Bhitauli Festival of Uttarakhand : पहाड़ी इलाकों में चैत्र मास में ससुराल में रह रहीं बहनों से नए वस्त्र और विविध उपहार लेकर भाई मिलने जाते हैं तथा इसके साथ मां के हाथों से तैयार पकवान देने का रीति रिवाज काफी पुरातन है। चैत्र माह को भिटौली का महीना भी कहते हैं लेकिन अब शहरों में इस प्राचीन परंपरा का स्वरूप बदलता जा रहा है। भाग दौड़ की जिदंगी में अब बहनों को मोबाइल से ही गूगल पे कर अथवा मनीआर्डर भेज कर भिटौली दी जाने लगी है।
चैत्र मास यानि भिटौली के महीने की शुरुआत पहाड़ में फूलदेई त्योहार के साथ होती है। भिटौली का अर्थ है भेंट यानी मुलाकात करना। उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों, पुराने समय में संसाधनों की कमी के कारण विवाहित महिला को सालों तक अपने मायके जाने का मौका नहीं मिल पाता था। ऐसे में चैत्र में मनाई जाने वाली भिटौली के जरिए भाई अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे भेंट करता था।
इसके साथ ही उपहार स्वरूप भाई पकवान लेकर उसके ससुराल पहुंचता था। पर्वतीय अंचल में भिटौली भाई- बहनों के बीच असीम प्यार का प्रतीक है। सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी निभाई जाती है। इसे चैत्र के पहले दिन फूलदेई से पूरे माहभर तक मनाया जाता है।
भिटौली त्योहार इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि इस दिन पहाड़ों के पारंपरिक व्यंजन घरों में बनाए जाते हैं, जो बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इनमें पूरी, खीर, चावल के आटे से बनने वाले व्यंजन सेल, पुए, उड़द की दाल के पकवान और खजूर, जिनके बिना यह त्योहार अधूरा ही लगता है। ये पारंपरिक पकवान विशेष मौकों पर ही पहाड़ में बनते हैं, जिनका स्वाद भी अत्यंत स्वादिष्ट होता है। इन दिनों पहाड़ में ये त्योहार मनाया जा रहा है और हर घर में ये पकवान बनाए जा रहे हैं। पहाड़ में भिटौली देने का स्वरूप आधुनिकता के कारण बदलने लगा है लेकिन अत्यंत व्यस्त और भागमभाग जीवन शैली तथा आधुनिक सूचना क्रांति युग के बावजूद भी यह भाई-बहन की याद से अवश्य जुड़ा हुआ है।