Craft Handloom Tourism Village: प्रत्येक साड़ी में कम से कम तीन दिन का समय लगता है। (Wikimedia Commons)
Craft Handloom Tourism Village: प्रत्येक साड़ी में कम से कम तीन दिन का समय लगता है। (Wikimedia Commons)

प्राणपुर बनेगा देश का पहला क्राफ्ट हैंडलूम टूरिज्म विलेज, जानिए क्या है इस गांव की खासियत

इस प्रोजेक्ट पर पर्यटन विभाग ने 8 करोड़ खर्च किए, जिसके तहत हो रहे कामों का निरीक्षण करने एमपी टूरिज्म विभाग के एएमडी पहली बार चंदेरी पहुंचे।
Published on

Craft Handloom Tourism Village : पर्यटन विभाग प्राणपुर को देश के पहले क्राफ्ट हैंडलूम टूरिज्म गांव के रूप में विकसित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट पर पर्यटन विभाग ने 8 करोड़ खर्च किए, जिसके तहत हो रहे कामों का निरीक्षण करने एमपी टूरिज्म विभाग के एएमडी पहली बार चंदेरी पहुंचे। इस प्रोजेक्ट का काम पूरा होने के बाद देश विदेश से आने वाले पर्यटक चंदेरी साड़ियों की प्राचीन विरासत भी देख पाएंगे।

प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति और प्रबंध संचालक टूरिज्म बोर्ड शिव शेखर शुक्ला ने इसके बारे में कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मार्गदर्शन में पर्यटन विभाग, हस्तशिल्प उत्पादों की गुणवत्ता का विकास, उत्पादों को बाजारोन्मुखी बनाना, कारीगरों को कौशल विकास, उन्नत तकनीकी का प्रशिक्षण, आधुनिकता उपकरणों का प्रदाय तथा उत्पादों की विणपन सहायता उपलब्ध कराया जा रहा है।

शिल्पकारों की कला को किया जा रहा है संरक्षित

क्राफ्ट हैंडलूम टूरिज्म विलेज बनाने के लिए इस गांव का विकास किया जा रहा है। वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार एवं एमपी शासन द्वारा 7 करोड़ 45 लाख रूपये का खर्च हुआ है। इस रूपये से प्राणपुर-चन्देरी, जिला अशोक नगर में 'क्राफ्ट हेण्डलूम टूरिज्म विलेज' का विकास किया गया है। इसका प्रमुख उद्देश्य स्थानीय बुनकरों एवं शिल्पकारों की कला को संरक्षित करते हुए बाजार मुहैया कराना है।

इसका प्रमुख उद्देश्य स्थानीय बुनकरों एवं शिल्पकारों की कला को संरक्षित करते हुए बाजार मुहैया कराना है।(Wikimedia Commons)
इसका प्रमुख उद्देश्य स्थानीय बुनकरों एवं शिल्पकारों की कला को संरक्षित करते हुए बाजार मुहैया कराना है।(Wikimedia Commons)

एक साड़ी तैयार करने में लगता है तीन दिन

प्रत्येक साड़ी में कम से कम तीन दिन का समय लगता है। एक बुनकर ने बताया कि उनका परिवार 200 वर्षों से बुनाई में लगा हुआ है। यहां तक कि उनकी नई पीढ़ियां भी बुनाई में कुशल हैं। उन्हें अपने काम पर गर्व हैं और वे अपनी विरासत को जारी रखना चाहते हैं।इस क्षेत्र की कपड़ा संस्कृति को समझने के लिए प्राणपुर से बेहतर कोई जगह नहीं मिलेगी। एक अन्य बुनकर ने बताया कि पिटलूम बनाने में आधुनिक पावरलूम के विपरीत मैन्युअल श्रम की आवश्यकता होती है। यदि कोई कपड़ा संस्कृति को गहराई से जानना चाहता है, तो प्राणपुर उनके लिए सबसे सही है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाएंगे आयोजित

चंदेरी से चार किलोमीटर दूर स्थित प्राणपुर में यह टूरिज्म विलेज केंद्र और राज्य सरकार के विभागों ने विकसित किया है। यहां एक थिएटर बनाया है, जहां टूरिस्ट के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। शटल चौक में तीन- चार पीढ़ियों के बुनकरों से बातचीत का मौका भी दिया गया है इसके साथ ही साथ गांव में एक कैफे भी बनाया गया है।

logo
hindi.newsgram.com