![भारत के इतिहास में कई ऐसे राज़ छिपे हैं, जिन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-19%2Fo5mvwguj%2Fassetstask01k31axmbbff8s9vvxp8rwg7sm1755613024img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
भारत के इतिहास में कई ऐसे राज़ छिपे हैं, जिन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही एक रहस्य है 1995 का पुरुलिया हथियार कांड (Purulia arms case of 1995), जिसे लोग आज भी “आसमान से बरसी बंदूक़ों की बारिश” (“A rain of guns fell from the sky”) के नाम से जानते हैं। सोचिए, आधी रात को जब लोग अपने घरों में चैन की नींद सो रहे हों और अचानक आसमान से एक विमान उड़ता हुआ गुज़रे और उस विमान से जमीन पर अचानक हथियार, गोलियाँ और मशीनगनों की बारिश हो जाएं तो क्या होगा? ये किसी फ़िल्म की कहानी नहीं बल्कि ये हकीकत थी, जो पश्चिम बंगाल के पुरुलिया (Purulia, West Bengal) ज़िले में घटी।
यह घटना इतनी चौंकाने वाली थी कि न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के मीडिया की सुर्ख़ियों में छा गई। सवाल यह था कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में हथियार भारत की धरती पर किसके लिए और क्यों गिराए गए? किसने इसकी योजना बनाई और इसका मक़सद क्या था? यह कहानी सिर्फ रहस्य और रोमांच से भरी नहीं है, बल्कि इसमें राजनीति, षड्यंत्र और अंतरराष्ट्रीय साज़िश की परतें भी जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं उस रात का पूरा सच, जब पुरुलिया की धरती पर मौत बरसाने वाले हथियार आसमान से गिरे थे।
आखिर क्या था यह पुरुलिया हथियार कांड?
पुरुलिया हथियार कांड भारत के इतिहास की सबसे रहस्यमयी और चौंकाने वाली घटनाओं में से एक है। 17 दिसंबर 1995 की रात एक रहस्यमयी विमान पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के आसमान से गुज़रा। अचानक उस विमान से जमीन पर बड़े-बड़े बक्से फेंके जाने लगे। उस विमान में आठ यात्री सवार थे. एक डेनिश शख़्स किम पीटर डेवी, एक ब्रिटिश हथियार विक्रेता पीटर ब्लीच, सिंगापुर का रहने वाला भारतीय मूल का एक व्यक्ति दीपक मणिकान और चालक दल के पाँच सदस्य। जब ग्रामीणों ने जाकर देखा, तो हैरान रह गए, क्योंकि उन बक्सों में हथियार और गोलियों का जखीरा भरा था।
इसमें एके-47 राइफलें, रॉकेट लॉन्चर, बंदूकें और लाखों गोलियां शामिल थीं।भारत जैसे सुरक्षित देश में इतनी बड़ी मात्रा में हथियारों का गिराया जाना किसी बड़ी साजिश का संकेत दे रही थी। पुलिस और प्रशासन तुरंत हरकत में आ गए और पूरे इलाके को घेर लिया गया। बाद में जांच से पता चला कि यह विमान रूस से आया था और इसे विदेशी नागरिकों ने किराए पर लिया था। सवाल यह उठा कि आखिर इतने भारी हथियार किसके लिए और क्यों गिराए गए? इस घटना ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए। यह केवल एक हादसा नहीं था, बल्कि एक गहरी साज़िश थी, जिसके पीछे कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें शामिल बताई गईं।
पीटर ब्लीच और एमआई6 की रहस्यमयी कड़ी
