![एक राज्य ऐसा भी है जहां बड़े बुजुर्ग काफ़ी खतरे में रहते हैं। [Sora AI]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-29%2Fv0sap5w5%2Fassetstask01k1b4jvd0fnd8cs1g423jthy91753794452img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत जैसे महान देश में, जहां बड़े बुजुर्गों को एक ख़ास दर्ज़ा और सम्मान दिया जाता है जहां यह माना जाता है कि : सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्॥ अर्थात माता सभी तीर्थों के समान है और पिता सभी देवताओं के समान हैं। इसलिए, माता-पिता की हर संभव तरीके से पूजा करनी चाहिए। ऐसे देश में एक राज्य ऐसा भी है जहां बड़े बुजुर्ग काफ़ी खतरे में रहते हैं।
भारतीय समाज हमेशा ही लोगों को अपने घर के बड़े-बुजुर्गों की इज्जत करना सिखाता है। भारतीय लोग जानते हैं कि इंसान भले ही बूढ़ा हो जाए मगर उसके अनुभव कभी पुराने नहीं होंगे। मगर भारत में ही एक ऐसी जगह है जहां बुजुर्गों (Indian State where Old People are Killed by family) को उनके ही परिवार के लोग मार डालते हैं। इस बेहद हैरान करने वाली प्रथा (Weird Custom to kill elderly people) के पीछे विचित्र कारण है।
इस राज्य में होती हैं बूढ़ों की हत्या
तमिलनाडु राज्य के दक्षिणी (South Districts of Tamil Nadu) हिस्से में ‘थलाईकूथल’ (Thalaikoothal) नाम की एक प्रथा (Killing Old People Tradition in Tamil Nadu) पिछले काफी वक्त से मानी जा रही है। ये प्रथा जितनी हैरान करने वाली है उतनी ही खौफनाक भी है।
यह क्रूर प्रथा तामिलनाडु (Tamil Nadu) राज्य के दक्षिणी जिलों, खासकर विरुधुनगर, रामनाथपुरम और आसपास के ग्रामीण इलाकों में पाई जाती है। इस प्रथा में बुजुर्ग को परिवार द्वारा मर जाने दिया जाता है। कुछ ऐसा व्यवहार होता है, जैसे “मेर्सी किलिंग” हो, लेकिन असल में यह जघन्य हत्या ही है।
क्या है ‘थलाईकूथल’ की प्रथा?
‘थलाईकूथल’ की प्रथा एक बड़ी ही अजीब सी प्रथा है, जिसमें बड़े बुजुर्गों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। इस प्रथा के अंतर्गत उन बुजुर्गों को मार दिया जाता है जो किसी खतरनाक बीमारी से पीड़ित है या जिनके अंदर करने की इच्छा बड़ी तेजी के साथ बढ़ने लगती है।
कई बार परिवार या आस पड़ोस के लोग खुद ही ये फैसला कर लेते हैं, तब जब उन्हें लगता है कि बुजुर्ग अब बेहोशी या कोमा की अवस्था में चला गया या फिर बिल्कुल अपनी मौत के मुंह तक वो पहुंच चुका है। इस प्रथा में दक्षिण भारत के कई राज्य शामिल है और इस प्रथा के पीछे काफी पुरानी कहानी भी प्रचलित है।
क्या है 'थलाईकूथल’ से जुड़ा इतिहास
'थलाईकूथल' का इतिहास प्राचीन दायरे से जुड़ा हुआ है। जहाँ बुजुर्गों को जीवन से विदा करने की सोच “मर्यादित मौत” की तरह अपनाई जाती थी। हालांकि यह भारत में कानूनी रूप से अवैध है, फिर भी यह परंपरा छुप-छुप कर अपनाई जाती रही है और वो भी सामाजिक स्वीकार्यता के नाम पर यह प्रथा अपनाई जाती है।
2010 में विरुधुनगर जिले में एक केस सामने आया, जिसमें 80 वर्षीय बुजुर्ग को जब पता चला कि उसकी मौत होने वाली है तो सुनते ही उन्होंने घर छोड़ दिया और किसी रिश्तेदार के पास जाकर छिप गए। इस घटना ने साबित किया कि यह प्रथा “कुछ गांवों में काफी व्यापक है”, जहाँ दर्जनों मामलों की छानबीन भी हुई।
क्यों अपनाई जाती है यह प्रथा?
