न्यूजग्राम हिंदी: गत मंगलवार को सड़क पर मारपीट का एक वीडियो जमकर वायरल हुआ था। ये वीडियो किसी ओर का नहीं बल्कि उत्तराखंड (Uttarakhand) के वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल (Prem Chand Aggarwal) का था। इस वीडियो में कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल और उनका स्टाफ एक व्यक्ति के पीछे भागते हुए उससे मारपीट करते दिख रहे हैं। इस मामले में जांच हुई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वीडियो में मंत्री और उनका स्टाफ ही है। मारपीट के इस वीडियो के वायरल होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को तलब किया। साथ ही मुख्यमंत्री ने इस घटनाक्रम का संज्ञान लेते हुए पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार को निष्पक्ष जांच करने के आदेश भी दिए हैं।
उन्होंने कहा कि पूरे प्रकरण की कायदे से जांच हो। इस मामले में किसी भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने साफ किया कि वह इस मामले में भेदभाव एवं पक्षपातपूर्ण कार्रवाई किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे।
मुख्यमंत्री के आदेश के बाद बुधवार को पुलिस कार्रवाई का दौर शुरू हुआ। ऋषिकेश (Rishikesh) में बलवा और मारपीट का मुकदमा दर्ज करते समय मंत्री का नाम आते ही पुलिस की कलम ठिठक गई। केस तो दर्ज किया लेकिन उसमें सीधे मंत्री को नामजद नहीं किया। केवल मंत्री के पीआरओ का नाम ही एफआईआर (FIR) में लिखा गया। जबकि, तहरीर के अनुसार पहले गालीगलौज मंत्री ने ही की थी। हालांकि, इस मामले में जब पुलिस कप्तान से सवाल किया गया तो उन्होंने मंत्री का नाम भी शामिल होने की बात कही। लेकिन, दिनभर पुलिस की यह कार्रवाई चर्चाओं में रही।
पहला मुकदमा मंत्री के गनर गौरव राणा (Gaurav Rana) की ओर से दर्ज कराया गया। इसमें सुरेंद्र सिंह नेगी और उनके साथी धर्मवीर पर लूट, लोक सेवक के साथ मारपीट और अन्य धाराएं लगाई गई हैं।
दूसरा मुकदमा सुरेंद्र सिंह नेगी (Surendra Singh Negi) की तहरीर पर दर्ज किया गया। सुरेंद्र सिंह नेगी ने तहरीर में लिखा कि शुरूआत में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने उनके साथ गालीगलौज की थी। गंदी गंदी गालियां और धमकी दी गई। इसके बाद धर्मवीर ने अगले घटनाक्रम में पीआरओ कौशल बिजल्वाण व गनर पर मारपीट व गाली गलौज का आरोप लगाया। पुलिस ने इस तहरीर पर भी कार्रवाई करते हुए मुकदमा दर्ज किया। लेकिन, कौशल बिजल्वाण को ही एफआईआर में आरोपी के तौर पर दर्शाया। इसमें बलवा और मारपीट की धाराएं लगाई गईं।
ऐसे घटनाक्रम में जब मुकदमा दर्ज होता है तो नियमानुसार तहरीर में आए सभी नामों को पुलिस एफआईआर में आरोपियों के कॉलम में लिखती है। बाकी के नाम जो अज्ञात में यदि होते हैं तो उन्हें जांच के दौरान जोड़ लिया जाता है। अब सवाल है कि क्या पुलिस को अपने स्टाफ के गनर का नाम भी नहीं पता था? मंत्री का नाम शुरूआत में ही एफआईआर में आरोपी के रूप में क्यों नहीं लिखा गया?
पत्रकारों ने जब इस स्थिति को साफ करने के लिए एसएसपी दलीप सिंह कुंवर से बात की तो उन्होंने बताया कि एफआईआर शॉर्ट में होती है। मंत्री का नाम भी है। अब सवाल उठ रहे हैं कि जब जांच शुरू होगी तो क्या मंत्री का नाम आरोपियों में शामिल किया जाएगा या नहीं।
--आईएएनएस/PT