सिर्फ पानी लाने के लिए तीन-तीन बीवियां! ये गांव है या कोई फिल्मी कहानी?

सोचिए एक ऐसा गांव, जहां सूरज की पहली किरण के साथ लोग बाल्टी नहीं, आशा और थकावट लेकर कुएं की ओर दौड़ते हैं। जहां पानी भरने की बारी किसी तीज-त्योहार से कम नहीं लगती। और जहां शादी सिर्फ प्रेम या परंपरा नहीं, बल्कि जरूरत की रणनीति बन गई है, ताकि एक पत्नी बच्चे संभाले, दूसरी खेत और तीसरी सिर्फ पानी भर लाए! ये कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि भारत के उन सूखा-ग्रस्त इलाकों की हकीकत है जहां पानी अब सोने से भी कीमती हो गया है।
जल संकट ने लोगों को ऐसी हद तक मजबूर कर दिया है कि वे प्यास के आगे रिश्तों की गरिमा तक भूल चुके हैं। [SORA AI]
जल संकट ने लोगों को ऐसी हद तक मजबूर कर दिया है कि वे प्यास के आगे रिश्तों की गरिमा तक भूल चुके हैं। [SORA AI]
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सोचिए एक ऐसा गांव, जहां सूरज की पहली किरण के साथ लोग बाल्टी नहीं, आशा और थकावट लेकर कुएं की ओर दौड़ते हैं। जहां पानी भरने की बारी किसी तीज-त्योहार से कम नहीं लगती। और जहां शादी सिर्फ प्रेम या परंपरा नहीं, बल्कि जरूरत की रणनीति बन गई है, ताकि एक पत्नी बच्चे संभाले, दूसरी खेत और तीसरी सिर्फ पानी भर लाए! ये कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि भारत के उन सूखा-ग्रस्त इलाकों की हकीकत है जहां पानी अब सोने से भी कीमती हो गया है। जल संकट ने लोगों को ऐसी हद तक मजबूर कर दिया है कि वे प्यास के आगे रिश्तों की गरिमा तक भूल चुके हैं।

पानी की इस कमी ने समाज की बनावट, महिलाओं की जिंदगी और गांवों की सोच को इस कदर बदल दिया है [X]
पानी की इस कमी ने समाज की बनावट, महिलाओं की जिंदगी और गांवों की सोच को इस कदर बदल दिया है [X]

पानी की इस कमी ने समाज की बनावट, महिलाओं की जिंदगी और गांवों की सोच को इस कदर बदल दिया है कि अब सवाल सिर्फ "कब पानी आएगा?" नहीं, बल्कि "कितनी बीवियां लानी पड़ेंगी?" बन गया है। कभी जीवन का स्रोत माने जाने वाला पानी, अब संघर्ष, समझौता और शोषण का दूसरा नाम बनता जा रहा है।

महाराष्ट्र का एक ऐसा गांव जहां एक आदमी की हैं 3 बीवियां

मुंबई से कुछ किलोमीटर दूर महाराष्ट्र (Maharashtra) के देंगनमाल गांव (Denganmal Village) है, जहां सूखा की वजह से पानी एक बड़ी समस्या है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र (Maharashtra)के 19,000 गांवों में पानी की काफी बड़ी समस्या है। इस गांव पर कई वृत्तचित्र और स्टोरी मिल जाती हैं, जहां पुरुषों ने एक पत्नी के गर्भवती हो जाने के बाद दूसरी शादी इसलिए कर ली, क्योंकि घर में पानी लाने की समस्या उत्पन्न हो रही थी। इस गांव में पानी के लिए दूसरी शादी बहुत ही सामान्य बात है। यहां की महिलाएं इस बात को काफी सहज तरीके से लेती हैं। किसी किसी घरों में 2 से अधिक बीवी भी है जिन्हें सिर्फ और सिर्फ़ पानी लाने के लिए ही रखा गया है।

किसी किसी घरों में 2 से अधिक बीवी भी है जिन्हें सिर्फ और सिर्फ़ पानी लाने के लिए ही रखा गया है। [X]
किसी किसी घरों में 2 से अधिक बीवी भी है जिन्हें सिर्फ और सिर्फ़ पानी लाने के लिए ही रखा गया है। [X]

एक आदमी की तीन बीवियां, ये कैसी मजबूरी?