रिपोर्ट्स के अनुसार जब थलाईकूथल की प्रथा जारी रहती है, उसी वक्त अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। हैरानी की बात ये है कि इस मामले में पुलिस केस भी नहीं हो पाता क्योंकि ये सारी मौतें बुढ़ापे में नेचुरल डेथ की तरह देखी जाती है और डॉक्टर भी डेथ रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर देते हैं।
जब चिकित्सा की सुविधा देश में काफी खराब थी, तब इस प्रथा को ज्यादा अपनाया जाता था। उस दौरान गरीब लोग, जिनके पास इलाज के पैसे नहीं होते थे, इस प्रथा का पालन करते थे। इस कुप्रथा को अक्सर ‘दयालु हत्या’ कहकर प्रस्तुत किया जाता है। अक्सर बुजुर्गों को खर्चीला माना जाता है, विशेषतः जब वे शारीरिक रूप से निर्भर होते हैं। तो ऐसी परिस्थिति में भी परिवार उनसे पीछा छुड़ाने के चक्कर में उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में संपत्ति की लालच में भी बुजुर्गों को मार दिया जाता है इसके अलावा कई प्रकार की मंडी या धार्मिक विश्वास के कारण भी इन बुजुर्गों को मार दिया जाता है।
घटना के बाद गाँव में कोई शोर नहीं होता; मामला संयुक्त परिवार की “दुखभरी पारिवारिक प्रथा” के रूप में दब जाता है। पुलिस जांच बहुत कम होती है, क्योंकि परिवार और समाज इसे नैतिक दायित्व समझता है और कोई शिकायत दर्ज नहीं कराता।
इन तरीकों का इस्तेमाल कर बुजुर्गों को जान से मारा जाता है
इस प्रथा में मौत देने के लिए पहले तेल से बुजुर्ग शख्स को नहलाया जाता है। फिर उसे जबरन कच्चे नारियल का रस पिलाया जाता है। उसके बाद तुलसी का रस और दूध पिला दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे खास कारण है। तेल से नहलाने के बाद तुरंत ये चीजें पिलाने से शरीर का तापमान 92-93 डिग्री फैरेनहाइट तक चला जाता है जो सामान्य तापमान से काफी कम हो जाता है। ऐसे में शरीर का तंत्र बिगड़ने लगता है और दिल का दौरान पड़ने से मौत हो जाती है।
बेहद बीमार और बिस्तर पर पड़े बुजुर्गों को कई बार कड़ी चकली जैसी डिश मुरुक्कू दी जाती है। उसे जानबूझकर उनके गले में डाला जाता है जिससे कड़ी चीज गले में फंस जाए और उनकी दम घुटने से मौत हो जाए।
एक और तरीका ये होता है कि मिट्टी को पानी में मिलाकर मरते हुए आदमी को पिला दिया जाता है। इससे अधमरे आदमी का पेट खराब हो जाता है और मौत हो जाती है।
ये होती है हमारी संस्कृति की अँधेरी परत, जहाँ बुजुर्गों की जिंदगी परिवार की सुविधा और संपत्ति गिराने की कहानी से मेल खाती है। यह प्रथा न केवल कानूनी अपराध बल्कि मानवता के खिलाफ एक शिकंजा है। Thalaikoothal सिर्फ एक कथित "mercy killing" नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की शर्मनाक धुंधली परंपरा है, जिस पर हमें एक जवाबदेही भरा सवाल उठाना चाहिए। [Rh/SP]