Carnivorous plant in jharkhand : पशु-पक्षी तो मांस खाते ही है लेकिन क्या आप जानते है की पौधे भी कीट-पतंगों का भक्षण करते हैं। इन्हें मांसाहारी इसलिये भी कहते हैं, क्योंकि ये पौधे कीड़े-मकौड़ों को खाकर और दूसरे पौधों से नाइट्रोजन सोखकर ही जिंदा रह पाते हैं। यह पौधा ज्यादातर नमी वाली भूमि पर पाया जाता है, जहां नाइट्रोजन की कमी रहती है। आपको बता दें कि झारखंड में हाथियों के लिए संरक्षित दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के जंगल में लगभग 500 की संख्या में दुर्लभ मांसाहारी पौधे पाए गए हैं, जिसका वनस्पति नाम ड्रासेरा बर्मेनाई है और अंग्रेजी में इसे सनड्यू के नाम से जाना जाता है।
राजा घोष मूल रूप से एक वनकर्मी हैं लेकिन वह डीएफओ के सानिध्य में लगातार कई दुर्लभ जीव-जंतुओं व पौधों की खोज करते रहते हैं। पेड़-पौधों पर शोध करने वाले राजा घोष ने इसी दौरान अपनी टीम के साथ इसकी खोज की। उन्होंने इस पौधे के होने की जानकारी दलमा क्षेत्र के वन प्रमंडल पदाधिकारी डा. अभिषेक कुमार के साथ ही झारखंड जैव विविधता परिषद को भेज दी है। जिससे वे इसके संरक्षण व संवर्धन के लिए कोई व्यवस्था कर सके।
जीव जंतु विशेषज्ञ सह को-आपरेटिव कालेज, जमशेदपुर के प्राचार्य डा. अमर सिंह बताते हैं कि यह पौधा अपनी बनावट व रंगों से कीट-पतंगों या कीड़े-मकोड़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह पौधा कीटों को आकर्षित करने के लिए अपने तनों व पत्तों से एक रस का स्राव करता है, जो ओंस की बूंद के समान दिखता है इन्हीं से आकर्षित होकर कीट- पतंगे इनके करीब आ जाते है और ये पौधा अपने शिकार में सफल हो जाता है।
डा. अभिषेक कुमार ने बताया कि दलमा में बड़ी संख्या में ड्रासेरा बर्मेनाई नामक मांसाहारी पौधे पाए जाने की जानकारी मिलते ही उस क्षेत्र को उस क्षेत्र को मानव गतिविधि से मुक्त कर दिया गया है। आयुर्वेदाचार्य डा. मनीष डूडिया के मुताबिक प्राचीन काल से ही इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता था। इसके जड़ का उपयोग खांसी, हृदय रोग, दांत दर्द, फेफड़ों में सूजन, ताकत की दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जड़ के अलावा फूल व फल से भी दवा बनाई जाती है।