Vivekananda Rock Memorial : जब से पता चला है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार अभियान खत्म होने के बाद 30 मई को कन्याकुमारी जाएंगे और यहां विवेकानंद शिला स्मारक के 'ध्यान मंडपम' में 1 जून तक ध्यान- साधना करेंगे, तब से लोगों के बीच इस जगह को लेकर काफी चर्चा हो रही है। आपको बता दें यह वहीं मेमोरियल है, जहां 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने लगातार तीन दिनों तक साधना की थी। आइए विस्तार से जानते हैं इस जगह के इतिहास को।
यह बात 60 के दशक की है, यहां केवल शिला ही हुआ करती थी। साल 1963 में जब स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी मनाई जा रही थी, तब कन्याकुमारी के कुछ स्थानीय लोगों ने शिला के पास एक स्मारक बनाने का मन बनाया। लेकिन वे सफल नहीं हुए, इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर से संपर्क किया। गोलवलकर ने आरएसएस के प्रचारक एकनाथ रानाडे को स्मारक निर्माण का जिम्मा सौंपा।
एकनाथ रानाडे अपनी किताब “स्टोरी ऑफ विवेकानंद रॉक मेमोरियल” में लिखते हैं कि उस समय तमिलनाडु में कांग्रेस की सरकार थी और एम. भक्तवत्सलम मुख्यमंत्री हुआ करते थे। जब उनसे मेमोरियल के लिए मदद मांगी तो साफ मना कर दिया गया। यही रुख केंद्रीय सांस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर का भी था। रानाडे ने इसके बाद भी हार नहीं मानी, वह दिल्ली आ गए और लाल बहादुर शास्त्री से मिले।
लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें विवेकानंद शिला स्मारक के लिए जनमत तैयार करने की सलाह दी। इसके बाद एकनाथ रानाडे फौरन अपने काम में जुट गए और अगले तीन दिन के अंदर 323 सांसदों से मिलकर उनसे सिग्नेचर करा लिया। जिसमें कांग्रेस से लेकर लेफ्ट जैसी पार्टियों के सांसद भी शामिल थे। इसके बाद रानाडे वापस शास्त्री के पास पहुंचे और उन्होंने हामी भर दी।
विवेकानंद केंद्र के अनुसार शिला के लिए करीब सभी राज्य सरकारों ने 1-1 लाख का दान दिया। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है आम लोगों का चंदा। एकनाथ रानाडे गांव-गांव तक गए और लोगों से कहा कि वे एक रुपये से लेकर अधिकतम 5 रुपये का चंदा दे सकते हैं। कुल 30 लाख लोगों ने चंदा दिया। इस प्रकार स्मारक का निर्माण शुरू हो गया। इसके बाद 2 सितंबर 1970 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने इसका उद्घाटन किया।
यहां जनवरी 1972 में 'विवेकानंद केंद्र' नाम के एक संगठन की स्थापना हुई, जो विवेकानंद शिला स्मारक का संचालन करता है। यह संगठन कन्याकुमारी में योग शिविर से लेकर स्प्रिचुअल रिट्रीट जैसे कार्यक्रम आयोजित करता है। इसके अलावा देश भर में तमाम स्कूल भी संचालित करता है। पूर्वोत्तर भारत में वहां की संस्कृति और विरासत के लिए भी काम कर रहा है।