे दिया। बॉलीवुड के बड़े-बड़े दिग्गज अभिनेता कानी शॉल को काटकर फैशन के लिए अपने कपड़ों में भी इस्तेमाल करते हैं। बड़े-बड़े फैशन डिजाइनर कानी शॉल का इस्तेमाल अपने कपड़ों की डिजाइन में करते हैं। यही नहीं आज यह कानी शॉल भारत के साथ ही साथ दुनिया भर में नाम कमा रहा है।

आज यह कानी शॉल भारत के साथ ही साथ दुनिया भर में नाम कमा रहा है। [Pixabay]
आज यह कानी शॉल भारत के साथ ही साथ दुनिया भर में नाम कमा रहा है। [Pixabay]

पीएम मोदी को भी काफी पसंद है यह शॉल


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ड्रेसिंग स्टाइल हमेशा चर्चा में रहती है, और उसमें खास स्थान रखती है कश्मीरी कानी शॉल। पारंपरिक हस्तशिल्प और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका प्रेम अक्सर उनके पहनावे में दिखाई देता है। उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों पर, खासकर सर्दियों के मौसम में, कानी पश्मीना शॉल को पहना है।

पीएम मोदी द्वारा इसे पहनना, कारीगरों के लिए एक गर्व की बात है और इस परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का माध्यम भी। [Wikimedia Commons]
पीएम मोदी द्वारा इसे पहनना, कारीगरों के लिए एक गर्व की बात है और इस परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का माध्यम भी। [Wikimedia Commons]

यह न सिर्फ उनकी स्टाइल का हिस्सा है, बल्कि भारतीय शिल्पकारों और पारंपरिक कला के प्रति उनका समर्थन भी दर्शाता है।उनकी यह पसंद दर्शाती है कि वह सिर्फ फैशन ही नहीं, बल्कि भारतीय विरासत और स्वदेशी उद्योगों को भी महत्व देते हैं। मोदी के इस स्टाइल स्टेटमेंट ने कानी शॉल की लोकप्रियता को और भी बढ़ाया है, जिससे कश्मीरी बुनकरों को नया जीवन और पहचान मिल रही है। पीएम मोदी द्वारा इसे पहनना, कारीगरों के लिए एक गर्व की बात है और इस परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का माध्यम भी।

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हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत कला और संस्कृति का देश है। और यहां से उत्पन्न कलाएं दुनिया भर में नाम कमा रहीं हैं। कश्मीर की यह कानी शॉल मूल्यवान जरूर है लेकिन इसकी कहानी और इस कला को जिंदा रखना की कोशिश ने इसे वैश्विक पहचान दिलाई। यह शॉल मूल्यवान और सुंदर होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति व काश्मीरी कारीगरों की प्रतिभा की एक जिंदा मिसाल है। [Rh/SP]

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