![17 साल पहले केरल में आसमान से जब खून की वर्षा होने लगे तो इसने सबको अचंभित कर दिया [X]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-14%2Fvq4zu23a%2Fphoto6316706224858581177x.jpg?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
मानसून(Monsoon), भारत में प्राकृतिक खूबसूरती का एक बेहतर उदाहरण है। भारत में बारिश का मौसम खूब इंजॉय किया जाता है, लेकिन कल्पना करिए कि आसमान से टपकती हुई बारिश की बूंदे आपके चेहरे पर गिरती है और आपका चेहरा लाल हो जाए तो आपको कैसा लगेगा? कुछ इसी प्रकार की घटनाएं 2001 में यानी आज से 17 साल पहले देखने को मिला जब केरल में आसमान से टपकती बूंद का रंग खून की तरह लाल था। लोगों के घर, कपड़े, दरवाज़ों पर जैसे खून की बूंदें टपक गई हों। इस अजीब घटना ने पहले 10 दिनों तक भारी संख्या में रिपोर्टें दीं और फिर धीरे-धीरे दो महीनों तक छिटपुट (sporadic) तौर पर होती रही। 17 साल पहले केरल में आसमान से जब खून की वर्षा (Blood Rain) होने लगे तो इसने सबको अचंभित कर दिया यहां तक के वैज्ञानिक भी इसके कई तथ्य देते हैं लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है कि आखिर इस लाल बारिश या खून की बारिश (Blood Rain) का कारण था क्या?
धूल या मेटीयोरिट?
केरल में यह खून की वर्षा काफी समय तक देखी गई पहले कुछ दिन इस वर्ष को नोटिस किया गया और फिर लगभग दो महीने तक थोड़ी-थोड़े मात्रा में बारिश होती रही। वैज्ञानिक आज भी इस बात को नहीं समझ पाए है कि ये लाल रंग की बारिश (Red rain) कैसे हुई थी। केरल के लोगों का मानना था कि वो बारिश खून की बारिश ही थी। शुरू में वैज्ञानिकों ने सोचा कि यह बारिश सहारा (Sahara) या अरेबियन डस्ट (Arabian dust) की वजह से हुई होगी। लाल वर्षा के माध्यम से आकाश से अनुमानित न्यूनतम 50,000 किलोग्राम लाल कण गिरे हैं। लेकिन LIDAR डेटा से पता चला कि धुल का गुबार मौजूद था, लेकिन बारिश के रंग का कारण नहीं हो सकता। कुछ विद्वानों ने meteor airburst ध्वनि और फ्लैश से जोड़ा, लेकिन इसका भी वैज्ञानिक आधार पर्याप्त नहीं था।
खून की बारिश में मिले थे जीवन होने के संकेत
जिस दिन केरल में लाल बारिश/ Red rain देखी गई थी ठीक उसी दिन वहां के लोगो ने हरे और पीले रंग की बारिश भी देखी थी जिससे पहले वैज्ञानिको को ये लगा की ये असमान से रंग बिरंगा पानी बरसना कोई बड़ी बात नहीं है। यह बारिश और प्रदूषण की वजह से हुआ होगा। लेकिन जैसे ही इस पानी को टेस्ट किया गया तो सबके होश उड़ गए। टेस्ट में पाया गया कि ये सिर्फ पानी नहीं था, इस पानी में जीवन होने के साक्ष्य मिले थे। पानी में जीवन के साक्ष्य मिलने के बाद लगा कि अगर ये खून है तो इसमें डीएनए भी होगा। वैज्ञानिकों ने उसमें डीएनए तलाशने की कोशिश की पर वो असफल रहे।
जांच में निकले एल्गी के कण
केरल के लोग और साइंटिस्ट के बीच यह खून की बारिश का रहस्य बढ़ता ही जा रहा था। केरल की मौजूदा सरकार ने CESS और TBGRI नामक संस्थाओं से इस खून की वर्षा के कण को (Water Sediment) संग्रहित कराया। विश्लेषण में पाया गया कि पानी न तटस्थ था, न ही किसी रासायनिक प्रदूषण से ग्रस्त। न्यूट्रिशन एनालिसिस (Nutrition Analysis) में मिला कि ये लाल कण, Trentepohlia नामक एल्गी (algae) के बीजाणु (spores) थे।
ऐसा अनुमान लगाया गया कि इस एल्गी के बीजाणु ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपीय देशों से मानसून (monsoon) हवा में आए बहकर आए थे, और इसी से इसका रंग लाल था। लेकिन अभी भी यह रहस्य सुलझा नहीं था क्योंकि अलग अलग परीक्षण अलग अलग दावे और थ्योरी दे रहें थें। Godfrey Louis–Santhosh Kumar ने दावा किया कि ये अलौकिक मूल की hyperthermophilic कोशिकाएँ (Cells) थीं जिनमें DNA का कोई सबूत दौड़ता नहीं पाया गया और ये 300°C तापमान में भी जीवित रह जाती थीं। यह भी शायद बाहर से आई थीं। संतोष कुमार की इस थ्योरी के अनुसार केरल में लाल बारिश से पैंस्पर्मिया के सबूत मिले।
एलियंस की थ्योरी भी दी गई
जब लाल बारिश को लेकर 2012 में फिर जांच की गई तो सैंपल में साइंटिस्ट् को छ डीएनए के सैंपल दिखाई देने लगे। सके बाद अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक बहस भी शुरू हो गई और दावा किया जाने लगा कि इसका संबंध एलियंस से हो सकता है। हालांकि एलियंस होने की थ्योरी को वैज्ञानिकों ने खारिज की, लेकिन एक गुट ने अपनी इस थ्योरी को बनाए रखा क्योंकि इनकी सेल संरचना केरल की स्थानीय जीवनप्रतिमाओं जैसी नहीं थी। एलियंस की थ्योरी के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस भी छिड़ गई की क्या यह संभव है कि एलियंस के खून हो सकते हैं। हालांकि, अब भी ये साफ नहीं है कि बारिश क्यों और कैसे हुई थी।
Spore Dispersal की थ्योरी की गई स्वीकार
वास्तव में, व्यापक रूप से वैज्ञानिकों ने Spore dispersal यानी बीजाणु का तेजी से बढ़ना ज्यादा स्वीकार किया गया। Trentepohlia annulata नाम के एल्गी के DNA से स्पष्ट हुआ कि इसका स्रोत यूरोपीय जगहें संभवतः ऑस्ट्रिया थे, और यह मानसून (monsoon) हवाओं द्वारा अफ्रीका और हिन्द महासागर पार आ पहुंचे। यानी यह एक प्राकृतिक मौसमीय घटना थी, जिसमें पौधे द्वारा उत्पादित सूचीबद्ध spores हवाओं में उठे और बारिश के साथ वापस लौटे।
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केरल की लाल बारिश ने एक साधारण बारिश को वैज्ञानिक कन्वर्सेशन का केंद्र, जिज्ञासा की लहर और प्रकृति की गहराई तक हमें ले गई। ये बूंदें सिर्फ रंगीन नहीं थीं, ज्ञान की बूंदों का बारिश था, क्योंकि इसने हमें सोचने पर मजबूर किया कि पृथ्वी और पंखुड़ी का विभाजन इसलिए हुआ कि दोनों मिलकर ही अद्वितीय बनाए जाते हैं। [Rh/SP]