Uttrakhand : उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का निवास है। यही वजह है कि इसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते है की उत्तराखंड के हर परिवार का एक कुलदेवता होता हैं? यहां मान्यता है कि पहाड़ों में रहने वाले परिवारों की रक्षा उनके कुल देवता करते है। यहां हर एक गांव में उनके कुल देवता का मंदिर होता है, जहां त्योहारों में या किसी भी शुभ अवसर जैसे विवाह, बहू के आगमन, बच्चे के जन्म के समय, नामकरण, जनेऊ और अन्य कई संस्कारों में कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा सबसे पहले की जाती है।
कुलदेवी एक शब्द है जो हिंदी में 'कुला' यानी खानदान और 'देवी' से मिलकर बना है। दरअसल कुलदेवी वो देवी हैं जो किसी विशेष खानदान या कुल की आदि देवी होती हैं। उन कुलदेवी की उपासना करते समय उनकी मूर्ति या पिंडी की पूजा की जाती है। वहीं कुलदेवता को उस कुल के देवता के रूप में पूजा जाता है। जिन्हें उस कुल का आदि देवता माना जाता है। कुलदेवी और कुलदेवता को पारंपरिक रूप से पूजा के लिए आदर्श माना जाता है।
पहाड़ों में कुलदेवी या कुलदेवता का निर्धारण हमारे पूर्वजों द्वारा होता है। जैसे किसी के कुलदेवता पांडव हैं, किसी के कत्यूरी, किसी के गोलू देवता तो किसी के सैम देवता। इन कुल देवताओं की कृपा कुल के सभी लोगों पर बनी रहती है। कुलदेवता के आशीर्वाद से किए जाने वाले कार्य सफल होते हैं।
किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम कुलदेवता को आमंत्रित किया जाता है। यदि किसी घर में विवाह उत्सव है, तो सर्वप्रथम कुलदेवता के मन्दिर में दीप प्रज्ज्वलित कर निमंत्रण पत्र शादी कार्ड अर्पित करते हुए प्रार्थना की जाती है, कि वे यह शुभ कार्य बिना किसी बाधा के संपन्न करवा दे। यदि किसी के घर संतान की प्राप्ति हो, तो भी बच्चे के जन्म के 22 दिन के बाद कुलदेवता के मन्दिर में दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है।
शहरों में रहने वाले ज्यादातर लोगों को अपने कुलदेवता के बारे में जानकारी नहीं होती है। ऐसे में पहाड़ों में आयोजित होने वाली जागर या फिर किसी पंडित से अपने कुलदेवता के बारे में पता किया जा सकता है।