वाराणसी में जलती चिताओं के बीच नाचती है नगर वधुएं, सालों से हो रहा है इस परंपरा का निर्वहन

उत्तर प्रदेश में करीबन हर जिले में कोई न कोई प्राचीन मंदिर आपको देखने को मिल जाएगा और उससे जुड़ी संस्कृति और मान्यता भी। ऐसे ही एक अनूठी परंपरा है देवो के देव महादेव की नगरी काशी में जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है।
Unique Rituals of Varanasi: यहां महाश्मशान में जलती चिताओं के बीच नगर वधुएं नाचती हैं(Wikimedia Commons)
Unique Rituals of Varanasi: यहां महाश्मशान में जलती चिताओं के बीच नगर वधुएं नाचती हैं(Wikimedia Commons)

Unique Rituals of Varanasi: हमारा भारत देश विविधताओं का देश कहलाता है, यहां का एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है जिसमें कहा गया है कि कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। ऐसी ही कुछ अलग संस्कृति को संजोए हुए हमारा उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में करीबन हर जिले में कोई न कोई प्राचीन मंदिर आपको देखने को मिल जाएगा और उससे जुड़ी संस्कृति और मान्यता भी। ऐसे ही एक अनूठी परंपरा है देवो के देव महादेव की नगरी काशी में जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है। यहां महाश्मशान में जलती चिताओं के बीच नगर वधुएं नाचती हैं, जिन्हें देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।

कैसे शुरू हुआ यह परंपरा?

यहां यह परंपरा चैत्र नवरात्रि के सप्तमी तिथि पर महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर होती है। इस अनूठी परंपरा की शुरुआत राजा मानसिंह के समय में हुई थी। दरअसल, इस परंपरा की शुरूआत तब से हुई जब राजा ने मणिकर्णिका घाट पर महाश्मशान के मन्दिर मसाननाथ का जीर्णोद्धार कराया और उसी उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए कई नामचीन कलाकारों को बुलाया।

नगर वधुएं अपनी स्वेच्छा आज भी इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए निःशुल्क आ कर पहले महाश्मशान बाबा के सामने नृत्य करती है(Wikimedia Commons)
नगर वधुएं अपनी स्वेच्छा आज भी इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए निःशुल्क आ कर पहले महाश्मशान बाबा के सामने नृत्य करती है(Wikimedia Commons)

उनके बुलाने पर भी जब कोई नहीं आया तब तत्कालीन समय की वेश्याओं ने राजा मान सिंह के निमंत्रण को स्वीकार करते हुए काशी के मणिकर्णिका महाश्मशान के सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपनी कला का प्रदर्शन किया तभी से इनको नगर वधु के नाम से जाना जाने लगा।

सालों से होता आ रहा है परंपरा का निर्वहन

उस दिन से लेकर आज तक महाश्मशान के इस उत्सव में देश के कई हिस्सों से आने वाली नगर वधुएं अपनी स्वेच्छा आज भी इस परंपरा का निर्वहन करने के लिए निःशुल्क आ कर पहले महाश्मशान बाबा के सामने नृत्य करती है और फिर जलती चिताओं के बीच भी अपनी कला का प्रदर्शन करती है जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग भी शामिल होते है। ऐसा कहा जाता है कि नगर वधु अपने नृत्य के जरिए महाश्मशान के मंदिर में मन्नत मांगते हैं कि अगले जन्म में हमें इस जिंदगी से छुटकारा मिले और पुण्य की प्राप्ति हो।

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