Gokaasth Wood : होली हो या लोहड़ी या फिर बॉर्न फायर का आनंद लेना हो ऐसे बहुत से कामों में लकड़ी का उपयोग किया जाता है। लकड़ी के लिए कई पेड़ों को काटना पड़ता है, जिससे हरियाली कम होती है और इससे प्रदूषण भी बढ़ जाता है। ऐसी परिस्थिति में पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए भोपाल के वैज्ञानिक डॉ. योगेंद्र सक्सेना कई वर्षों से इसपर काम कर रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल में वैज्ञानिक डॉक्टर सक्सेना को अब 'गोकाष्ठ मैन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है क्योंकि उन्होंने गोबर से लकड़ी अर्थात् गोकाष्ठ बनाने को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है। कई जगहों पर गोबर से कंडे बनाए जाते हैं। यदि इसी प्रक्रिया को मशीन के द्वारा ठोस रूप में लकड़ी के जैसा बनाया जाए तो वह गोकाष्ठ बन जाता है।
उनकी गौशाला भोपाल से 25 किमी दूर है। यहां डॉक्टर योगेंद्र सक्सेना ने बताया कि मध्य प्रदेश में गोकाष्ठ दर्जनों स्थान पर बनाए जाने लगा है और उसका उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है। डॉ. योगेंद्र सक्सेना ने आगे बताया कि उन्होंने मानक पर्यावरण परिस्थिति में लकड़ी और गोकाष्ठ दोनों को जलाया। प्रदूषण के अंतर को नापा तो हैरान रह गए, गोकाष्ठ लकड़ी की तुलना में पार्टिकुलेट मैटर 43.9 प्रतिशत कम रहा। सल्फर डाइऑक्साइड 55.18% कम उत्सर्जित हुई। नाइट्रिक ऑक्साइड 14.96, जबकि कार्बन मोनोऑक्साइड का 24.80 कम उत्सर्जन हुआ। कुल मिलाकर लकड़ी की तुलना में कुल 35% कम प्रदूषण हुआ।
भोपाल में औसत रूप में गोकाष्ठ की कीमत करीब साढ़े 7 रुपए किलो ग्राम है। संजीवनी गौशाला में कुल 50 गायें हैं, जिनके गोबर द्वारा गोकाष्ठ का निर्माण किया जा रहा है। सबसे अच्छी बात यह है कि गौशाला के माध्यम से उन्होंने आसपास की 10 से 20 महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा है।
अभी होली का त्यौहार आ रहा है इसके बाद ऐसे कई त्यौहार और कई अनुष्ठान होते हैं जिसमें लकड़ी का उपयोग जलाने के लिए होता है। ऐसे में यदि ज्यादा से ज्यादा लोग गोकाष्ठ से होलिका दहन करेंगे या गोकाष्ठ का उपयोग जलाने के लिए करेंगे तो पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी।