क्या बिना मिट्टी और बिना पानी के भी खेती हो सकती है? भीलवाड़ा में इजरायल तकनीक का हो रहा है इस्तेमाल

हमे गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिए आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करना चाहिए। जिससे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाया जा सके।
Israel Advanced Agriculture Technology -हमारे देश में भीलवाड़ा को टेक्सटाइल सिटी कहा जाता है। (Wikimedia Commons)
Israel Advanced Agriculture Technology -हमारे देश में भीलवाड़ा को टेक्सटाइल सिटी कहा जाता है। (Wikimedia Commons)

Israel Advanced Agriculture Technology - खेती में नए प्रयोग और नए तकनीक का इस्तेमाल हमेशा होते रहना चाहिए यह कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है, मृदा के क्षरण को रोकती है साथ ही फसल उत्पादन में रासायनिकों के अनुप्रयोग को कम करती है।

और सबसे महत्वपूर्ण इससे जल संसाधनों का कुशल उपयोग कर सकते है। हमे गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करना चाहिए। जिससे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाया जा सके। हमारे देश में भीलवाड़ा को टेक्सटाइल सिटी कहा जाता है, लेकिन अब यहां कपड़ों के अलावा खेती में भी नए प्रयोग देखने को मिल रहे हैं।

 भीलवाड़ा में इजरायली तकनीक से बिना मिट्टी और बिना पानी के खेती की जा रही है। इस तकनीक से देश-विदेश की 30 तरह की सब्जियों और फलों की खेती की जा रही है। किसान इन फलों और सब्जियों को भीलवाड़ा के अलावा दिल्ली, गुजरात और मुंबई जैसे शहरों में बेच रहे हैं, जिससे उन्हें लाखों का मुनाफा हो रहा है। इस तकनीक की खास बात ये है कि इसके माध्यम से ऑफ सीजन में भी सभी तरह की सब्जियां उगाई जा सकती हैं।

इस विधि अगर खेती किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। (Wikimedia Commons)
इस विधि अगर खेती किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। (Wikimedia Commons)

क्या है लाभ इस तकनीक का?

इजरायली तकनीक से होने वाली इस खेती में सबसे पहले एग्रीक्लचर फार्म में एक स्टेंड बनाया जाता है, जिससे इसमें लगातार पानी बहता रहे और पौधों को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर और आयरन जैसे पोषक तत्व मिलते रहें। इस विधि अगर खेती किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत तक पानी की बचत हो जाती है। खेती की इस तकनीक में फार्म हाउस का तापमान 15 से 32 डिग्री सेल्सियस तक रखा जाता है।

मिट्टी की जगह नारियल के भूसे से बनाए कोकोपिट का उपयोग किया जाता है। (Wikimedia Commons)
मिट्टी की जगह नारियल के भूसे से बनाए कोकोपिट का उपयोग किया जाता है। (Wikimedia Commons)

नारियल के भूसे से बन रहा है कोकोपिट 

संगम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. करुणेश सक्सेना ने कहा कि हमने एग्रीक्लचर फार्म में एक नवाचार किया है, जिसमें मिट्टी की जगह नारियल के भूसे से बनाए कोकोपिट का उपयोग किया जाता है। हम इस तकनीक के माध्यम से छात्रों को शिक्षित भी कर रहे हैं, जिससे भविष्य में उन्नत खेती की जा सके। हम चाहते हैं कि कृषि को एक व्यावसायिक दर्जा प्रदान कर ज्यादा से ज्यादा उत्पादन बढ़ा सकें। इसलिए हम लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं।

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