

एयर इंडिया फ्लाइट पर माही खान और महिला यात्री के बीच हुए विवाद की सच्चाई क्या है?
कैसे राजनीतिक दलों के दखल से मामला और बिगड़ गया।
क्यों यह घटना भाषा की राजनीति और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बड़ा सवाल उठाती है।
हाल ही में एयर इंडिया (Air India) की एक फ्लाइट में यूट्यूबर माही खान (Mahi Khan) और बंगाल (Bengal) की एक महिला यात्री के बीच विवाद हुआ।
माही खान ने सोशल मीडिया (social media) पर एक वीडियो पोस्ट कर कहा कि उस महिला ने उन्हें मराठी (Marathi) में बोलने के लिए कहा, क्योंकि वह मुंबई जा रहे थे।
उनके मुताबिक, महिला ने उनसे यह तक कहा कि “मुंबई में हो, तो मराठी में बात करो।”
लेकिन यह बात सिर्फ माही खान के बयान पर आधारित थी, इसका कोई वीडियो सबूत या गवाह सामने नहीं आया।
महिला ने बाद में मीडिया से बात करते हुए कहा कि माही खान (Mahi Khan) ने झूठी कहानी गढ़ी ताकि उन्हें सोशल मीडिया पर व्यूज़ और पहचान मिल सके।
उन्होंने बताया कि इस वायरल वीडियो (Viral Video) के कारण उन्हें अपनी नौकरी तक खोनी पड़ी, जबकि असलियत कुछ और थी।
दूसरी ओर, माही खान ने बाद में वीडियो डिलीट कर दिया और सोशल मीडिया पर माफी भी मांग ली, यह कहते हुए कि उनका मकसद किसी भाषा या संस्कृति का अपमान करना नहीं था।
राजनीतिक दखल और दबाव
जब मामला सोशल मीडिया पर फैल गया, तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के नेता अविनाश जाधव ने इस पर प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने माही खान को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने माफी नहीं मांगी तो उन्हें “सज़ा” दी जाएगी।
इस बयान के बाद माही खान ने फौरन वीडियो हटाया और माफी मांग ली।
यहां सवाल यह उठता है कि जब घटना की सच्चाई अभी तक साबित नहीं हुई थी, तो फिर किसी व्यक्ति को राजनीतिक दबाव में क्यों झुकना पड़ा?
यह घटना दिखाती है कि आज के समय में राजनीतिक दखल और भाषा की राजनीति इतनी बढ़ गई है कि लोग अपनी बात कहने से पहले डरने लगे हैं।
किसी भी लोकतांत्रिक समाज (Democratic Society) में यह स्थिति चिंताजनक है।
क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Independence) तभी मायने रखती है, जब व्यक्ति बिना डर के अपनी राय रख सके।
भारत (India) एक ऐसा देश है जहां हर राज्य की अपनी अलग भाषा, संस्कृति और पहचान है।
ऐसे में अगर कोई व्यक्ति किसी भाषा का उपयोग करे या न करे, तो यह उसकी व्यक्तिगत आज़ादी है।
लेकिन जब इस बात को राजनीतिक रंग दे दिया जाता है, तो यह समाज में फूट और नफरत फैलाने का कारण बन जाता है।
इस मामले में भी यही हुआ।
एक मामूली बहस को भाषा बनाम क्षेत्र के मुद्दे में बदल दिया गया।
राजनीतिक दलों ने इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया, और नतीजा यह हुआ कि असली बात, यानी सच्चाई, पीछे रह गई। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जहां हर राज्य की अपनी भाषा और संस्कृति है, वहां “भाषा के नाम पर राजनीति” करना समाज में फूट और डर का माहौल पैदा करता है।
इस घटना ने यह दिखा दिया कि राजनीतिक हस्तक्षेप से सोशल मीडिया विवाद और भी जटिल बना सकते हैं।
भाषा पर राजनीति और पहचान के इस टकराव में सबसे ज़्यादा नुकसान आम नागरिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का होता है। जब नेता काम छोडकर भाषा जैसे विवादों पर ध्यान देते है तो आम लोगो में लड़ाई और आपस में भेद भाव बढ़ जाता है
(Rh/BA)