![बोनालु महोत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति का प्रतीक है। [Wikimedia commons ]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-05%2Fx3wmpzex%2FBonaluCelebrationsinUppal20198.jpg?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत त्योहारों का देश है और हर राज्य की अपनी-अपनी सांस्कृतिक (Cultural) पहचान होती है। दक्षिण भारत का राज्य तेलंगाना (Telangana) भी इस मामले में पीछे नहीं है। यहाँ के पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े होते हैं, बल्कि यह एक सामाजिक एकता, लोकनृत्य, संगीत और सांस्कृतिक (Cultural) परंपराओं का भी भव्य प्रदर्शन करते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है, बोनालु महोत्सव, जो देवी महाकाली को समर्पित है और पूरे तेलंगाना, खासकर हैदराबाद और सिकंदराबाद में अत्यंत श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जाता है।
बोनालु क्या है ?
"बोनालु" (Bonalu) शब्द एक तेलुगु शब्द है जो की "भोजनम" से निकला है, जिसका अर्थ होता है "भोजन" या "दावत"। इस त्योहार में महिलाएं देवी महाकाली को बोनम यानी खास प्रसाद चढ़ाती हैं। इस प्रसाद में दूध, चावल, गुड़ और देसी घी से बना पकवान होता है, जिसे महिलाएं सजाकर पीतल या मिट्टी के बर्तनों में रखकर मंदिर में चढ़ाती हैं। इन बर्तनों को नीम की पत्तियों, हल्दी, सिंदूर और एक जलते दीपक से सजाया जाता है।
बोनालु महोत्सव (Festival) हर साल आषाढ़ के महीने में (जुलाई–अगस्त) में मनाया जाता है। यह महोत्सव खस्सकार हैदराबाद, सिकंदराबाद, गोलकोंडा, और तेलंगाना के अन्य हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
बोनालु (Bonalu) महोत्सव (Festival) के पीछे एक ऐतिहासिक और भावुक कहानी है। कहा जाता है कि 19वीं शताब्दी में हैदराबाद में प्लेग फैला था, जिससे हजारों लोग मारे गए। हैदराबाद के कुछ लोग काशी (वाराणसी) गए थे और वहां देवी महाकाली से प्रार्थना की कि अगर वे इस महामारी को खत्म कर दें, तो उनके सम्मान में हर साल विशेष पूजा करेंगे। जब महामारी से राहत मिली, तो लोगों ने यह प्रतिज्ञा निभाई और तभी से हर साल बोनालु मनाया जाता है।
बोनालु का महत्व:
यह महोत्सव (Festival) केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि यह एक "आस्था और गुणों " की गहराई से जुड़ा हुआ है। लोग मानते हैं कि देवी महाकाली उनकी रक्षा करती हैं, बीमारियों और बुरी शक्तियों से दूर रखती हैं। इसलिए यह पर्व धन्यवाद देने का प्रतीक भी माना जाता है, यह महोत्सव एक भक्त और ईश्वर के रिश्ते का जीवित प्रमाण भी बन गया है।
पूजा की विधि और परंपरा:
1. प्रसाद की तैयारी: महिलाएं खास रूप से सज-धजकर पीतल या मिट्टी के बर्तनों में बोनम बनाती हैं। यह प्रसाद दूध, चावल, गुड़ और घी से बनाया जाता है। इसके ऊपर जलता दीपक रखा जाता है और बर्तन को नीम के पत्तों से सजाया जाता है।
2. मंदिर यात्रा: महिलाएं सिर पर बर्तन लेकर मंदिर तक जाती हैं। यह यात्रा एक तरह की श्रद्धा यात्रा होती है, जिसमें महिलाएं नंगे पांव चलती हैं और देवी के भजन गाती हुई मंदिर तक पहुंचती हैं।
3. चढ़ावा और पूजा: मंदिर में देवी को हल्दी, सिंदूर, साड़ी, चूड़ियाँ और बोनम चढ़ाई जाती है। साथ ही पूजा-अर्चना कर उनसे परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