महाराष्ट्र के देंगलमल गांव (Denganmal Village) के पुरुष एक नहीं, बल्कि दो या तीन महिलाओं से शादी करते हैं।ताकि हर पत्नी को एक अलग जिम्मेदारी दी जा सके। इन जिम्मेदारियों में सबसे अहम है पानी लाना। पहली पत्नी जब गर्भवती होती है तो पुरुष अन्य शादी के विकल्प ढूंढते हैं ताकि बाकी के कामकाज आसानी से हो सकें। दूसरी पत्नी खेत और जानवरों की देखभाल में लगी रहती है, जबकि तीसरी पत्नी को सिर्फ पानी लाने के लिए रखा गया है। यहां एक बात गौर करने वाली यह है की जो पहली पत्नी होती है सिर्फ उसे ही मुख्य पत्नी का दर्जा मिलता है यानी बच्चे पैदा करने से लेकर घर की सभी मुख्य जिम्मेदारियां उसकी होती है बाकी की दो पत्नी सिर्फ एक काम वाली की तरह होती है उन्हें ना तो घर के किसी मुख्य फसलों में शामिल किया जाता है और ना ही उन्हें बच्चे पैदा करने या फिर किसी अन्य प्रकार की पत्नी वाले सभी दर्ज दिए जाते हैं।

महाराष्ट्र के देंगलमल गांव के पुरुष एक नहीं, बल्कि दो या तीन महिलाओं से शादी करते हैं। [X]
महाराष्ट्र के देंगलमल गांव के पुरुष एक नहीं, बल्कि दो या तीन महिलाओं से शादी करते हैं। [X]

इस इलाके में पानी सुबह 4 बजे या देर रात ही उपलब्ध होता है, और वह भी दूर-दराज के इलाकों से। कई बार बारी के लिए लाइन में लगना पड़ता है या मीलों पैदल चलकर पानी लाना होता है। इसलिए पुरुष ज्यादा पत्नियां रखते हैं ताकि पानी लाने का काम किसी एक पर न पड़े। यह परंपरा नहीं, बल्कि जीवित रहने की एक कड़वी तकनीक बन गई है, जिसमें शादी एक सामाजिक संस्था नहीं, सुविधा बन गई है। गांव के कई बुजुर्ग मानते हैं कि यह कोई 'फैशन' नहीं है, बल्कि सिर्फ 'सर्वाइवल' है।

इस इलाके में पानी सुबह 4 बजे या देर रात ही उपलब्ध होता है [X]
इस इलाके में पानी सुबह 4 बजे या देर रात ही उपलब्ध होता है [X]

औरतों की मजबूरी – कबूल क्यों कर लेती हैं ऐसी शादियां?

आपको बता दे कि भारत में कई ऐसे जगह है जहां पर एक पुरुष की कई पत्नियों होती हैं हालांकि यह लीगल नहीं है कानूनी तौर पर अमान्य है लेकिन मजबूरी ऐसी है की यहां की औरतें खुशी-खुशी एक दूसरे की सौतन बनने को तैयार रहती हैं। ध्यान देने वाली बात एक और है कि जब एक पुरुष दूसरी तीसरी या चौथी शादी करता है तो शादी के बाद उसे स्त्री को पत्नी का दर्जा नहीं मिलता वह सिर्फ एक काम वाली किसी मजबूरी के कारण पुरुष से विवाह करती हैं। अक्सर पुरुष उन स्त्रियों को ही अपनी दूसरी तीसरी या चौथी पत्नी बनाते हैं जो विधवा हैं इससे पुरुषों के पानी भरने की समस्या भी खत्म हो जाती है और महिलाओं को समाज में शादीशुदा होने का टैग भी मिल जाता है।

जब एक पुरुष दूसरी तीसरी या चौथी शादी करता है तो शादी के बाद उसे स्त्री को पत्नी का दर्जा नहीं मिलता [X]
जब एक पुरुष दूसरी तीसरी या चौथी शादी करता है तो शादी के बाद उसे स्त्री को पत्नी का दर्जा नहीं मिलता [X]

