Subhas Chandra Bose Jayanti: पढ़िए नेताजी के अंग्रेजों के चंगुल से भाग निकलने की गाथा

Subhas Chandra Bose Jayanti: पढ़िए नेताजी के अंग्रेजों के चंगुल से भाग निकलने की गाथा

वर्ष 1941 में 44 वर्षीय नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) को दक्षिण कोलकाता में उनके एल्गिन रोड स्थित आवास पर नजरबंद (हाउस अरेस्ट) किया गया था और उनके घर के बाहर पूरा क्षेत्र पुलिस की निगरानी में था।

विख्यात नेताजी शोधार्थी जयंत चौधरी के अनुसार

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) 16 जनवरी 1941 को काले रंग की जर्मन वांडरर सेडान कार से अंग्रेजों को चकमा देकर भाग निकले थे। उन्होंने इसी कार से एल्गिन रोड से एजेसी रोड और फिर महात्मा गांधी रोड से होते हुए हावड़ा ब्रिज के माध्यम से हुगली नदी को पार करते हुए हावड़ा जिले में प्रवेश किया था। इसके बाद राज्य की राजधानी से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित बर्दवान जिले तक पहुंचने के लिए कार ने जीटी रोड का सफर भी तय किया। जिसके बाद नेताजी बीरभूम जिले के बोलपुर के शांति निकेतन गए, जहां उन्होंने दिल्ली पहुंचने से पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर से आशीर्वाद लिया और फिर से बर्दवान जिला लौट आए।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दक्षिण कोलकाता में उनके एल्गिन रोड स्थित आवास पर नजरबंद किया गया था। (Wikimedia Commons)

बर्दवान से उन्होंने 'फ्रंटियर मेल' नामक एक ट्रेन पकड़ी और मोहम्मद जियाउद्दीन के भेष में दिल्ली पहुंचे। नेताजी दिल्ली से सबसे पहले पाकिस्तान के पेशावर पहुंचे और वहां से काबुल पहुंचे, जहां उन्हें लगभग 48 दिनों तक इंतजार करना पड़ा। काबुल से वे समरकंद पहुंचे और वहां से वह हवाई मार्ग से मास्को गए और आखिरकार वह मार्च 1941 में बर्लिन पहुंच गए।

नेताजी के भाग निकलने की और भी कई थ्योरी हैं

  • शिशिर बोस के बारे में बताई गई बातों की कोई प्रासंगिकता नहीं है

बोस के एल्गिन रोड स्थित आवास से भाग निकलने को लेकर कई थ्योरी हैं। चौधरी ने आईएएनएस को बताया कि लेकिन सबूतों के अनुसार, बोस को उनके एक करीबी सहयोगी सरदार निरंजन सिंह तालिब ने निकाला था न कि शिशिर बोस ने।

बोस की परपौत्री (भांजी, बहन की नातिन) और एबीएचएम की राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यश्री चौधरी ने भी इस घटनाक्रम को याद करते हुए कहा कि सिख समुदाय ने बोस को भारत से भागने में मदद की थी और शिशिर बोस के बारे में बताई गई बातों की कोई प्रासंगिकता नहीं है।

  • गोमो रेलवे स्टेशन की कहानी भी मनगढ़ंत

चौधरी, जो न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग के साक्षी लोगों में से एक रहे हैं, उन्होंने बताया, मैं उस थ्योरी का समर्थन नहीं करता कि बोस ने गोमो रेलवे स्टेशन से कालका मेल पकड़ी और दिल्ली पहुंचे, जो कि अब झारखंड में है। क्योंकि यह पूरी तरह से मनगढ़ंत है।

भारतीय रेलवे ने बुधवार को नेताजी की 125वीं जयंती समारोह से पहले हावड़ा-कालका मेल का नाम बदलकर 'नेताजी एक्सप्रेस' कर दिया है। 1941 में ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से बाहर निकलने वाले बोस के सम्मान में 2009 में गोमो रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो रेलवे स्टेशन कर दिया गया था।

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