बोनालु महोत्सव में "पोताराजु" नामक पात्र का विशेष महत्व होता है। पोताराजु को देवी का भाई माना जाता है। वह पारंपरिक वेशभूषा में, शरीर पर हल्दी और सिंदूर लगाए, कमर पर घंटे बांधे और सिर पर नींबू रखकर, नृत्य करता हुआ जुलूस की अगुवाई करता है। यह दृश्य अत्यंत ऊर्जा और उत्साह से भरा होता है।
मंचों पर लोक कलाकार ढोलक, तुरही (फूँककर बजाने का एक बाजा) और अन्य ( संगीत बजाने का उपकरणों ) के साथ लोक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। इसके बाद लोग सड़कों पर उमड़ पड़ते हैं और एक मेले जैसा माहौल बन जाता है।
प्रमुख मंदिर जहां बोनालु विशेष रूप से मनाया जाता है:
1. श्री उज्जैनी महाकाली मंदिर (यह मंदिर सिकंदराबाद में स्थित है)
2. गोलकोंडा महाकाली मंदिर (यह मंदिर गोलकोंडा किले के अंदर स्थित है।)
3. अक्कन बाबुल्ला मंदिर ( यह मंदिर हरिबोवली में स्थित है। )
4. लाल दरवाजा महाकाली मंदिर (यह मंदिर पुराने शहर के लाल दरवाजा क्षेत्र में स्थित है।)
5. अलवाल महाकाली मंदिर (यह मंदिर अलवाल क्षेत्र में स्थित है।)
इन मंदिरों में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और देवी को बोनम अर्पित करते हैं।
बोनालु (Bonalu) महोत्सव (Festival) महिलाओं की श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक है। महिलाएं न केवल प्रसाद बनाती हैं, बल्कि पूजा की मुख्य भूमिका भी निभाती हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास होता है कि देवी माँ उन्हें और उनके परिवार को हर संकट से बचाएंगी। यह पर्व महिलाओं के आत्मबल, श्रद्धा और सामूहिक रूप से भावनाओं को उजागर करता है।
बोनालु (Bonalu) केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा भी है। इस अवसर पर लोक नाटक, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि, पारंपरिक गीत और नृत्य लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। यह पर्व समाज को एकजुट करता है, समुदायों में प्रेम, सहयोग और मेलजोल को बढ़ाता है।
इस त्योहार पर कुछ खास पकवान बनाए जाते हैं जो त्योहार का स्वाद और आनंद बढ़ा देते हैं:
कुडुमुलु (चावल के आटे की पकौड़ी), गारेलु (उड़द दाल के पकौड़े), सक्करा पोंगली (मीठा चावल), बोनम (त्योहार का विशेष प्रसाद)
इन व्यंजनों को देवी को चढ़ाने के बाद परिवार और समाज के लोगों में बांटा जाता है।
तेलंगाना सरकार ने बोनालु (Bonalu) को राजकीय पर्व का दर्जा दिया है। हर साल त्योहार के दौरान सुरक्षा, साफ-सफाई और ट्रैफिक व्यवस्था के लिए खास इंतज़ाम किए जाते हैं। स्थानीय प्रशासन, पुलिस और स्वयंसेवी संगठन मिलकर इस महोत्सव (Festival) को शांतिपूर्ण और भव्य बनाने में भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्ष:
बोनालु (Bonalu) महोत्सव (Festival) केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवित संस्कृति (Cultural) का प्रतीक है। यह पर्व नारी शक्ति, सामुदायिक एकता, लोक परंपरा और आध्यात्मिक आस्था का सुंदर संगम है। इस पर्व के ज़रिए लोग न केवल देवी महाकाली के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हैं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को भी जीवित रखते हैं।
आज जब दुनिया आधुनिकता की ओर तेजी से बढ़ रही है, तो ऐसे में बोनालु (Bonalu) जैसे त्योहार हमें हमारी जड़ों से जोड़ने, समाज में सांस्कृतिक (Cultural) चेतना जगाने और आध्यात्मिक ऊर्जा देने का कार्य करते हैं। [Rh/PS]