इन गांवों की महिलाएं यह जानती हैं कि अगर वे इस इलाके में शादी करना चाहती हैं, तो उन्हें ऐसी सामूहिक शादी व्यवस्था को स्वीकार करना होगा। कई बार ये महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर तबके से आती हैं और उनके पास जीवन यापन का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता। कुछ मामलों में तो विधवाएं या तलाकशुदा महिलाएं भी 'दूसरी' या 'तीसरी' पत्नी बनने को तैयार हो जाती हैं ताकि उन्हें रहने की जगह और भोजन मिल सके।

इन गांवों की महिलाएं यह जानती हैं कि अगर वे इस इलाके में शादी करना चाहती हैं, तो उन्हें ऐसी सामूहिक शादी व्यवस्था को स्वीकार करना होगा। [SORA AI]
इन गांवों की महिलाएं यह जानती हैं कि अगर वे इस इलाके में शादी करना चाहती हैं, तो उन्हें ऐसी सामूहिक शादी व्यवस्था को स्वीकार करना होगा। [SORA AI]

हालांकि यह उनकी स्वीकृति नहीं, बल्कि लाचारी है। पानी लाने के लिए उन्हें कई किलोमीटर चलना, रात में अकेले बाहर जाना, और पानी न मिलने पर गालियां या मार भी सहनी पड़ती है। बावजूद इसके, वे चुप रहती हैं, क्योंकि उनके पास कोई और रास्ता नहीं है। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जहां पितृसत्ता, गरीबी और संसाधनों की कमी मिलकर औरत को सिर्फ एक 'ज़रूरत' बना देते हैं, न कि इंसान।

राजस्थान में भी है ऐसी परंपरा

इसी तरह राजस्थान में बाड़मेर के देरासर गांव की भी यही कहानी है। पत्नी के गर्भवती होते ही यहां पति दूसरी शादी कर लेता है। यह दूसरी पत्नी घर के सारे काम करने के साथ-साथ घर की प्रमुख जरूरत पानी लाने का काम भी करती है। यहां पानी लाने के लिए पांच से दस घंटे का समय लगता है और कई-कई किलोमीटर पैदल चलकर सिर पर कई बर्तन रखकर चलना पड़ता है। यह काम गर्भवती स्त्री के लिए खतरनाक हो सकता है। इसलिए यहां के पुरुष दूसरी शादी करके इस समस्या का ‘सस्ता’ निकाल लेते हैं।

 ऐसी पत्नियां ‘वाटर वाइब्स’ यानी ‘पानी की पत्नियां’ या ‘पानी की बाई’ कहलाती हैं। [X]
ऐसी पत्नियां ‘वाटर वाइब्स’ यानी ‘पानी की पत्नियां’ या ‘पानी की बाई’ कहलाती हैं। [X]

इन गांवों में ऐसी पत्नियां ‘वाटर वाइब्स’ ('Water Wives') यानी ‘पानी की पत्नियां’ या ‘पानी की बाई’ कहलाती हैं। इन तथाकथित पत्नियों को पहली पत्नी की तरह अधिकार नहीं मिलते हैं। ऐसी पत्नियां या तो गरीबी की मारी होती हैं या फिर विधवा या पतियों द्वारा छोड़ी हुईं होती हैं। ये महिलाएं एक आसरे की आस में यह अमानवीय जीवन स्वीकार लेती हैं। यहां का सरकारी महकमा भी सामाजिक स्वीकृति के कारण कुछ भी करने में असमर्थ रहता है।

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यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि देश की जल नीति, महिला अधिकारों और सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाती है। क्या हमें वाकई ऐसे समाज में जीना चाहिए जहां पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए किसी महिला को ‘शादी की सौगात' बनना पड़े? जब तक सरकार इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेती और जल प्रबंधन को गांव-स्तर पर सुलझाने की ठोस योजना नहीं बनाती, तब तक ये 'फिल्मी सी लगने वाली सच्चाई' और भी कड़वी होती जाएगी। [Rh/SP]

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