
हमारे देश में कई बार ऐसी बाते सामने आई है कि जब भी सरकारी निर्माण कार्यों या स्मारकों की बात आती है, तो इसके खर्चे कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर दिखाए जाते हैं। आज का यह ताज़ा मामला लखनऊ और नोएडा में बने भव्य स्मारकों का है, जहाँ रख-रखाव और मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
स्मारकों की चमक-धमक के बीच सवाल: क्या हो रहा है जनता के पैसो का सही इस्तेमाल ?
बता दें की डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल (Dr. Bhimrao Ambedkar Social Change Centre) पर बनी हाथियों की मूर्तियाँ हमेशा से एक आकर्षण का केंद्र रही हैं। लेकिन इन मूर्तियों की मरम्मत पर जो खर्च दिखाया गया है, वह हैरान कर देने वाला है। सिर्फ 52 नंबर की हाथी मूर्ति की मरम्मत पर ही 3 करोड़ 64 लाख रुपये खर्च दिखाए गए।
इतना ही नहीं, इसमें से आधा पैसा यानी 1.82 करोड़ रुपये पहले ही खर्च हो चुका है और अब अतिरिक्त मांग की जा रही है। इन सब बातो के बाद ये सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर बार-बार क्यों इतनी बड़ी राशि मरम्मत के नाम पर लगाई जा रही है?
राजकीय निर्माण निगम (State Construction Corporation) जो की उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन एक निर्माण एजेंसी है, जिसे इन कार्यों की ज़िम्मेदारी दी गई है, लेकिन इन खबरो की वजह से उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल कुछ ऐसे है कि अगर निर्माण कार्य की गुणवत्ता सही होती तो इतनी जल्दी इतनी बड़ी मरम्मत की ज़रूरत क्यों पड़ती? इन सारी बातो से यह साफ दर्शाता है कि कहीं न कहीं काम की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर सवाल हैं।
निष्कर्ष
अगर जनता के मेहनत की कमाई से जमा टैक्स का इस्तेमाल बार-बार मरम्मत के नाम पर होता रहेगा, तो यह सीधा जनता के विश्वास के साथ धोखा है। एक हाथी की मूर्ति पर करोड़ों रुपये खर्च करना यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर प्राथमिकताएँ क्या हैं। जनता की सुविधाएँ या दिखावटी स्मारक?
इसीलिए सरकारी तंत्र और जिम्मेदार संस्थाओं (Government Machinery and Responsible Institutions) को चाहिए कि ऐसे मामलों में पारदर्शिता लाएँ और जनता के पैसों का सही इस्तेमाल करें। क्योंकि सवाल सिर्फ एक हाथी की मरम्मत का नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर भी है।
[Rh/SS]