पुरुलिया हथियार कांड में सबसे चर्चित नाम था ब्रिटिश हथियार व्यापारी पीटर ब्लीच का। चंदन नंदी और ब्रिटिश पत्रकार पीटर पॉफ़ेम के मुताबिक, ब्लीच का सीधा संबंध ब्रिटेन की खुफ़िया एजेंसी एमआई6 से था। वह समय-समय पर उनके गुप्त मिशनों में मदद करता रहा था। यही वजह थी कि इस पूरे ऑपरेशन में उसकी भूमिका शुरू से ही रहस्य और शक के घेरे में रही। पीटर पॉफ़ेम ने अपने लेख “अप इन आर्म्स: द बिज़ार केस ऑफ़ द ब्रिटिश गन रनर” (द इंडिपेंडेंट, 6 मार्च 2011) में खुलासा किया था कि उड़ान से तीन महीने पहले ब्लीच से एक डेनिश ग्राहक ने संपर्क किया और बड़ी मात्रा में हथियार खरीदने की बात कही।
जब ब्लीच को पता चला कि ये हथियार किसी देश के लिए नहीं, बल्कि एक चरमपंथी संगठन को दिए जाने वाले हैं, तो उसने इसकी सूचना एमआई6 को दे दी। खुफ़िया एजेंसी ने उसे सलाह दी कि वह इस काम को जारी रखे। ब्लीच को पूरा भरोसा था कि यह एक स्टिंग ऑपरेशन है, और भारतीय एजेंसियाँ हथियार गिराए जाने से पहले ही इसे पकड़ लेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस घटना ने पीटर ब्लीच की भूमिका को और भी संदिग्ध बना दिया।
हथियारों की बरामदगी और गाँव में फैली दहशत
18 दिसंबर 1995 की सुबह पुरुलिया ज़िले के गनुडीह गांव में एक चरवाहे सुभाष तंतुबाई ने घास के मैदान में चमकती चीज़ देखी। पास जाकर उसने बंदूक़ें देखीं, जो उसने पहले कभी नहीं देखी थीं। आसपास क़रीब 35 बंदूक़ें बिखरी थीं। घबराकर वह तुरंत झालदा थाने पहुँचा। थानेदार प्रणव कुमार मित्र जब मौके पर पहुँचे तो उन्हें जमीन पर गिरे जैतूनी रंग के लकड़ी के क्रेट टूटे हुए मिले। पास के तालाब में सेना के जवान ने गोता लगाया तो टैंक नाशक ग्रेनेड मिला।
इससे साफ़ हो गया कि मामला बेहद गंभीर है। जल्द ही आसपास के गाँव खटंगा, बेलामू, मारामू, पागड़ो और बेराडीह में भी हथियार बिखरे मिले यहाँ तक कि एक खेत में नायलॉन का पैराशूट और उसके नीचे कई राइफ़लें बरामद हुईं। जाँच में सामने आया कि कुल 300 एके-47, 25 पिस्तौल, 2 स्नाइपर राइफ़लें, 2 नाइट विज़न दूरबीन, 100 ग्रेनेड और 16,000 गोलियां मिलीं। इनका वज़न था 4375 किलोग्राम, जिसने पूरे देश को हिला दिया।
विमान को जबरन मुंबई में उतारा गया
हथियार गिराने की साज़िश तब खुल गई, जब भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ पुरुलिया में गिरे हथियार लग गए। इसके बावजूद विमान कराची की ओर रवाना हुआ और वापसी के दौरान चेन्नई में ईंधन भरने के बाद मुंबई के नज़दीक पहुंचा। लेकिन तभी आसमान में भारतीय वायुसेना के मिग-21 लड़ाकू विमान दिखाई दिए और रूसी विमान को मुंबई हवाई अड्डे पर उतरने का आदेश दे दिया गया।
विमान में बैठे किम डेभिड कुछ दस्तावेज़ और सबूत मिटाने में जुट गए। उन्होंने अपने ब्रीफ़केस से कागज़ फाड़कर जला दिए, फ्लॉपी डिस्क के टुकड़े कर आग लगाई और टॉयलेट में फ्लश कर दिए। यह पल उनके लिए बेहद तनावपूर्ण था, क्योंकि अब पूरी साज़िश उजागर होने वाली थी। और ठीक उसी समय विमान के पहिए मुंबई एयरपोर्ट की रनवे पर छू चुके थे, जहाँ उनकी गिरफ्तारी तय थी।
किम डेवी कैसे निकल भागा?
