इस मन्दिर में भक्त पान, गुड़ या लड्डू खाते हुए करते हैं दर्शन, महीने में एक बार ही होता है दर्शन

पूरे देश में उच्छिष्ट महागणपति का एकमात्र मंदिर मध्य प्रदेश में मौजूद है। यह मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर सनावद के पास मोरघड़ी में मौजूद है।
Ganesh Mandir : महीने में केवल एक ही बार संकष्टी चतुर्थी के दिन मात्र साढ़े 13 घंटे के लिए मंदिर के पट खुलते हैं।(Wikimedia Commons)
Ganesh Mandir : महीने में केवल एक ही बार संकष्टी चतुर्थी के दिन मात्र साढ़े 13 घंटे के लिए मंदिर के पट खुलते हैं।(Wikimedia Commons)
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Ganesh Mandir : भगवान गणेश जी अनेकों स्वरूप में पूजे जाते है। उन्हीं में से एक स्वरूप है उच्छिष्ट महागणपति, लेकिन गणेश जी के इस विशिष्ट स्वरूप का दर्शन बहुत कम ही होता है। शास्त्रों में उच्छिष्ट महागणपति को शीघ्र फल देने वाला बताया गया है। पूरे देश में उच्छिष्ट महागणपति का एकमात्र मंदिर मध्य प्रदेश में मौजूद है। यह मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर सनावद के पास मोरघड़ी में मौजूद है।

यहां दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पहुंचते है। महीने में केवल एक ही बार संकष्टी चतुर्थी के दिन मात्र साढ़े 13 घंटे के लिए मंदिर के पट खुलते हैं। इस महिने 28 मार्च को भगवान गणपति के दर्शन होंगे और मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचेंगे। इस दिन भगवती नील सरस्वती के साथ गणेश जी के शयन अवस्था में दुर्लभ दर्शन होते हैं।

पान, गुड़ या लड्डू खाते हुए करे दर्शन

मंदिर के पुजारी संदीप बर्वे के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 10 साल पहले हुआ है। अन्य देवताओं के सवा लाख जप करने से जो फल प्राप्त होता है, उच्छिष्ट महागणपति के साढ़े 12 हजार जप से वही फल मिल जाता है। मान्यता है कि भगवान के दर्शन यदि पान, गुड़ और लड्डू खाते हुए किया जाते तो दस गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।

मंदिर के पट खुलने पर 108 औषधियों से भगवान का अभिषेक होता है। (Wikimedia Commons)
मंदिर के पट खुलने पर 108 औषधियों से भगवान का अभिषेक होता है। (Wikimedia Commons)

यदि किसी को धन की कमी है तो उन्हें गुड़ खाते हुए दर्शन करना चाहिए ऐसे में उन्हें धन की प्राप्ति होती है अगर किसी किसान के पास धन और अनाज के भंडारण की समस्या है या पैदावार में कमी रहती है तो वह किसान लड्डू खाते हुए दर्शन करें। इससे भगवान प्रसन्न होकर शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं।

क्यों यहां शयन अवस्था में होती है पूजा

पुजारी जी ने बताया कि विद्यावान नाम के राक्षस का वध केवल ऐसे व्यक्ति के हाथों संभव था, जो न तो मनुष्य हो और न ही जानवर और दूसरी शर्त थी कि राक्षस का वध केवल शयन अवस्था में ही कर सकते हैं। परंतु ये कार्य के लिए गणेश जी के साथ रिद्धि सिद्धि राजी नहीं हुई। तब सारे देवताओं और संतों ने अथर्ववेद के मंत्र के जरिए यज्ञ किया। इस यज्ञ से भगवती नील सरस्वती शक्ति के रूप में प्रकट हुईं। गणेश जी ने नील सरस्वती के साथ राक्षस का वध किया, इसलिए शयन अवस्था में विशेष तिथियों में ही दर्शन होते हैं।मंदिर के पट खुलने पर 108 औषधियों से भगवान का अभिषेक होता है। यहां विशेष प्रकार की महाआरती होती है।

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