भारत में ऐसे अनेकों ऋषि मुनि ( Bhartrihari ) पैदा हुए जिन्होंने मनुष्य को सुमार्ग पर लाने का काम किया है। उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर या उनकी बताएं नीतियों पर आज भी लोग आंख मूंदकर विश्वास करते हैं। वह इसलिए क्योंकि यह सभी नीतियां ( Niti Shatakam ) जीवन के उस गूढ रहस्य को समझाती हैं जिनका ना तो अंत है और न इनसे कोई दूजा है।
संस्कृत के इतिहास में महर्षि भर्तृहरि ( Bhartrihari ) ऐसे ही एक प्रसिद्ध कवि थे। उनके द्वारा बताए नीतियों को आज भी पढ़ा जाता है। मुनि भर्तृहरि ने 3 नीतियों का निर्माण किया था। वह थे नीतिशतक, श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक। प्रत्येक शतक ( Niti Shatakam ) में सौ-सौ श्लोक हैं जो जीवन के रहस्य को विस्तार से बताते हैं। इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य के रूप में वैराग्य धारण किया और बाबा भरथरी के रूप में प्रचलित हुए। नीति शतक के इस भाग में आज हम जानेंगे मनुष्य के जीवन में ज्ञान का क्या महत्व है।
क्षान्तिश्चेत्कवचेन किं, किमिरिभिः क्रोधोऽस्ति चेद्देहिनां
ज्ञातिश्चेदनलेन किं यदि सुहृद्दिव्यौषधिः किं फलम् ।
किं सर्पैर्यदि दुर्जनः, किमु धनैर्वुद्यानवद्या यदि
व्रीडा चेत्किमु भूषणैः सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् ॥
नीति शतकम के अनुसार यदि व्यक्ति धैर्यवान या सहनशील है तो उसे अन्य किसी कवच की क्या आवश्यकता; यदि व्यक्ति को क्रोध आता है तो उसे किसी दूसरे शत्रु से क्यों डरना; यदि वह रिश्तेदारों से घिरा हुआ है तो उसे किसी अग्नि की क्या आवश्यकता और यदि उसके सच्चे मित्र हैं तो उसे किसी भी बीमारी के लिए औषधियों की क्या जरुरत? ऋषि भर्तृहरि कहते हैं कि यदि उसके आपका साथ बुरे लोगों के साथ है तो फिर सांपों से डरने की आवश्यकता क्या? और वह विद्वान है तो उसे धन-दौलत की आवश्यकता क्यों? यदि उसमे जरा भी लज्जा है तो उसे अन्य किसी आभूषणों की क्या आवश्यकता तथा अगर उसके पास कुछ अच्छी कविताएं या साहित्य है तो उसे राजसी ठाठ-बाठ या राजनीति की क्या आवश्यकता हो सकती है।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकारी यशःसुखकारी विद्या गुरूणां गुरुः ।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्याविहीनः पशुः ॥
मनुष्य को वास्तव में केवल ज्ञान ही सुशोभित करता है, यह एक ऐसा अद्वितीय खजाना है जो हमेशा सुरक्षित रहेगा, इसके माध्यम से ही हमें गौरव और सुख की प्राप्ति होती है। ज्ञान ही सभी शिक्षकों का शिक्षक है और विदेशों में विद्या ही अच्छे बंधु और मित्रों की भूमिका निभाती है। सत्ता में सर्वोच्च ज्ञान ही है। राजा - महाराजा भी ज्ञान को ही पूजते व सम्मान देते हैं। विद्या और ज्ञान के बिना मनुष्य केवल एक पशु के समान है।
अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था
स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि ।
अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां
न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम् ॥
किसी भी ज्ञानी व्यक्ति को कभी कम आंकना मूर्खता है और उनका अपमान करना एक पाप के समान है। वह इसलिए क्यूंकि भौतिक एवं सांसारिक धन सम्पदा उनके लिए घास से समान है। महर्षि भर्तृहरि के अनुसार जिस तरह एक मदमस्त हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है ठीक उसी तरह धन दौलत से ज्ञानियों को वश में करना असंभव कार्य के समान है।