मुंबई के सहार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रात 1:40 बजे विमान लैंड हुआ, लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि वहाँ कोई मौजूद नहीं था। लगभग 10 मिनट बाद एक जीप आई जिसमें दो अधिकारी बैठे थे। वे डेवी और पीटर ब्लीच से पूछताछ करने लगे, लेकिन स्थिति की गंभीरता को समझ ही नहीं पाए। डेवी ने यहाँ तक पूछ लिया कि क्या उन्हें लैंडिंग फ़ीस देनी होगी, और अधिकारी ने “हाँ” कहकर मामले को हल्के में लिया। करीब 45 मिनट बाद कस्टम अधिकारी तलाशी के लिए पहुँचे। उसी दौरान डेवी विमान में गया, एक फ़ोल्डर उठाया और चुपचाप विमान से बाहर निकल गया।
जब तक सुरक्षाबल बड़ी संख्या में पहुँचे और विमान को घेर लिया, तब तक डेवी गायब हो चुका था। यही वह पल था जब सबसे बड़ा मास्टरमाइंड भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी का फायदा उठाकर फरार हो गया।पीटर ब्लीच और विमान चालक दल के पांच सदस्यों को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन सब पर भारत के ख़िलाफ़ युद्ध का मुक़दमा चलाया गया। दो साल तक चले इस मुक़दमे के बाद सबको आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। क़रीब 10 साल बाद किम डेवी फिर दिखे। डेवी ने पूरे डेनमार्क में घूमकर अपने काम के क़सीदे पढ़े। भारत ने डेवी के प्रत्यर्पण की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
कई सालों बाद खुला राज़ से पर्दा
डेवी ने 27 अप्रैल, 2011 को एक टीवी इंटरव्यू में दावा किया, "इस पूरे प्रकरण में भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ की भूमिका थी और हथियार गिराए जाने के बारे में भारत सरकार को पहले से जानकारी थी। ये ऑपरेशन रॉ और ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई6 का संयुक्त ऑपरेशन था।" सरकार की तरफ़ से इसका खंडन किया गया और सीबीआई ने बयान दिया कि इस घटना में किसी भी सरकारी एजेंसी का हाथ नहीं था। बाद में किम डेवी ने एक किताब लिखी 'दे कॉल्ड मी टेररिस्ट'।
इसमें किम डेवी ने दावा किया, "भारत से भागने में उसकी बिहार के एक राजनेता ने मदद की थी। उसकी मदद से ही वायु सेना के रडारों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया ताकि हथियारों को बिना किसी रुकावट के नीचे गिराया जा सके। इन हथियारों का उद्देश्य आनंद मार्गियों के ज़रिए पश्चिम बंगाल में हिंसा फैलाना था ताकि उसका बहाना बनाकर ज्योति बसु के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को बर्ख़ास्त किया जा सके।" आनंद मार्ग ने पहले और किम डेवी के दावों के बाद भी सभी आरोपों से इनकार किया था और यह कहा था कि कुछ लोग उनकी संस्था को बदनाम करना चाहते हैं।
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पुलिस ने हथियार गिराए जाने के बाद छानबीन की थी। आनंद मार्ग का दावा था कि पुलिस को वहाँ कोई हथियार नहीं मिले थे।जब भारतीय संसद की ओर से बनाई गई पुरुलिया आर्म्स ड्रॉपिंग कमेटी के कुछ सांसदों ने सवाल पूछा कि क्या भारतीय वायु सेना के रडार 24 घंटे काम करते हैं, तो भारतीय वायु सेना के प्रतिनिधि एयर वाइस मार्शल एम मैकमोहन ने जवाब दिया था, "रडारों को 24 घंटे सक्रिय रखना संभव नहीं है क्योंकि इससे उनके जल जाने का ख़तरा बन जाता है।”
अनसुलझे सवाल अब भी बाकी
जाँच में सामने आया कि इस पूरे ऑपरेशन की योजना कम से कम तीन साल पहले बनाई गई थी। किम डेवी के पास दो जाली पासपोर्ट थे, एक “किम पालग्रेव डेवी” और दूसरा “किम पीटर डेवी” के नाम से। ये दोनों पासपोर्ट 1991 और 1992 में न्यूज़ीलैंड की राजधानी वेलिंगटन से जारी हुए थे।
लेकिन लगभग 30 साल बाद भी कई सवाल अनुत्तरित हैं:
ये हथियार आखिरकार किसके लिए गिराए गए थे?
इसके पीछे असली मास्टरमाइंड कौन था और फंडिंग कहाँ से आई?
भारतीय वायुसीमा में दाख़िल होते ही विमान को रोका क्यों नहीं गया?
अगर रॉ को पहले से जानकारी थी, तो उसने अन्य एजेंसियों को क्यों नहीं सतर्क किया?
सबसे बड़ा रहस्य यह भी है कि मुंबई एयरपोर्ट से किम डेवी आसानी से कैसे निकल गया और सुरक्षित डेनमार्क कैसे पहुँच गया? [Rh/SP]